रहीम दास जी की जीवनी | Rahim Das Biography in Hindi

Poet Rahim – रहीम मध्यकालीन सामंतवादी संस्कृति के कवि थे। वे कवि के साथ-साथ एक अच्छा सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, ज्योतिष, व विद्वान थे। रहीम सांप्रदायिक सदभाव तथा सभी धर्मो के प्रति समादर भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे। रहीम कलम और तलवार के धनी थे और मानव प्रेम के सूत्रधार थे।

मुस्लिम धर्म के अनुयायी होते हुए भी रहीम ने अपनी काव्य रचना द्वारा हिन्दी साहित्य की जो सेवा की वह अद्भुत है। रहीम की कई रचनाएँ प्रसिद्ध हैं जिन्हें उन्होंने दोहों के रूप में लिखा। रहीम के बारे में यह कहा जाता है कि वह धर्म से मुसलमान और संस्कृति से शुद्ध भारतीय थे। तो चलिए जाने rahim das ka jivan parichay..

Rahim Das Biography

रहीम का जीवन परिचय – Rahim Das Biography in Hindi

पूरा नामअब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना, (रहीम दास) – Rahim Das – Abdul Rahim Khan-I-Khana
जन्म दिनांक17 दिसम्बर 1556 ई.
जन्म स्थानलाहौर (अब पाकिस्तान)
मृत्यु1627 ई. (उम्र- 70)
कर्म भूमिदिल्ली (भारत)
पिता का नामबैरम खान
माता का नामसुल्ताना बेगम
उपलब्धिकवि
मुख्य रचनाएरहीम रत्नावली, रहीम विलास, रहिमन विनोद, रहीम ‘कवितावली, रहिमन चंद्रिका, रहिमन शतक,

प्रारंभिक जीवन – Early Life of Rahim Das 

रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम (अब्दुर्रहीम) ख़ानख़ाना था। आपका जन्म 17 दिसम्बर 1556 को लाहौर (अब पाकिस्तान) में हुआ। रहीम के पिता का नाम बैरम खान तथा माता का नाम सुल्ताना बेगम था, जो एक कवियित्री थी। उनके पिता बैरम ख़ाँ मुगल बादशाह अकबर के संरक्षक थे। कहा जाता है कि रहीम का नामकरण अकबर ने ही किया था।

रहीम को वीरता, राजनीति, राज्य-संचालन, दानशीलता तथा काव्य जैसे अदभुत गुण अपने माता-पिता से विरासत में मिले थे। बचपन से ही रहीम साहित्य प्रेमी और बुद्धिमान थे।

उनके पिता बैरम खान बादशाह अकबर के बेहद करीबी थे। उन्होने अपनी कुशल नीति से अकबर के राज्य को मजबूत बनाने में पूरा सहयोग दिया। किसी कारणवश बैरम खाँ और अकबर के बीच मतभेद हो गया। अकबर ने बैरम खाँ के विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया और अपने उस्ताद की मान एवं लाज रखते हुए उसे हज पर जाने की इच्छा जताई। परिणामस्वरुप बैरम खाँ हज के लिए रवाना हो गये।

रहीम के पिता की मृत्यु –

बैरम खाँ हज के लिए जाते हुए गुजरात के पाटन में ठहरे और पाटन के प्रसिद्ध सहस्रलिंग तालाब में नौका विहार या नहाकर जैसे ही निकले, तभी उनके एक पुराने विरोधी – अफ़ग़ान सरदार मुबारक ख़ाँ ने धोखे से उनकी पीठ में छुरा भोंककर उनका वध कर डाला। यह मुबारक खाँ ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए किया था।

बैरम खाँ की पत्नी सुल्ताना बेगम अपने कुछ सेवकों सहित बचकर अहमदाबाद आ गई। अकबर को घटना के बारे में जैसे ही मालूम हुआ, उन्होंने सुल्ताना बेगम को दरबार वापस आने का संदेश भेज दिया। रास्ते में संदेश पाकर बेगम अकबर के दरबार में आ गई। ऐसे समय में अकबर ने अपने महानता का सबूत देते हुए इनको बड़ी उदारता से शरण दिया और रहीम के लिए कहा “इसे सब प्रकार से खुश रखो। इसे यह पता न चले कि इनके पिता खान खानाँ का साया सर से उठ गया है। बाबा जम्बूर को कहा यह हमारा बेटा है। इसे हमारी आँखो के सामने रखा करो। इस प्रकार अकबर ने रहीम का पालन- पोषण एकदम अपने बेटे जैसा किया।

कुछ दिनों के बाद अकबर ने विधवा सुल्ताना बेगम से विवाह कर लिया। अकबर ने रहीम को शाही खानदान के अनुरुप “मिर्जा खाँ’ की उपाधि से सम्मानित किया।

शिक्षा- दीक्षा –

रहीम की शिक्षा- दीक्षा अकबर की उदार धर्म- निरपेक्ष नीति के अनुकूल हुई। मुल्ला मुहम्मद अमीन रहीम के शिक्षक थे। इन्होने रहीम को तुर्की, अरबी व फारसी भाषा की शिक्षा व ज्ञान दिया। इन्होनें ही रहीम को छंद रचना, कविता, गणित, तर्कशास्त्र तथा फारसी व्याकरण का ज्ञान भी करवाया। इसके बदाऊनी रहीम के संस्कृत के शिक्षक थे। इसी शिक्षा- दिक्षा के कारण रहीम का काव्य आज भी हिंदूओं के गले का कण्ठहार बना हुआ है।

सम्राट अकबर के दरबार मे –

अकबर के दरबार को प्रमुख पदों में से एक मीर अर्ज का पद था। यह पद पाकर कोई भी व्यक्ति रातों रात अमीर हो जाता था, क्योंकि यह पद ऐसा था, जिससे पहुँचकर ही जनता की फरियाद सम्राट तक पहुँचती थी और सम्राट के द्वारा लिए गए फैसले भी इसी पद के जरिये जनता तक पहुँचाए जाते थे। इस पद पर हर दो- तीन दिनों में नए लोगों को नियुक्त किया जाता था। सम्राट अकबर ने इस पद का काम-काज सुचारु रुप से चलाने के लिए अपने सच्चे तथा विश्वास पात्र अमीर रहीम को मुस्तकिल मीर अर्ज नियुक्त किया। यह निर्णय सुनकर सारा दरबार सन्न रह गया था। इस पद पर आसीन होने का मतलब था कि वह व्यक्ति जनता एवं सम्राट दोनों में सामान्य रुप से विश्वसनीय है।

28 वर्ष की उम्र में अकबर ने रहीम को खानाखाना की उपाधि से नवाज़ा था। इससे पहले यह सम्मान केवल उनके पिता बैरम खान को प्राप्त हुआ था। उन्होंने बाबर की आत्मकथा का तुर्की से फारसी में अनुवाद किया था। उन्हें अकबर के नवरत्नों में शामिल किया गया था। वे एक अच्छे सेनापति भी थे। इसके साथ रहीम बादशाह अकबर के पुत्र सलीम का अतालीक (गुरु) रहे थे।

रहीम की शादी –

रहीम दास का विवाह मात्र 16 वर्ष की वायु में जीजा कोका की बहन माहबानों से हुवा था। माहबानो से अब्दुल रहीम को दो बेटियां और तीन बेटे थे। इसके बाद रहीम ने दो और विवाह किये थे।

रहीम की मृत्यु और कब्र –

1626 ई. में 70 वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु हो गयी। दिल्ली में स्थित ख़ान ए ख़ाना के नाम से प्रसिद्ध यह मक़बरा अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना का है। इस मक़बरे का निर्माण रहीम के द्वारा अपनी बेगम की याद में करवाया गया था, जिनकी मृत्यु 1598 ई. में हो गयी थी। बाद में खुद रहीम को 1627 ई. में उनके मृत्यु के बाद इसी मक़बरे में दफनाया गया।

एक नज़र रहीम के ग्रंथो पर – Rahim das books and poems 

रहीम के ग्रंथो में रहीम दोहावली या सतसई, बरवै, मदनाष्ठ्क, राग पंचाध्यायी, नगर शोभा, नायिका भेद, श्रृंगार, सोरठा, फुटकर बरवै, फुटकर छंद तथा पद, फुटकर कवितव, सवैये, संस्कृत काव्य प्रसिद्ध हैं।

रहीम ने तुर्की भाषा में लिखी बाबर की आत्मकथा “तुजके बाबरी” का फारसी में अनुवाद किया। “मआसिरे रहीमी” और “आइने अकबरी” में इन्होंने “खानखाना” व रहीम नाम से कविता की है।

रहीम व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था। वे मुसलमान होकर भी कृष्ण भक्त थे। रहीम ने अपने काव्य में रामायण, महाभारत, पुराण तथा गीता जैसे ग्रंथों के कथानकों को लिया है।

आपने स्वयं को को “रहिमन” कहकर भी सम्बोधित किया है। इनके काव्य में नीति, भक्ति, प्रेम और श्रृंगार का सुन्दर समावेश मिलता है।

रहीम ने अपने अनुभवों को लिस सरल शैली में अभिव्यक्त किया है वह वास्तव में अदभुत है। आपकी कविताओं, छंदों, दोहों में पूर्वी अवधी, ब्रज भाषा तथा खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है। रहीम ने तदभव शब्दों का अधिक प्रयोग किया है।


और अधिक लेख – 

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29 thoughts on “रहीम दास जी की जीवनी | Rahim Das Biography in Hindi”

  1. sukhmangal singh

    रहीम का विवाह अकबर बादशाह की छत्र छाया में अल्प आयु १६ वर्ष की आयु में किया गया जबकि पिता का साया उनके शिर से उठ चुका था | उन्हें शिक्षा -विविध भाषाओं में दी गई| विविध कलाओं
    के जानकार होने के कारण ही अकबर बादशाह ने रहीम को मीर अर्ज का पद देकर सुशोभित किया |
    रहीम मुसलमान होते हुए भी कृष्ण भक्त भी थे उन्होंने हिन्दू धर्म के ग्रंथों का भी खूब अध्ययन किया | रहीम की कविताएँ पूर्व की छाप से प्रभावित थीं | कुल मिलाकर कहने में वीनां संकोच के कहा जा सकता है रहीम में अनेकता में एकता के गुणों से परिपूर्ण थे |

  2. Everything in this information is correct but main life turns and story should be in one para… Butter I loved it ….thanks …. .

  3. धन्यवाद आपको रहीम दास के जीवन परिचय के लिए। रहीम दास के साहित्यिक योगदान के बारे में पढ़कर और उनके जीवन की कठिनाइयों से परिचित होकर मुझे अत्यंत प्रेरणा मिली है।

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