Pratibha Patil / श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल भारत की प्रथम ‘महिला एवं बारहवीं निर्वाचित राष्ट्रपति (12th President of India) है। इनका राष्ट्रपति बनना नारी शक्ति के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण अध्याय साबित होगा। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में 21 जुलाई 2007 का दिन इस कारण काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहेगा, क्योंकि देश की आजादी के 60 वर्ष बाद एक महिला को प्रथम बार राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने का मौका मिला।
प्रतिभा पाटिल का परिचय – Pratibha Patil Biography in Hindi
पूरा नाम | प्रतिभा देवी सिंह पाटिल (Pratibha Devisingh Patil) |
जन्म दिनांक | 19 दिसम्बर, 1934 |
जन्म भूमि | जलगाँव, महाराष्ट्र |
नागरिकता | भारतीय |
पिता का नाम | नारायण राव पाटिल |
पति | डॉक्टर देवीसिंह रामसिंह शेखावत |
संतान | राजेन्द्र सिंह शेखावत (पुत्र), ज्योति राठौर (पुत्री) |
धर्म | हिन्दू |
पार्टी | कांग्रेस |
प्रसिद्धि | भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति |
कार्य काल | 25 जुलाई 2007 – 25 जुलाई 2012 |
25 जुलाई 2007 को श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की। इन्हें कुल 638116 मत प्राप्त हुए जबकि इनके प्रतिद्वन्द्वी भैरोंसिंह शेखावत को मात्र 331306 मत मिले। श्रीमती प्रतिभा पाटिल कांग्रेस पार्टी के साथ काफी लंबे समय से जुड़ी रही। राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन के समय राजस्थान की राज्यपाल थी।
अपने 28 साल के राजनितिक करियर में वो बहुत से महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रही। भारत के विकास में उनका बहुत योगदान रहा हैं उन्होंने महिला विकास, और बाल विकास के लिए कई कदम उठाए।
शुरुआती जीवन – Eraly Life of Pratibha Patil
श्रीमती प्रतिभा पाटिल का जन्म जलगांव के नदगाँव ग्राम में 19 दिसंबर 1934 को हुआ था। इनके पिता का नाम नारायण राव पाटिल था, जो पेशे से सरकारी वकील थे। उस समय देश पराधीनता की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। ऐसे में यह कल्पना करना कि देश स्वाधीन होगा और स्वाधीन भारत की महामहिम राष्ट्रपति नदगाँव ग्राम की बेटी बनेगी, सर्वथा असंभव ही था।
चूँकि प्रतिभा के पिता सरकारी वकील थे, इस कारण परिवार में बेटी की शिक्षा के लिए अनुकूल माहौल था। वैसे चौथे दशक तक अधिकांश मध्यम वर्गीय परिवारों में बेटियों की शिक्षा के लिए चेतना ही नहीं थी। प्रतिभा ने आरंभिक शिक्षा नगर पालिका की प्राथमिक कन्या पाठशाला से आरंभ की थी। कक्षा 4 तक की पढ़ाई उसी पाठशाला में की। फिर उन्होंने जलगांव के नए इंग्लिश स्कूल में कक्षा 5 में दाखिला ले लिया। वर्तमान में उस स्कूल को R.R विद्यालय के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने जलगाँव के मूलजी जेठा कालेज से स्नातकोत्तर (M.A) और मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कालेज (मुंबई विश्वविद्यालय से संबद्ध) से कानून की पढा़ई की। वे टेबल टेनिस की अच्छी खिलाड़ी थीं तथा उन्होंने कई अन्तर्विद्यालयी प्रतियोगिताओं में विजय प्राप्त की। 1962 में वे एम जे कॉलेज में कॉलेज क्वीन चुनी गयीं।
विवाह – Pratibha Patil Husband
पाटिल परिवार की बेटी प्रतिभा का विवाह डॉक्टर देवी सिंह राम सिंह शेखावत के साथ 31 वर्ष की उम्र में 7 जुलाई 1965 को संपन्न हुआ था। पेशे से शिक्षक देवी सिंह शेखावत मूल रूप से राजस्थान के सीकर जिले के गांव की छोटी लोसल के निवासी थे, लेकिन काफी समय पूर्व उनके पूर्वज जलगांव (महाराष्ट्र) में स्थाई रूप से आ बसे थे। प्रतिभा पाटिल के एक बेटा और एक बेटी है। दोनों का विवाह हो चुका है उनके बेटे का नाम राजेंद्र सिंह शेखावत और बेटी का नाम ज्योति राठौर है। दादी नानी के रूप में उन्हें 8 बच्चों का प्यार मिलता है।
कैरियर की शुरुआत – Pratibha Patil Life History in Hindi
श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने विधि विश्वविद्यालय, मुंबई से कानून की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात अपने पिता श्री नारायण राव पाटिल की भाँति वकालत करने लगी। वकालत के पेशे के साथ-साथ जलगांव की गरीब आदिवासी महिलाओं के उत्थान में भी वह महत्वपूर्ण योगदान देने लगी। उस समय तक श्रीमती प्रतिभा पाटिल का राजनीतिक में जाने का कोई इरादा नहीं था। वकालत का पेशा भी अच्छा चल रहा था। उन्होंने जलगांव में अपनी एक स्वतंत्र पहचान सफल एडवोकेट के रूप में बना ली थी।
राजनीतिक मे प्रवेश – Pratibha Patil Career
जब प्रतिभा सामाजिक कार्य से जुड़ी थी तब कांग्रेस के नेता अन्ना साहब केलकर ने उनमे छिपी राजनीतिक प्रतिभा को पहचाना। अन्ना साहब केलकर ने प्रतिभा को कांग्रेस से जोड़ लिया और वह पार्टी की कम्युनिस्ट सदस्य बन गईं। लेकिन उस समय तक प्रतिभा राजनीतिक महत्वकांक्षाए शून्य थी। फिर आया 1962 का वह दौर, जो प्रतिभा के जीवन का दशा और दिशा तय करने के लिए प्रारब्ध ने पूर्व निर्धारित कर रखा था।
अन्ना साहब केलकर ने प्रतिभा को सक्रिय राजनीतिक में आने का निमंत्रण देते हुए विधानसभा चुनाव लड़ने का आग्रह किया। जलगांव के एदलाबाद विधानसभा क्षेत्र से उन्हें कांग्रेस का टिकट प्राप्त हुआ। प्रतिभा की सादगी और निष्कलंक छवि ने एदलाबाद के मतदाताओं को रिझाने मे पूरी मदद की। फिर प्रतिभा ने बड़े अंतर से चुनाव की वैतरणी पार कर ली। एक गैर-राजनीतिक महिला ने सफलता का परचम लहरा कर राजनीति में प्रवेश किया।
फिर वे 1962 से 1985 तक वे पांच बार महाराष्ट्र विधानसभा की सदस्य रहीं। इस दौरान वर्ष 1967 से 1972 तक वह महाराष्ट्र सरकार में राज्यमंत्री और वर्ष 1972 से 1978 तक कैबिनेट मंत्री रहीं उन्होंने कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार संभाला, और इसके साथ ही वह राज्यसभा में व्यापारी सलाहकार समिति की अध्यक्ष भी थी।
श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल प्रदेश कॉन्ग्रेस समिति महाराष्ट्र की अध्यक्षा (1988-1990), राष्ट्रीय शहरी सहकारी बैंक एवं ऋण संस्थाओं की निदेशक, भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ की शासी परिषद की सदस्य रही हैं। 1989-1990 में वे महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस की प्रमुख बनीं। उन्हें वर्ष 1991 में दसवीं लोक सभा (संसद के निचले सदन) के लिए निर्वाचित किया गया और उन्होंने 1991 में अध्यक्षा, सदन समिति, लोक सभा के रूप में भी कार्य किया।
राष्ट्रपति पद का पदभार – Pratibha Patil President of India
8 नवम्बर 2004 को वह राजस्थान की राज्यपाल बनी और 2007 तक उस पद पे विराजमान रही। 25 जुलाई 2007 को, वह भारत के 12 वे राष्ट्रपति के रूप में विराजमान रही। वे एक बेहद सम्माननीय महिला के तौर पर देखी जाती हैं। केवल इसलिए नहीं कि वह भारत की राष्ट्रपति रही हैं, बल्कि इसलिए कि देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने के बाद भी उन्होंने एक महिला होने के नाते अपनी गरिमा को बनाए रखा है। उनका व्यक्तित्व स्वयं ही एक शांत और निर्मल स्वभाव की महिला की पहचान है।
भारत के विकास में उनका बड़ा बड़ा योगदान रहा है, और साथ ही महिला विकास, समाज कल्याण और बच्चो की शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने बहुत से विकास कार्य किये है। उनके विकास के लिए उन्होंने बहुत ही सार्वजानिक संस्थाओ का भी निर्माण किया। मुंबई और दिल्ली में महिलाओ के लिए उन्होंने हॉस्टल का निर्माण किया, और ग्रामीण विकास के लिए इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना भी की। उनके द्वारा निर्मित श्रम साधना संस्था ने भी उनकी सहायता से कई सामाजिक सारी किये और ग्रामीण क्षेत्र का विकास करने लगे। उन्होंने ग्रामीण और शहरी महिलाओ को बहुत सी सुविधाए प्रदान की।
बाल्यकाल से लेकर राष्ट्रपति भवन तक प्रतिभा पाटिल की यात्रा निश्चित रूप से एक प्रेरक प्रसंग है और महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक आशा की किरण।