मंगोल सम्राट चंगेज़ ख़ान का इतिहास | Changez Khan History in Hindi

Genghis Khan / Changez Khan / चंगेज़ ख़ान एक मंगोल शासक था, जिसने मंगोल साम्राज्य की स्थापना की और उसके विस्तार में अहम भूमिका निभाई। वह अपनी संगठन शक्ति, बर्बरता तथा साम्राज्य विस्तार के लिए प्रसिद्ध हुआ। उसकी फ़ौजें जिस भी इलाक़े से गुज़रती थीं अपने पीछे बर्बादी की दास्तान छोड़ जाती थीं। कहने को तो वो मंगोल शासक था, लेकिन उसने अपनी तलवार के बल पर एशिया के एक बड़े हिस्से पर क़ब्ज़ा कर लिया था। इतिहास में इतने बड़े हिस्से पर आज तक किसी ने कब्ज़ा नहीं किया।

मंगोल सम्राट चंगेज़ ख़ान का इतिहास | Changez Khan History in Hindi

चंगेज़ ख़ान, तारीख़ के पन्नों में दर्ज एक ऐसा नाम है जिससे शायद ही कोई नावाक़िफ़ हो। उसके ज़ुल्म और बहादुरी की कहानियां दुनियाभर में मशहूर हैं।

चंगेज़ ख़ान की प्रारम्भिक जीवन – Changez Khan Biography in Hindi

चंगेज खान का जन्म 1162 के आसपास आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था। उसका वास्तविक या प्रारंभिक नाम तेमुजिन /Temüjin (या तेमूचिन) था। उसके पिता का नाम येसूजेई था जो कियात कबीले का मुखिया था और उसका माँ का नाम होयलन था। उसके तीन सगे भाई व एक सगी बहन थी और दो सौतेले भाई भी थे। चंगेज़ खान की दांयी हथेली पर पैदाइशी खूनी धब्बा था।

चंगेज़ खान जब 9 वर्ष का था तब उसके पिता उसको अपनी होने वाली दुल्हन के परिवार के यहाँ ले गया। वापस लौटते समय चंगेज खा के पिता को एक प्रतिद्वंद्वी विद्रोहियों ने मार दिया। अपने पिता की मौत के बाद चंगेज़ खान अपने पिता के स्थान पर कबीले का प्रमुख बना। हालांकि कबीले के लोगो ने उस युवा लडके को मुखिया मानने से मना कर दिया। अब उसके परिवार में उसके सगे भाई और सौतले भाईयो ने उसे कबीले से बाहर निकाल दिया और उसे शरणार्थी का दर्जा दे दिया। अपने परिवार के ज्यादा दबाब में आने पर तेमुजिन ने अपने सौतले भाई बेख्तेर को मार दिया और परिवार का मुखिया बन गया।

बारह वर्ष की आयु में चंगेज़ खान की शादी बोरते के साथ कर दी गयी। इसके बाद उसकी पत्नी बोरते का भी विवाह् के बाद ही अपहरण कर लिया था। अपनी पत्नी को छुडाने के लिए उसे लड़ाईया लड़नी पड़ीं थी। इन विकट परिस्थितियों में भी वो दोस्त बनाने में सक्षम रहा। नवयुवक बोघूरचू उसका प्रथम मित्र था और वो आजीवन उसका विश्वस्त मित्र बना रहा। उसका सगा भाई जमूका भी उसका एक विश्वसनीय साथी था।

मंगोल साम्राज्य की स्थापना – Mangol Samrajya in Hindi

चंगेज़ खान जब 20 वर्ष का हुआ तो उसके पुराने विरोधी कबीलों ने उसको पकड़ लिया और कुछ समय के लिए उसे गुलाम बना लिया था, लेकिन बाद में उसको कबीले के लोगो ने एकजुट होकर उसे छुड़ा लिया। अब चंगेज़ खान ने छुटने के बाद धीर धीर अपनी शक्ति बढ़ाना शुरू कर दिया और कुछ ही समय ने उसकी सेना में 20000 लोग हो गये थे। अब उसने दुसरे कबीलों पर हमला कर उन कबीलों को अपने अंदर मिलाता गया और अपने साम्राज्य में मंगोलों की शक्ति बढाई। 1206 ईस्वी में तेमुजिन ने शक्तिशाली नैमन कबीले को हराकर मध्य और पश्चिमी मोंगोलिया पर अपना शासन बना लिया।

मंगोल के हमलो से भयंकर तबाही हुआ करती थी जिसमे भारी नरसंहार हुआ करता था। लगातार जंगो के जीतने के बाद दुसरे कबीले के सरदारों ने शान्ति के लिए चंगेज़ के आगे घुटने टेक दिए थे जिसके कारण तेमुजिन को चंगेज़ खान नाम दिया गया जिसका अर्थ होता है “विश्व विजेता ”। अब चंगेज खा को मंगोलों का देवता माना जाने लगा जो पुरी दुनिया पर राज करने के लिए पैदा हुआ था।

हालाँकि चंगेज़ दस वर्ष का छोटा लड़का ही था और उसका कोई मददगार नहीं था। फिर भी वह मेहनत करता चला गया और आख़िर में कामयाब हुआ। वह क़दम-क़दम आगे बढ़ता गया, यहाँ तक की अंत में मंगोलों की बड़ी सभा ‘कुरुलताई’ ने अधिवेशन करके उसे अपना ‘ख़ान महान’ या ‘कागन’ या सम्राट चुना।

बाद में कुछ समय बाद उन्होंने मंगोल साम्राज्य की स्थापना की और फिर चंगेज खान के नाम से प्रसिद्ध हुए। बाद में उन्होंने मंगोल आक्रमण शुरू किया जिसमे उन्हें विजय प्राप्त हुई और परिणामस्वरूप उन्होंने यूरोपीय एशिया पर धावा बोल दिया। इसमें करा खितई, काकेशस, खवारेजमिद साम्राज्य, पश्चिमी क्सिया और राजवंश पर किये गए आक्रमण भी शामिल है। उनके इस अभियान ने काफी समुदाय और लोहगो का जनसंहार (रक्तपात) किया था- जिनमे विशेष रूप से ख्वारेजमिन और क्सिया की जमीन शामिल है। उनके जीवन के अंत तक, मंगोल साम्राज्य ने मध्य एशिया और चाइना के अधिकतर भागो को हासिल कर लिया था।

चंगेज़ ने बड़ी सावधानी के साथ अपनी विजय यात्रा की तैयारियाँ कीं। उसने अपनी फ़ौज को लड़ाई की तालीम दी। सबसे ज़्यादा इसने अपने घोड़ों को सिखाया था और इस बात का ख़ास इन्तज़ाम किया था कि एक घोड़ा मरने के बाद दूसरा घोड़ा तुरन्त ही सिपाहियों के पास पहुँच सके, क्योंकि ख़ानाबदोशों के लिए घोड़ों से ज़्यादा महत्त्व की चीज़ और कोई नहीं होती है। इन सब तैयारियों के बाद उसने पूर्व की तरफ़ कूंच किया और उत्तर चीन और मंचूरिया के किन-साम्राज्यों को क़रीब-क़रीब खत्म कर दिया और पेकिंग पर भी क़ब्ज़ा कर लिया। उसने कोरिया जीत लिया। मालूम होता है कि दक्षिणी सुंगों को उसने अपना दोस्त बना लिया था। इन सुंगों ने किन लोगों के ख़िलाफ़ उसकी मदद भी की थी। बेचारे यह नहीं समझते थे कि इनके बाद उनकी भी बारी आने वाली है। चंगेज़ ने बाद में सुंगों को भी जीत लिया था।

चंगेज खान ने अपने अभियान चलाकर ईरान, गजनी सहित पश्‍चिम भारत के काबुल, कन्धार, पेशावर सहित उसने कश्मीर पर भी अधिकार कर लिया। इस समय चंगेज खान ने सिंधु नदी को पार कर उत्तरी भारत और असम के रास्ते मंगोलिया वापस लौटने की सोची। लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया। इस तरह उत्तर भारत एक संभावित लूटपाट और वीभत्स उत्पात से बच गया।

क्रूर मंगोल योद्धा ने अपने हमलों में इस कदर लूटपाट की और खूनखराबा किया कि एशिया में चीन, अफगानिस्तान सहित उजबेकिस्तान, तिब्बत और बर्मा आदि देशों की बहुत बड़ी आबादी का सफाया हो गया था।

महान चंगेज खान – Genghis Khan (Changez Khan)  in Hindi

चंगेज़ जब ‘महान’ या ‘कागन’ बना, उस समय उसकी उम्र 51 वर्ष की हो चुकी थी। यह जवानी की उम्र नहीं थी और इस उम्र पर पहुँचकर ज़्यादातर आदमी शांति और आराम चाहते हैं। लेकिन उसके लिए तो यह विजय यात्रा के जीवन की शुरुआत थी। यह ग़ौर करने की बात है, क्योंकि ज़्यादातर महान् विजेताओं ने मुल्कों को जीतने का काम जवानी में ही पूरा किया है। इससे हम यह नतीजा भी निकाल सकते हैं कि चंगेज़ ने जवानी के जोश में एशिया को नहीं रौंद डाला था। वह अधेड़ उम्र का एक होशियार और सावधान आदमी था और हर बड़े काम को हाथ में लेने से पहले उस पर विचार और उसकी तैयारी कर लेता था।

मृत्यु – Death of Genghis Khan

चंगेज खान की मौत 1227 में बहत्तर वर्ष की उम्र में हुयी थी और आज तक उसकी मौत के वास्तविक कारणों का पता नही चल सका है। कुछ इतिहासकार मानते है चंगेज खान की मौत शिकार के दौरान घोड़े पर गिरने से हुयी थी जबकि अन्य साँस के रोगों को उसकी मौत का कारण बताते है।

दुनियाभर में जितने भी बड़े महाराजा, सुल्तान या बादशाह रहे उनके मरने के बाद भी मक़बरों की शक्ल में उनके निशान बाक़ी रहे। ये मक़बरे शायद इसलिए बनाए गए क्योंकि वो चाहते थे कि लोग उन्हें हमेशा याद रखें। लेकिन हैरत की बात है कि चंगेज़ ख़ान ने अपने लिए एक अजीब वसीयत की थी। वो नहीं चाहता था कि उसके मरने के बाद उसका कोई निशान बाक़ी रहे।

लिहाज़ा उसने अपने साथियों को आदेश दिया कि उसके मरने के बाद उसे किसी गुमनाम जगह पर दफ़नाया जाए। वसीयत के मुताबिक़ ऐसा ही किया गया। सैनिकों ने उसे दफ़नाने के बाद उसकी क़ब्र पर क़रीब एक हज़ार घोड़ों को दौड़ाकर ज़मीन को इस तरह से बराबर कर दिया ताकि कोई निशान बाक़ी ना रहे। मंगोलिया के रहने वाले चंगेज़ ख़ान की मौत के बाद आठ सदियां बीत चुकी हैं। इसे लेकर तमाम मिशन चलाए गए, लेकिन उसकी क़ब्र का पता नहीं चला।

चंगेज़ ख़ाँ का उत्तराधिकारी

चंगेज़ ख़ाँ की मृत्यु के बाद उसका लड़का ओगताई ‘ख़ान-महान’ हुआ। चंगेज़ और उस ज़माने के मंगोलों के मुक़ाबले में वह दयावान और शान्तिप्रिय स्वभाव का था। वह कहा करता था कि “हमारे कागन चंगेज़ ने बड़ी मेहनत से हमारे शाही ख़ानदान को बनाया है। अब वक़्त आ गया है कि हम अपने लोगों को शान्ति दें, खुशहाल बनायें और उनकी मुसीबतों का कम करें।”

हालाँकि मरने से पहले चंगेज खा ने अपना अधिकतर साम्राज्य अपने पुत्र ओगताई के हाथो में सौंप दी थी और बाकी शेष को अपने अन्य पुत्रो में बाँट दिया था। इसके बाद पारिवारिक विद्रोह के कारण मंगोल साम्राज्य के अनेको टुकड़े हो गये और चंगेज खा का मंगोल बिखर गया।

मंगोल शासक पहले बौद्ध थे, लेकिन बाद मे धीरे-धीरे तुर्कों के सम्पर्क में आकर उन्होंने इस्लाम को अपना लिया।

एक नजर में चंगेज़ खान का इतिहास – Genghis Khan History in Hindi

  • अरब और ईरानी इतिहास-लेखकों की नज़र में चंगेज़ एक दानव है, उसे उन्होंने ‘ख़ुदा का क़हर’ कहा है। उसे बड़ा ज़ालिम आदमी बताया गया है। इसमें शक नहीं कि वह बड़ा ज़ालिम था। लेकिन उसके जमाने के दूसरे बहुत से शासकों में और उसमें कोई ज़्यादा फ़र्क़ नहीं था। भारत में अफ़ग़ान बादशाह, कुछ छोटे पैमाने पर, इसी तरह के थे। जब ग़ज़नी पर अफ़ग़ानों ने सन् 1150 ई. में क़ब्ज़ा किया तो पुराने ख़ून का बदला लेने के लिए इन लोगों ने उस शहर को लूट और जला तक दिया। सात दिनों तक ‘लूट-मार, बरबादी और मार-काट जारी रही। जो मर्द मिला, उसे क़त्ल कर दिया गया। तमाम स्त्रियों और बच्चों को क़ैद कर लिया गया। महमूदी बादशाहों (यानी सुल्तान महमूद के वंशजों) के महल और इमारतें, जिनका दुनिया में कोई सानी नहीं था, नष्ट कर दिये गए।’ मुसलमानों का अपने बिरादर मुसलमानों के साथ यह सलूक था। इसके, और यहाँ भारत में जो कुछ अफ़ग़ान बादशाहों ने किया उसके, और मध्य एशिया और ईरान में चंगेज़ की विनाशपूर्ण कार्रवाई के, दरजों में कोई फ़र्क़ नहीं था। चंगेज़ ख़ारज़म ख़ासतौर पर नाराज़ था, क्योंकि शाह ने उस राजदूत को क़त्ल करवा दिया था। उसके लिए तो यह ख़ूनी झगड़ा था। और जगहों पर भी चंगेज़ ने खूब सत्यानाश किया था, लेकिन उतना नहीं, जितना मध्य एशिया में।
  • शहरों को यों बरबाद करने के पीछे चंगेज़ की एक और भावना भी थी। उसकी ख़ानाबदोशी की तबीयत थी और वह क़स्बों और शहरों से नफ़रत करता था। वह खुले मैदानों में रहना पसंद करता था। एक दफा तो चंगेज़ को ख्याल हुआ कि चीन के तमाम शहर बरबाद कर दिये जाएँ तो अच्छा होगा। लेकिन खुशक़िस्मती कहिये कि उसने ऐसा किया नहीं। उसका विचार था कि सभ्यता और ख़ानाबदोशी की ज़िन्दगी को मिला दिया जाय, लेकिन न तो यह सम्भव था और न है।
  • चंगेज़ ख़ाँ के नाम से शायद यह ख्याल हो कि वह मुसलमान था, लेकिन वह मुसलमान नहीं था। यह एक मंगोल नाम है। मज़हब के मामले में चंगेज़ बड़ा उदार था। उसका अपना मज़हब अगर कुछ था तो शमाबाद था, जिसमें ‘अविनाशी नीले आकाश’ की पूजा होती थी। वह चीन के ‘ताओ धर्म’ के पंडितों से अक्सर खूब ज्ञान-चर्चा किया करता था। लेकिन वह खुद शमा-मत पर ही क़ायम रहा और जब कठिनाई में होता, तब आकाश का ही आश्रय लिया करता था।
  • चंगेज़ को मंगोलों की सभा ने ‘ख़ान-महान’ चुना था। यह सभा असल में सामन्तों की सभा थी, जनता की नहीं, और यों चंगेज़ इस फ़िरके का सामन्ती सरदार था।
  • वह पढ़ा-लिखा नहीं था और उसके तमाम अनुयायी भी उसी की तरह थे। शायद वह बहुत दिनों तक यह भी नहीं जानता था कि लिखने जैसी भी कोई चीज़ होती है।
  • संदेश ज़बानी भेजे जाते थे और आमतौर पर छन्द में रूपकों या कहावतों के रूप में होते थे। ताज्जुब तो यह है कि ज़बानी संदेशों से किस तरह इतने ब़ड़े साम्राज्य का कारबार चलाया जाता था। जब चंगेज़ को मालूम हुआ कि वह वड़ी फायेदमन्द चीज़ है और उसने अपने पुत्रों और मुख्य सरदारों को इसे सीखने का हुक्म दिया। उसने यह भी हुक्म दिया था कि मंगोलों का पुराना रिवाज़ी क़ानून और उसकी अपनी उक्तियाँ भी लिख डाली जाएँ। मुराद यह थी कि यह रिवाज़ी क़ानून सदा-सर्वदा के लिए ‘अपरिवर्तनशाल क़ानून’ है, और कोई इसे भंग नहीं कर सकता था। बादशाह के लिए भी इसका पालन करना ज़रूरी था। लेकिन यह ‘अपरिवर्तनशील क़ानून’ अब अप्राप्य है और आजकल के मंगोलों को न तो इसकी कोई याद है और न ही इसकी कोई परम्परा ही बाक़ी रही है।

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