Inder Kumar Gujral / श्री इंद्र कुमार गुजराल एक भारतीय राजनेता और भारत के प्रधानमंत्री (Prime Minister) थे जिनका कार्यालय एप्रिल, 1997 से मार्च, 1998 तक रहा था। वे भारत के विदेश मंत्री भी रहे। श्री इंद्र कुमार गुजराल एक साफ-स्वच्छ छवि वाले राजनेता थे। वह अपनी उज्जवल छवि, स्पष्टता नीतियों और जुझारूपण के कारण वे एक राजपूत से प्रधानमंत्री तक के पद पर पहुंच गए।
इंद्र कुमार गुजराल का परिचय – Inder Kumar Gujral Biography in Hindi
पूरा नाम | इन्द्र कुमार गुजराल (Inder Kumar Gujral) |
जन्म दिनांक | 4 दिसम्बर, 1919 |
जन्म भूमि | झेलम, ब्रिटिश भारत (वर्तमान पाकिस्तान) |
पिता का नाम | अवतार नारायण गुजराल |
माता का नाम | पुष्पा गुजराल |
पत्नी | शीला देवी |
बच्चे | दो पुत्र |
कर्म-क्षेत्र | राजनितिक |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | कांग्रेस और जनता दल |
पद | भारत के 12वें प्रधानमंत्री |
इन्द्र कुमार गुजराल उस समय प्रधानमंत्री बने जब कांग्रेस की समर्थन वापसी के भय से संयुक्त मोर्चा सरकार ने नेतृत्व परिवर्तन की उसकी मांग स्वीकार कर ली। तब एच. डी. देवगौड़ा को 10 माह के पश्चात् प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा। उन्होंने 21 अप्रैल, 1997 को अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और इसी दिन इन्द्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त हो गए। लेकिन यह भी ज़्यादा समय तक प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित नहीं कर सके। 19 मार्च, 1998 को कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बाद उन्हें भी पद छोड़ना पड़ा। इस प्रकार इन्द्र कुमार गुजराल लगभग एक वर्ष तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।
प्रारंभिक जीवन – Early Life of Inder Kumar Gujral
श्री गुजराल का जन्म 4 दिसंबर, 1919 को झेलम में हुआ था। झेलम वर्तमान समय में पाकिस्तान में है। उनके पिता श्री अवतार नारायण गुजराल और माता श्रीमती पुष्पा गुजराल ने पुत्र रत्न के जन्म पर हार्दिक प्रसन्नता प्रकट की। उनके माता-पिता दोनों देश की आजादी की लड़ाई में शामिल हुए थे।
उनके माता-पिता ही क्या, कोई अन्य भी इस बात का अनुमान नहीं लगा सकता था कि उनके यहां जन्म लेने वाला शिशु आगे चलकर विश्व के विशाल लोकतांत्रिक देश भारत का प्रधानमंत्री बन जाएगा। प्रकृति ने भी श्री गुजराल के लिए परिस्थितियां पैदा की और उन्होंने सही समय और सही दिशा में सदा अपना लक्ष्य संधान किया।
श्री इंद्र कुमार गुजराल की शिक्षा डी.ए.वी कॉलेज से हुई। उन्होंने स्नातक की परीक्षा कॉमर्स विषय से उतीर्ण की। हेल्ली कॉलेज ऑफ कॉमर्स, लाहौर और फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज, लाहौर से श्री गुजरात ने पी.एच.डी और डि.लीट. की उपाधि प्राप्त की।
25 अप्रैल, 1945 को श्री इंद्र कुमार गुजराल शिला जी के साथ पवित्र परिणय सूत्र में बंध गए। श्रीमती शीला गुजराल ने जीवन के हर सरल और दुर्गम पथ पर अपने पति का भरपूर साथ निभाया। मृद्रभाषी और सौम्य स्वाभाव की श्रीमती शीला गुजराल का साथ पाकर जैसे श्री गुजराल का जीवन सुमधुर झोंको की बयार से सुगंधित हो उठा। जब इनके यहां क्रमश: रमेश श्री नरेश गुजराल और श्री विशाल गुजराल नामक पुत्रों का जन्म हुआ था जैसे गुजराल दंपति का मन उपवन ही खिल उठा।
राजनीतिक जीवन – Inder Kumar Gujral Life History in Hindi
उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अपने कॉलेज के दिनों से की। वह लाहौर छात्रसंघ के सदस्य थे और संघ के अध्यक्ष भी बने। श्री गुजरात ने परोक्ष रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1942 में उन्हें जेल जाना पड़ा।
जिस समय उनका जन्म हुआ, देश के चारों ओर अंग्रेजों का भीषण दमनचक्र चल रहा था। जैसे-जैसे श्री गुजराल बड़े होते गए उनकी आंखे अंग्रेजों के देशवासियों पर होने वाले अत्याचारों को देख-देखकर व्याकुल होती रही। उनके ह्रदय में अपने देशवासियों के प्रति कोमल भावनाएं समय-समय पर प्रस्फुटित होती रहती थी, जिनका वे अक्सर प्रकतिकरण भी करते रहते थे।
विद्वान, विचारवान और विविध विषयों पर गहरी पकड़ रखने वाले श्री इंद्र कुमार गुजराल की विशिष्ट प्रतिभा का पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ही नहीं बल्कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी भरपूर सदुपयोग किया। इसी कारण श्री गुजराल मार्च, 1967 से मई, 1976 तक के लगभग 10 वर्षों में सूचना एवं प्रसारण, संचार, वर्क्स एवं हाउसिंग, नियोजन, साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्री रहे।
श्री गुजराल ने भारत के राजदूत के रूप में भी सफलता पूर्वक कार्य किया। वे 1976 से लेकर 1980 तक सोवियत संघ में भारत के राजदूत के पद पर कार्यरत रहे। जब 1989-90 में श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की केंद्र में सरकार बनी तो श्री इंद्र कुमार गुजराल को देश का विदेशी प्रभार सौंपा गया। विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किए।
1996-97 में श्री एच.डी देवगौड़ा के नेतृत्व वाले केंद्र सरकार में भी श्री गुजराल को विदेश मंत्री का कार्यभार सौंपा गया। श्री इंद्र कुमार गुजराल ने भारतीय विदेश नीति का सही अर्थों में उत्तरदायित्व निभाया। इसके अलावा गुजराल को इंडियन काउंसिल ऑफ साउथ एशियन को-ऑपरेशन का अध्यक्ष भी बनाया गया तथा 1996 में राज्यसभा के नेता बने।
वास्तव मे भारत की विदेश नीति का श्री गुजरात से गहरा संबंध रहा है। भारत और उसके पड़ोसी देशों से संबंधित कुछ नियमों को श्री गुजराल के नाम पर ही ‘गुजराल डॉक्ट्रिन’ के नाम से भी जाना जाता है। यह उनकी विदेश नीति की गहरी सूझ-बुझ और पकड़ का ही प्रभाव है। गुजराल जी ने विदेश नीति से संबंधित अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए एक पुस्तक भी लिखी हैं जिसका नाम है- ‘ए फॉरेन पॉलिसी फॉर इंडिया’।
इस पुस्तक की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में मुक्त कंठ से सराहना की गई। श्री गुजराल के विदेश नीति पर आधारित लेखो को हिंदी में प्रकाशित किया जाता रहा है। इसके अलावा उनके लेख उर्दू भाषा में भी दो भागों में प्रकाशित किए गए, ताकि उनके विदेश संबंधों पर आधारित लोगों को उर्दू भाषी पाठक भी पढ़ सके।
21 अप्रैल, 1997 को भारतीय राजनीति का चरम लक्ष्य साधते हुए गुजराल ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की। लेकिन उनका कार्यकाल महज 11 महीनों का रहा। अपने कार्यालय में तत्काल निर्णय लेने की क्षमता का भरपूर प्रयोग करते हुए उन्होंने अनेक समस्याओं का सटीक समाधान किया। अनेक देशों की यात्रा करते हुए उन्होंने भारतीय विदेश नीति को सही आयाम दिए। श्री गुजराल के कार्यालय 19 मार्च, 1998 को पूरा हुआ।
निधन – Inder Kumar Gujral Died
इन्द्र कुमार गुजराल की मृत्यु 30 नवम्बर, 2012 में 93 वर्ष की आयु में हुई। वे अपने राजनैतिक जीवन में पूर्णत: ईमानदार और अपने दायित्वों के प्रति समर्पित रहे। इनकी गिनती उन प्रधानमंत्रियों में की जाती है जिन्होंने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को सदैव बनाए रखा।
गुजराल की अन्त्येष्टि में भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी व अरुण जेटली सहित अनेक हस्तियाँ शामिल हुईं।