Baba Sri Chand ji / श्रीचंद को बाबा श्रीचंद जी के नाम से भी जाने जाते है। वे शिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के ज्येष्ट पुत्र और उदासीन सम्प्रदाय के संस्थापक थे। श्री चंद जी महाराज जी ने बहुत कम उम्र में योग की तकनीकों में महारत हासिल कर ली थी। वह अपने पिता, बाबा नानक के प्रति जीवन भर समर्पित रहे और उदासीन सम्प्रदाय की स्थापना की। उन्होंने विश्व भ्रमण की और गुरु नानक के बारे में जागरूकता फैलाई। बाबा श्रीचंद जी को भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। आइये जाने बाबा श्रीचंद की जीवनी और इतिहास के बारे में…
बाबा श्री चंद जी इतिहास – Baba Sri Chand ji History in Hindi
बाबा श्रीचंद लुप्तप्राय उदासीन संप्रदाय के पुन: प्रवर्तक आचार्य है। उदासीन गुरुपरंपरा में उनका 165 वाँ स्थान हैं। उनकी आविर्भावतिथि संवत 1551 भाद्रपद शुक्ला नवमी तथा अंतर्धानतिथि संवत् 1700 श्रावण शुक्ला पंचमी है। बाबा श्रीचंद के प्रमुख शिष्य श्री बालहास, अलमत्ता, पुष्पदेव, गोविन्ददेव, गुरुदत्त भगवद्दत्त, कर्ताराय, कमलासनादि मुनि थे।
बाबा श्रीचंद के नाम से बटाला के समीप गांव नानक चक्क स्थित है। इस स्थान पर बाबा श्रीचंद जी ने काफी समय व्यतीत किया। यह गद्दी उदासीन अखाड़ा संगल वाला अमृतसर के अधीन है। बाबा श्री चंद जी द्वारा जिस स्थान पर भक्ती की गई थी, अब उस स्थान पर तपोस्थान बाबा श्री चंद जी का गुरूद्वारा टाहली साहिब संगत की तरफ से स्थापित किया गया है। बताया जाता है कि इस स्थान पर बाबा श्री चंद जी महाराज जी ने 1635 में यहां आकर तपस्या की थी व यहां पर धूनी रमाई थी। तभी से ही श्रद्दालुओं की तरफ से यहां बाबा जी का धूना रमाया हुआ है। सदियों से ही उस स्थान पर टाहली का पेड़ सुशोभित है।
बाबा श्रीचंद की जीवनी – Baba Sri Chand ji Biography in Hindi
प्रारंभिक जीवन – Early Life of Baba Sri Chand ji
बाबा श्रीचंद का जन्म 8 सितम्बर 1494 को पंजाब के कपूरथला जिला के सुल्तानपुर लोधी में हुवा था। उनका माता का नाम सुलखनी था। गुरु नानक विश्व भ्रमण के लिए निकले, बाबा श्री चंद की माँ, माता सुलखानी उन्हें और उनके छोटे भाई, लखमी दास को रावी नदी किनारे पर पाखोके रंधावे में अपने माता-पिता के घर ले गईं।
जन्म के समय उनके शरीर पर विभूति की एक पतली परत तथा कानों में मांस के कुंडल बने थे। अतः लोग उन्हें भगवान शिव का अवतार मानने लगे। जिस अवस्था में अन्य बालक खेलकूद में व्यस्त रहते हैं, उस समय बाबा श्रीचंद गहन वन के एकांत में समाधि लगाकर बैठ जाते थे।
उनकी आध्यात्मिक शिक्षा पूरा करने के लिए, गुरु नानक देव जी ने बाबाजी को पंडित परषोत्तम दास कौल के स्कूल में पढ़ने के लिए श्रीनगर भेजा। उन्होंने अपनी कक्षा में हमेशा अव्वल रहे। वे इतने अच्छे छात्र थे कि वे प्रसिद्ध सोम नाथ त्रिपाठी को शास्त्र शास्त्रार्थ में पराजित करने में सफल रहे। बाबा श्रीचंद जी अपनी युवावस्था में ढाई वर्ष श्रीनगर में रहे। श्रीचंद जी ने बहुत छोटी उम्र में ही योग के तरीकों में महारथ हासिल कर लिए थे।
कुछ बड़े होने पर वे देश भ्रमण को निकल पड़े। उन्होंने अपने शिष्यों के गृहस्थ जीवन को त्याग कर तिब्बत, कश्मीर, सिन्ध, काबुल, कंधार, बलूचिस्थान, अफगानिस्तान, गुजरात, पुरी, कटक, गया आदि स्थानों पर जाकर साधु-संतों के दर्शन किये। वे जहां जाते, वहां अपनी वाणी एवं चमत्कारों से दीन-दुखियों के कष्टों का निवारण करते थे।
वे अपने पिता गुरु नानक के प्रति हमेशा समर्पित रहे तथा उन्होंने उदासीन सम्प्रदाय की नीव रखी। उन्होंने दूर-दूर तक यात्रा की और गुरु नानक के बारे में जागरूकता फैल गई।
निधन – Baba Sri Chand Ji
बाबा श्रीचंद की मृत्यु माघ सदी में 13 जनवरी 1629 को किरतपुर में हुई। उदासीन सम्प्रदाय परम्पराओं का मानना है की बाबा श्रीचंद कभी मर नहीं सकते। वे चम्बा के जंगल में गायब हो गए। बाबा श्रीचंद के अदृश्य होने के बाद बाबा गुरदित्ता उदासीन सम्प्रदाय के प्रमुख उत्तराधिकारी बने।
उदासीन सम्प्रदाय – Udasin Sampraday
उदासीन सम्प्रदाय का इतिहास
उदासी, जो कि संस्कृत के ‘उदास’ शब्द से आया है, इसका अर्थ है- ‘परित्याग करना’ या ‘वैराग्य लेना’। उदासी सम्प्रदाय सिक्ख धर्म के सम्प्रदायों में से एक है। उदासी सम्प्रदाय का आरम्भ 1439 ई. में हुआ था। इसके प्रवर्तक नानक के पुत्र श्रीचन्द्र थे। सिक्खों के मुख्य रूप से दो सम्प्रदाय हैं- ‘सहिजधारी’ और ‘सिंह’। सहिजधारियों एवं सिंहों के भी कई उप-सम्प्रदाय हैं।
गुरु नानक के बाद जहाँ सिखों के दूसरे गुरु अंगद देव जी ने सिख धर्म का प्रचार-प्रसार किया, वहीं बाबा श्रीचंद ने उदासी संप्रदाय का। चौथे गुरु अमरदास का स्पष्ट कहना था कि सिख धर्म और उदासी संप्रदाय दोनों अलग-अलग है। इसीलिए, सिख धर्म भी उदासी और गृहस्थ – इन दो भागों में बँट गया था। गृहस्थों में भी अमृतधारी और सहजधारी गुट थे।
उदासी पंथ के लोग बाल कटवाते हैं और उन्हें दाढ़ी बनाने की इजाज़त होती है। छठे सिक्ख गुरु हरगोबिन्द सिंह के बड़े पुत्र बाबा गुरुदित्ता के नेतृत्व में इस संप्रदाय ने सिक्खों के गृहक्षेत्र पंजाब के उत्तर और पूर्व में धर्म प्रचारक का कार्य किया। उन्होंने ‘खालसा’ के प्रतीक पांच ककार- ‘केश’, ‘कंघा’, ‘कृपाण’, ‘कच्छा’ और ‘कड़ा’- को नहीं अपनाया। उदासी पंथ के अनुयायियों का अमृतसर, पंजाब में प्रमुख सिक्ख मंदिर, स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर) के बग़ल में अपना अलग मंदिर है।
बाबा श्री चंद जी कहानी – Baba Shri Chand ji story
एक बार बाबा श्रीचंद जी विश्व भ्रमण करते-करते गांव कोटली कादराबाद पहुंचे। इनके साथ भक्त भाई कमलिया जी भी थे। बाबा श्री चंद जी ने भाई कमलिया जी को गांव भिक्षा मांगने के लिए गांव भेजा व खुद गांव के बाहर धुनी लगाकर बैठ गए। भाई कमलिया जी पूरे गांव घूमे, लेकिन किसी भी गांव वासी ने उन्हें भिक्षा नहीं दी, उल्टा कहा कि पता नहीं कहां-कहां से साधु चले आते हैं। यह बात सुनने के बाद बाबा श्रीचंद जी ने पूरे गांव को थेह [नाश] होने का श्राप देकर समीप के गांव चले गए। तब से लेकर लगभग सैंकड़ों वर्षो तक वहां पर कोई भी आदमी अपना घर नहीं बना सका। अगर कोई भी इमारत तैयार करता था तो वह रात्रि के समय ही ढह जाती।
इसके बाद वे पास के गांव गए जिसका नाम नानक चक्क पड़ा। वहां पर बाबा जी ने अपनी धुनी लगाई व भाई कमलिया जी को दोबारा भिक्षा मांगने हेतु गांव भेजा। गांव की एक महिला जो कि काफी वृद्घ अवस्था में थी उसके पास अपने खाने हेतु चार रोटियां पड़ी थी उसने वही रोटियां भाई कमलिया जी को दे दी। भाई कमलिया जी रोटियां लेकर बाबा श्रीचंद जी के पास पहुंचे, उनके साथ वृद्ध माता भी थी। बाबा श्रीचंद जी ने माता से उनका नाम पूछा तो अपना नाम हरोदेवी बताया। श्रीचंद जी ने उन्हें वर दिया माता हरी भरी रहो तो माता ने हाथ जोड़ कर बाबा जी से कहा कि महाराज मेरी वृद्घ अवस्था है मेरा अब कोई नहीं हैं, आपने मुझे यह वर देकर मुझे असमंजस में डाल दिया है। माता हरो देवी ने श्रीचंद जी से कहा अपने जो गांव कोटली कादराबाद को थेह होने का वर दिया है आप उसे दोबारा आबाद होने का वर दें। इसके बाबा चंद जी ने ने दोबारा गांव को आबाद होने का वर दिया।
श्री बाबा श्री चंद जी की आरती – Shri Chand Ji Ki Aarti
(बाबा श्री चंद जी मंत्र – बाबा श्री चंद जी मंत्र इन पंजाबी)
ॐ जय श्रीचन्द्र यती,
स्वामी जय श्रीचन्द्र यती |
अजर अमर अविनाशी योगी योगपती |
सन्तन पथ प्रदर्शक भगतन सुखदाता,
अगम निगम प्रचारक कलिमहि भवत्राता |
कर्ण कुण्डल कर तुम्बा गलसेली साजे,
कंबलिया के साहिब चहुँ दीश के राजे |
अचल अडोल समाधि प्झासा सोहे
बालयती बनवासी देखत जग मोहे |
कटि कौपीन तन भस्मी जटा मुकुट धारी,
धर्म हत जग प्रगटे शंकर त्रिपुरारी |
बाल छबी अति सुन्दर निशदिन मुस्काते,
भ विशाल सुलोचन निजानन्दराते |
उदासीन आचार्य करूणा कर देवा,
प्रेम भगती वर दीजे और सन्तन सेवा |
मायातीत गुसाई तपसी निष्कामी,
पुरुशोत्तम परमात्म तुम हमारे स्वामी |
ऋषि मुनि ब्रह्मा ज्ञानी गुण गावत तेरे,
तुम शरणगत रक्षक तुम ठाकुर मेरे |
जो जन तुमको ध्यावे पावे परमगती,
श्रद्धानन्द को दीजे भगती बिमल मती |
अजर अमर अविनाशी योगी योगपती |
स्वामी जय श्रीचन्द्र यती
(तर्ज-जय जगदीश हरे)
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