Chittorgarh Fort / चित्तौड़गढ़ क़िला राजस्थान के इतिहास प्रसिद्ध चित्तौड़ में स्थित है। यह किला विशेषतः चित्तोड़, चित्तोड़ का किला मेवाड़ की राजधानी के नाम से जाना जाता है। क़िला ज़मीन से लगभग 500 फुट ऊँचाई वाली एक पहाड़ी पर बना हुआ है। परंपरा से प्रसिद्ध है कि इसे चित्रांगद मोरी ने बनवाया था। आठवीं शताब्दी में गुहिलवंशी बापा ने इसे हस्तगत किया। कुछ समय तक यह परमारों, सोलंकियों और चौहानों के अधिकार में भी रहा, किंतु सन 1175 ई. के आस-पास उदयपुर राज्य के राजस्थान में विलय होने तक यह प्राय: गुहिलवंशियों के हाथ में ही रहा। यह एक वर्ल्ड हेरिटेज साईट भी है।
चित्तौड़गढ़ क़िला का इतिहास – Chittorgarh Fort Rajasthan History in Hindi
प्राचीन चित्रकूट दुर्ग या चित्तौड़गढ़ क़िला राजपूत शौर्य के इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान रखता है। यह क़िला 7वीं से 16वीं शताब्दी तक सत्ता का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र हुआ करता था। लगभग 700 एकड़ के क्षेत्र में फैला यह क़िला 500 फुट ऊँची पहाड़ी पर खड़ा है। यह माना जाता है कि 7वीं शताब्दी में मोरी राजवंश के चित्रांगद मोरी द्वारा इसका निर्माण करवाया गया था।
बहुत कम लोग जानते हैं कि हिंदू सभ्यता के अनुसार विभाजित किए गए चार युगों में से चित्तौड़गढ़ किला द्वापर युग से भी सम्बन्ध रखता है। दरअसल इसकी संरचना ही द्वापर युग में हुई थी। इसका अर्थ है कि यह किला महज़ कुछ सौ वर्ष पुराना नहीं, बल्कि हजारों वर्ष पुराना है।
इतिहास की मानें तो यह महल केवल एक रात में बना है। जी हां, इस महल को बनाने के लिए पूरे दिन का भी इस्तेमाल नहीं किया गया, बल्कि एक रात में इसे खड़ा कर लिया गया था।
ऐसी जनश्रुतियां प्रचलित हैं कि पाण्डवों के दूसरे भाई भीम ने करीब 5,000 वर्ष पूर्व चितौड़गढ़ के किला को बनवाया था। पांच पाण्डु भाइयों में से सबसे बलशाली राजकुमार भीम की ताकत को हज़ार हाथियों के समान माना जाता था। तो अपने विशालकाय संदर्भ की तरह ही भीम द्वारा एक विशाल दुर्ग तैयार किया गया था।
इस लोक प्रचलित कथा के अनुसार एक बार भीम जब संपत्ति की खोज में निकले तो उनके रास्ते में एक योगी निर्भयनाथ व एक यति कुकड़ेश्वर से भेंट होती है। भीम को यह ज्ञात होता है कि इस योगी के पास एक पारस पत्थर है, यदि वह भीम को मिल जाए तो उनकी खोज यहीं समाप्त हो सकती है।
परिणामस्वरूप भीम ने योगी से पारस पत्थर मांगा, जिसके बाद योगी पत्थर देने के लिए मान भी गया, परंतु उसने एक शर्त रखी। योगी के लिए वह पत्थर बेहद प्रिय था और वह आसानी से इस पत्थर को खुद से दूर नहीं कर सकता था, इसलिए उसने भीम के सामने एक शर्त रखी थी।
पारस पत्थर दे देने का वादा करते हुए योगी ने भीम से कहा “मैं जिस पहाड़ी पर रह रहा हूं, यदि तुम रातों-रात यहां मेरे रहने लायक एक विशाल दुर्ग का निर्माण करवा दो, तो मैं खुशी-खुशी तुम्हे पारस पत्थर सौंप दूंगा।“
योगी की यह शर्त सुन भीम एक पल के लिए तो दुविधा में पड़ गए, क्योंकि केवल एक ही रात के समय में इतना बड़ा किला बनाना असंभव था, लेकिन फिर भी भीम से योगी की शर्त स्वीकार की और अपने अन्य चार भाइयों की सहायता से किला बनाना आरंभ किया।
राजकुमार भीम और अन्य चार राजकुमारों द्वारा दुर्ग का कार्य करीब-करीब समाप्त हो गया था, केवल दक्षिणी हिस्से का थोड़ा-सा कार्य ही शेष था कि योगी की चिंताएं बढ़ गईं और उसने योजना बनाई। वायदे के अनुसार योगी ने पारस पत्थर देने के लिए ‘हां’ तो कर दी थी, परंतु उसका मन वह पत्थर देने को राज़ी ना था।
वह जानता था कि यदि सूर्य उदय होने तक पाण्डव यूं ही कार्य करते रहे, तो जल्द ही दुर्ग तैयार हो जाएगा और उसे भीम को पारस पत्थर देना ही पड़ेगा। इसीलिए उसने कपट की सहायता ली और यति से मुर्गे की आवाज में बांग देने को कहा।
उस समय मुर्गे की बांग से ही सवेरा होने का पता लगता था। इसीलिए यदि मुर्गा बांग देता तो भीम सवेरा समझकर निर्माण कार्य बंद कर देते और योगी को पारस पत्थर देने की जरूरत ना पड़ती। इस प्रकार से योगी दोनों रूप से सफल हो जाता।
यति ने ठीक उसी तरह से मुर्गे की आवाज़ में बांग दे दी। मुर्गे की बांग सुनते ही भीम को क्रोध आया। खुद को कार्य में असफल होता देख भीम बेहद हताश हो उठे और उनके गुस्से का ज्वालामुखी फूट गया। तभी उन्होंने क्रोध से ताकत लगाते हुए अपनी एक लात जमीन पर दे मारी।
भीम की ताकत से उस पहाड़ी का वह हिस्सा ज़ोर से हिल गया। जहां भीम ने लात मारी उस स्थान पर एक बड़ा सा गड्ढ़ा बन गया, जिसे आज के समय में ‘भी-लत तालाब’ के नाम से जाना जाता है। इस जगह पर एक तालाब बना हुआ है जो चित्तौड़गढ़ किले की सुंदरता को और भी उभारता है।
कहते हैं कि वह स्थान जहां भीम के घुटने ने विश्राम किया था, वहां भीम-घोड़ी कहलाता है और जिस तालाब पर यति द्वारा मुर्गे की आवाज़ में बांग दी गई थी, उसे ‘कुकड़ेश्वर’ स्थान कहकर बुलाया जाता है।
इस तरह से इतने विशाल महल को केवल एक ही रात में, दूसरे शब्दों में कहें तो एक रात भी पूरी नहीं मिली थी, केवल इतने से समय में दुर्ग को तैयार किया गया था। इसमें कोई दो-राय नहीं कि इस दुर्ग का बाद में कई राजा-महाराजाओं द्वारा पुन: निर्माण करवाया गया होगा, परंतु वह कार्य केवल इसकी खूबसूरती को बढ़ाने पर आधारित होगा।
राजवंशों का शासन
चित्तौड़गढ़ का क़िला कई राजवंशों के शासन का साक्षी रहा है, जैसे-
- मोरी या मौर्य (7वीं-8वीं शताब्दी ई.)
- प्रतिहार – 9वीं-10वीं शताब्दी ई.
- परमार – 10वीं-11वीं शताब्दी ई.
- सोलंकी – 12वीं शताब्दी ई.
- गुहीलोत या सिसोदिया
आक्रमण
क़िले के लम्बे इतिहास के दौरान इस पर तीन बार आक्रमण किए गए। पहला आक्रमण सन 1303 में अलाउद्दीन ख़िलज़ी द्वारा, दूसरा सन 1535 में गुजरात के बहादुरशाह द्वारा तथा तीसरा सन 1567-68 में मुग़ल बादशाह अकबर द्वारा किया गया था। प्रत्येक बार यहाँ जौहर किया गया। इसकी प्रसिद्ध स्मारकीय विरासत की विशेषता इसके विशिष्ट मजबूत क़िले, प्रवेश द्वार, बुर्ज, महल, मंदिर, दुर्ग तथा जलाशय स्वयं बताते हैं, जो राजपूत वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं।
इस किले में राजस्थान के माटी के लाल महाराणा प्रताप और दिल्ली के बादशाह अकबर के बीच भीषण युद्ध हुआ था, जो कई महीनों तक चला। परंतु बाद में महाराणा प्रताप को वहां की जनता के लिए चितौड़गढ़ का किला छोड़कर वर्षों तक जंगलों व पहाड़ों में विस्थापित जीवन जीना पड़ा। यह किला इतना विशाल है कि इसके भीतर ही बहुत सारे सुंदर-सुंदर मंदिर और शानदार महल हैं। इस महल को जो भी देखने आता है वह इसकी रचना को देख अचंभित हो जाता है।
प्रवेश द्वार
इस क़िले के सात प्रवेश द्वार हैं। प्रथम प्रवेश द्वार ‘पैदल पोल’ के नाम से जाना जाता है, जिसके बाद ‘भैरव पोल’, ‘हनुमान पोल’, ‘गणेश पोल’, ‘जोली पोल’, ‘लक्ष्मण पोल’ तथा अंत में ‘राम पोल’ है, जो सन 1459 में बनवाया गया था। क़िले की पूर्वी दिशा में स्थित प्रवेश द्वार को ‘सूरज पोल’ कहा जाता है।
कैसे जाये
किले तक पहुँचने का रास्ता आसान नहीं है; आपको किले तक पहुँचने के लिए एक खड़े और घुमावदार मार्ग से एक मील चलना होगा। इस किले में सात नुकीले लोहे के दरवाज़े हैं जिनके नाम हिंदू देवताओं के नाम पर पड़े। इस किले में कई सुंदर मंदिरों के साथ साथ रानी पद्मिनी और महाराणा कुम्भ के शानदार महल हैं। किले में कई जल निकाय हैं जिन्हें वर्षा या प्राकृतिक जलग्रहों से पानी मिलता रहता है।
पर्यटन स्थल
चित्तौड़गढ़ क़िला अनेक दर्शनीय और ऐतिहासिक स्थानों से परिपूर्ण है। पाडलपोल के निकट वीर बाघसिंह का स्मारक है। महाराणा का प्रतिनिधि बनकर इसने गुजरातियों से युद्ध किया था। भैरवपोल के निकट कल्ला और जैमल की छतरियाँ हैं। रामपोल के पास पत्ता का स्मारक पत्थर है। इस क़िले के अंदर और भी कई आकर्षक स्थल हैं, जो पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, जैसे-
- कुम्भा महल
- पद्मिनी महल
- रत्न सिंह महल
- फतेह प्रकाश महल
- कलिका माता मन्दिर
- समाधीश्वर मन्दिर
- कुम्भास्वामी मन्दिर
- सात बीस देवरी
- कीर्ति स्तम्भ
- जैन कीर्ति स्तम्भ
- गौमुख कुंड