Ibrahim Lodi / इब्राहिम लोधी दिल्ली सल्तनत का अंतिम सुल्तान था। इब्राहीम लोदी अपने पिता सिकंदर लोदी की मृत्यु के बाद 1517 में दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बने थे। उसने भारत पर 1517-1526 तक राज्य किया और फिर मुगलों द्वारा पराजित के साथ दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया।
दिल्ली सल्तनत का अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोधी – Ibrahim Lodi History in Hindi
इब्राहिम लोदी अफगानी मूल का था। सिकन्दर शाह लोदी के मरने के बाद अमीरों ने आम सहमति से उसके पुत्र इब्राहीम लोदी (1517-1526 ई.) को 21 नवम्बर, 1517 को आगरा के सिंहासन पर बैठाया। अपने शासन काल के शुरू में उसने राजपूतों से ग्वालियर छीन लिया, परन्तु उसने अफ़ग़ान सरदारों को कड़े नियंत्रण में रखने की जो नीति अपनायी तथा उनके साथ जिस प्रकार का कठोर व्यवहार किया, उससे वे उसके विरोधी बन गये।
इब्राहीम लोदी / Ibrahim Lodi ने राज्य का विभाजन करके अपने भाई ‘जलाल ख़ाँ’ को जौनपुर का शासक नियुक्त किया, परन्तु बाद में जौनपुर को अपने राज्य में मिला लिया। सिंहासन पर बैठने के उपरान्त इब्राहीम ने आजम हुमायूं शेरवानी को ग्वालियर पर आक्रमण करने हेतु भेजा। वहाँ के तत्कालीन शासक विक्रमजीत सिंह ने इब्राहीम की अधीनता स्वीकार कर ली। मेवाड़ के शासक राणा साँगा के विरुद्ध इब्राहीम लोदी का अभियान असफल रहा। खतौली के युद्ध में इब्राहीम लोदी राणा साँगा से हार गया। इस युद्ध में राणा साँगा ने अपना बाँया हाथ खो दिया। राणा साँगा ने चन्देरी पर अधिकार कर लिया।
मेवाड़ एवं इब्राहीम लोदी के बीच झगड़े का मुख्य कारण मालवा पर अधिकार को लेकर था। इब्राहीम के भाई जलाल ख़ाँ ने जौनपुर को अपने अधिकार में कर लिया था। उसने कालपी में ‘जलालुद्दीन’ की उपाधि के साथ अपना राज्याभिषेक करवाया था। इब्राहीम लोदी ने लोहानी, फारमूली एवं लोदी जातियों के दमन का पूर्ण प्रयास किया, जिससे शक्तिशाली सरदार असंतुष्ट हो गये।
इब्राहीम के असंतुष्ट सरदारों में पंजाब का शासक ‘दौलत ख़ाँ लोदी’ एवं इब्राहीम लोदी के चाचा ‘आलम ख़ाँ’ ने काबुल के तैमूर वंशी शासक बाबर को भारत पर आक्रमण के लिए निमंत्रण दिया। बाबर ने यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया और वह भारत आया। 21 अप्रैल, 1526 को पानीपत के मैदान में इब्राहीम लोदी और बाबर के मध्य हुए भयानक संघर्ष में लोदी की बुरी तरह हार हुई और उसकी हत्या कर दी गई। इब्राहिम लोदी की सबसे बड़ी दुर्बलता उसका हठी स्वभाव था। उसके समय की प्रमुख विशेषता उसका अपने सरदारों से संघर्ष था। इब्राहीम की मृत्यु के साथ ही दिल्ली सल्तनत समाप्त हो गई और बाबर ने भारत में एक नवीन वंश ‘मुग़ल वंश’ की स्थापना की।
पानीपत की लड़ाई – Panipat War 1 in Hindi
इस युद्ध को जीतने के उद्देश्य से बाबर पूरी योजना के साथ आया था , उसने इस युद्ध के लिए कई नए युद्ध नीतिया और नए हथियारों का प्रयोग किया था, जो किसी भी भारतीय राजा के लिए नया था। बाबर ने तुलगमा युद्ध पद्धति उजबेकों से ग्रहण की थी। पानीपत के युद्ध में ही बाबर ने अपने दो प्रसिद्ध निशानेबाज़ ‘उस्ताद अली’ एवं ‘मुस्तफ़ा’ की सेवाएँ ली। इस युद्ध में पहली बार बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को उपयोग किया गया । साथ ही इस युद्ध में बाबर ने पहली बार प्रसिद्ध ‘तुलगमा युद्ध नीति’ का प्रयोग किया था और इसी युद्ध में बाबर ने तोपों को सजाने में ‘उस्मानी विधि’ (रूमी विधि) का प्रयोग किया था।
एक अनुमान के मुताबिक बाबर की सेना में 15000 के करीब सैनिक और 20-24 मैदानी तोपें थीं। लोधी का सेनाबल 130000 के आसपास था, हालांकि इस संख्या में शिविर अनुयायियों की संख्या शामिल है, जबकि लड़ाकू सैनिकों की संख्या कुल 100000 से 110000 के आसपास थी, इसके साथ कम से कम 300 युद्ध हाथियों ने भी युद्ध में भाग लिया था। क्षेत्र के हिंदू राजा-राजपूतों इस युद्ध में तटस्थ रहे थे, लेकिन ग्वालियर के कुछ तोमर राजपूत इब्राहिम लोधी की ओर से लड़े थे।
बाबरनामा’ के अनुसार बाबर की सेना में कुल 12,000 सैनिक शामिल थे। दूसरी तरफ, इब्राहिम की सेना में ‘बाबरनामा’ के अनुसार एक लाख सैनिक और एक हजार हाथी शामिल थे। बाबर की सेना में नवीनतम हथियार, तोपें और बंदूकें थीं। तोपें गाड़ियों में रखकर युद्ध स्थल पर लाकर प्रयोग की जाती थीं। सभी सैनिक पूर्ण रूप से कवच-युक्त एवं धनुष-बाण विद्या में एकदम निपुण थे।
बाबर के कुशल नेतृत्व, सूझबूझ और आग्नेयास्त्रों की ताकत आदि के सामने सुल्तान इब्राहिम लोदी बेहद कमजोर थे। सुल्तान की सेना के प्रमुख हथियार तलवार, भाला, लाठी, कुल्हाड़ी व धनुष-बाण आदि थे। हालांकि उनके पास विस्फोटक हथियार भी थे, लेकिन, तोपों के सामने उनका कोई मुकाबला ही नहीं था। इससे गंभीर स्थिति यह थी कि सुल्तान की सेना में एकजुटता का नितांत अभाव और सुल्तान की अदूरदर्शिता का अवगुण आड़े आ रहा था। इस भीषण युद्ध में सुल्तान इब्राहिम लोदी व उसकी सेना मृत्यु को प्राप्त हुई और बाबर के हिस्से में ऐतिहासिक जीत दर्ज हुई। हालाँकि इब्राहिम लोदी (Ibrahim Lodi) युद्ध में एककुशल सैनिक की तरह लड़ा और 21 अप्रैल 1526 में उसकी मौत हो गयी।
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