Lost City of Atlantis Story in Hindi :- वैसे तो पैराणिक कथाओ के अनुसार द्वापर युग की कृष्ण नगरी द्वारका पानी में समां गई थी और आज भी समुद्र में उसके अवशेष पाए जाते हैं। दरअसल भारत के गुजरात प्रांत में कैम्बे की खाड़ी में प्राचीन द्वारका शहर के अस्तित्व मिले हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह भगवान कृष्ण की प्राचीन नगरी द्वारका है। हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार, भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था। यह श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है। यह भारत के सात अति प्राचीन शहरों में से एक है। आपको बता दें ऐसा ही एक शहर जो कि पूरे एशिया जितना बड़ा था पानी में समा गया था जिसका नाम था एटलांटिस। वैसे तो ऐतिहासिक शहर एटलांटिस से जुड़ी कई कहानियां मशहूर हैं। कई वैज्ञानिकों और इतिहासकारों को भी इसके होने का पूरा यकीन है। माना जाता है कि यह शहर एशिया से भी बड़ा था, लेकिन एक दिन समुद्र इसे निगल गया। आइए जानते हैं इस शहर के बारे में…
एटलांटिस का खोया हुआ शहर – Atlantis City in Hindi
आज से करीब 2300 वर्ष पहले एक मसूर ग्रीक फिलोसोफर प्लेटो ने अटलांटिस के बारे में दुनिया को परिचय करवाया था। उन्होंने बताय की एक पूरा का पूरा शहर पानी में डूब गया और इतिहासकार उसे आज तक खोजने में लगे हैं। यह है ग्रीक सभ्यता का शहर ‘एंटलाटिस’। इसे एटलांटिस का खोया हुआ शहर भी कहते हैं। माना जाता है कि अटलांटिक महासागर में एटलांटिस एक टापू पर स्थित था। इस शहर का जिक्र यूनान के दार्शनिक और गणितज्ञ प्लेटो की कहानियों में मिलता है। 360 ईसा पूर्व प्लेटो ने इसे दुनिया का सर्वाधिक सभ्य नागरिक सभ्यता का केंद्र माना था। समुद्र में डूबकर एक पहेली बन जाने वाले इस शहर को पूरे यूरोप का केंद्र भी कहा जाता रहा।
दार्शनिक प्लेटो के अनुसार कैसी थी अटलांटिस सभ्यता –
अटलांटिस को उस समय धरती की सबसे खुशहाल जगह माना जाता था। इस शहर में आधे इंसान और आधे देवी-देवता रहा करते थे। यह शहर दरहसल एक द्वीप था जो चारो तरफ से पानी से घिरा हुआ था। यहाँ के लोग आत्मनिर्भर थे। वहाँ सोना और चाँदी के साथ ही बहुमूल्य पत्थरों की भरमार थी। द्वीप पर दूर-दूर तक हरे-भरे मैदान फैले थे। जमीन बहुत उपजाऊ थी। बड़ी तादाद में पशु-पक्षी थे, वही फलों के बगीचे भी थे। शहर को पाँच क्षेत्रों में बाँटा गया था। इस प्रकार शासन व्यवस्था भी आदर्श थी। एक दिन प्रलय आया और सबकुछ समाप्त हो गया। पूरी सभ्यता का नामों-निशान ही मिट गया।
अटलांटिक महासागर में दफन –
समय-समय पर इतिहासकार दावा करते रहे हैं कि यह शहर अब भी कहीं अटलांटिक महासागर में दफन है और इसके सबूत मिलते रहे हैं। मशहूर लेखक चार्ल्स बर्लिट्ज ने भी अपनी किताब ‘द मिस्ट्री ऑफ एटलांटिस’ में इसके अस्तित्व को साबित किया है और इसके गायब होने को बरमुडा ट्राएंगल की तरह ही रहस्यमयी माना है। कई वैज्ञानिकों और इतिहासकारों का मानना है कि वे एक ना एक दिन इस शहर को भी खोज लेंगे।
क्या है इस शहर की हकीकत –
अब तक एटलांटिस शहर का अस्तित्व दार्शनिक प्लेटो की कल्पना ही माना जाता है। कोई भी इतिहासकार इस शहर के होने के दावे को साबित नहीं कर सका है, क्योंकि अब तक इस शहर का कोई भी अवशेष समुद्रतल में नहीं खोजा जा सका। इसका क्षेत्रफल पूरे एशिया के क्षेत्रफल से भी ज्यादा बताया जाता है। ऐसे में यह असंभव लगता है कि इतना बड़ा क्षेत्र ओशियोग्राफी की आधुनिक तकनीकों, पनडुब्बियों और गहन खोज के बावजूद वैज्ञानिकों की नजरों से बचा रह जाए।
क्या समुद्र पूरे शहर को निगल सकता है –
प्लेटो की कहानी भी अटलांटिक महासागर के जिस हिस्से में इसके होने का दावा करती है, वहां इतनी बड़ी जगह ही नहीं है, जिसमें यह विशाल शहर समा सके। क्या समुद्र पूरे शहर को निगल सकता है? दुनियाभर में इतिहास में जिज्ञासा रखने वाले लोग आज भी ‘खोए’ हुए शहर एटलांटिस को ढूंढ रहे हैं।
Where is the lost city of Atlantis located?
प्लेटो के अनुसार यह शहर अटलांटिस ओसन की गहराइयों में होना चाहिए और कुछ एक्सपर्ट्स की राय है कि यह शहर स्पेन के पास मौजूत हो सकता है।कुछ एक्सपर्ट्स की खोज के अनुसार यह शहर अंटार्कटिका के बर्फीले क्षेत्रों में छुपी हो सकती है। लेकिन आज तक इस सिटी की लोकेशन एक रहस्य बनी हुई है।
मान्यताएं और कहानी
इस शहर से जुड़े कई कहानिया प्रचलित हैं। एक कहानी के अनुसार इस शहर का निर्माण ओसाईडेन ने किया था जो ग्रीक माइथोलॉजी में समुद्र के देवता माने जाते हैं। ओसाईडेन एक बार सबसे बड़े द्वीप की खोज में थे। तभी उन्हें एक द्वीप मिला जहाँ बेहद खूबसूरत लोग रहते थे। वहाँ एक खूबसूरत महिला भी रहती थी जिसका नाम क्लिटो था। ओसाईडेन को उस महिला प्यार हो गया और उन्होंने उस बंजर द्वीप में भव्य शहर का निर्माण कर दिया। एक और कहानी के अनुसार यहाँ के लोग तारामंडल से 50000 साल पहले आए थे और वह इस ग्रह के नहीं थे। वह आज के इंसानो से कई ज़्यादा लंबे, गोरे और खूबसूरत थे। इनके पास कुछ चमत्कारी शक्तियां भी थी। वह मौसम और ज्वालामुखी को नियंत्रित कर सकते थे और उनकी औसत उम्र 800 साल होती थी। यहां के लोग टेक्नोलॉजी में भी बहुत आगे थे, उनके पास एक ऐसा यंत्र भी था जिसके जरिए वह टाइम और स्पेस से ऊर्जा प्राप्त करते थे।
प्लेटो ने कैसे जाना –
असल में प्लेटो की यह बात पीढ़ी दर पीढ़ी चली आई है। उनकी बात का मुख्य आधार उनका एक रिश्तेदार क्रिटियास था। क्रिटियास का कहना था कि उसने अपने दादा ड्रोपिडेस से इस बारे में सुना था। ड्रोपिडेस और उनके बाद के लोगों तक यह कहानी सोलान से पहुँची थी। सोलान का जिक्र 640 बीसी से 558 बीसी के मध्य आता है। कहा जाता है कि उस समय उनका बड़ा सम्मान किया जाता था और उनकी कही बातों को सच माना जाता था। सोलान की मृत्यु के दो सौ सालों बाद प्लेटो ने यह कहानी लिखी थी।
कुछ इतिहासकार कहते हैं कि स्वयं सोलान ने इस कहानी को पुख्ता नहीं बताया था। सोलान के हवाले से कहा जाता है कि कहानी पूरी तरह से सच नहीं है और उन्होंने इसे इजिप्ट के एक धर्मगुरु से सुनी थी। बाद में उन्होंने इसका अनुवाद कविता के रूप में किया था। हालाँकि जहाँ तक प्लेटो का प्रश्न है, उनकी लिखी बात ऐतिहासिक कम और दार्शनिक अधिक लगती है।