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राहत इन्दौरी ग़ज़ल और शायरी - रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं Rahat Indori Shayari & Gajal

राहत इन्दौरी ग़ज़ल और शायरी – रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं Rahat Indori Gajal shayari

राहत इन्दौरी ग़ज़ल- रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर अपने रास्ते में

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Janab Bashir Badr – Aansuon se dhuli khushi ki tarah

Janab Bashir Badr – Aansuon se dhuli khushi ki tarah

बशीर बद्र ग़ज़ल  – (आंसुओं से धूलि ख़ुशी कि तरह) आंसुओं से धूलि ख़ुशी कि तरह रिश्ते होते है शायरी कि तरह हम खुदा बन के आयेंगे वरना हम से मिल जाओ आदमी कि तरह बर्फ सीने कि जैसे – जैसे गली आँख खुलती गयी कली कि तरह जब  कभी बादलों में घिरता हैं चाँद लगता है

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Janab Munawwar Rana, मुनव्वर राणा ग़ज़ल – हर एक आवाज़ उर्दू को फरियादी बताती है

Janab Munawwar Rana – Har ek aawaaz Urdu ko fariyadi batati hain

मुनव्वर राणा ग़ज़ल  – हर एक आवाज़ उर्दू को फरियादी बताती है हर एक आवाज़ उर्दू को फरियादी बताती है ये पगली फिर भी अब तक खुद को शहजादी बताती है कई बातें मोहब्बत सबको बुनियादी बताती हैं जो परदादी बताती थी वही दादी बताती हैं जहाँ पिछले कई बरसों से काले नाग रहते हैं वहाँ

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