Anna Hazare / अन्ना हज़ारे गांधीवादी विचारधारा पर चलने वाले एक समाजसेवक हैं, जो किसी राजनीतिक पार्टी की जगह स्वतंत्र रुप से काम करते हैं। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन में आम आदमी को जोड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे का वास्तविक नाम किसन बापट बाबूराव हज़ारे है तथा प्यार से लोग इन्हें अन्ना कहते हैं। अन्ना हजारे भारत के उन चंद नेताओं में से एक है जो हमेशा सफेद खादी के कपड़े पहनते हैं और सिर पर गाँधी टोपी पहनते हैं। पिछले 4 दशको से अहिंसा के माध्यम से अपने “आदर्श गाव” अभियान और लोगो को जानकारी के अधिकार के बारे में प्रेरित करने का अभूतपूर्व काम कर रहे है।
अन्ना हज़ारे संक्षिप्त परिचय – Anna Hazare Biography in Hindi
पूरा नाम – किसन बापट बाबूराव हजारे
जन्म – 15 जून 1937
जन्मस्थान – रालेगन सिद्धि, अहमदनगर, महाराष्ट्र
पिता – बाबूराव हजारे
माता – लक्ष्मीबाई हजारे
अन्ना हज़ारे की समाजसेवा और समाज कल्याण के कार्य को देखते हुए तथा प्रतिबद्ध और ईमानदार प्रयास के लिए सरकार ने उन्हें समय-समय पर अनेक पुरस्कारों, जिनमे 1990 में पद्मश्री और 1992 में पद्म भूषण शामिल है, दिये गये।
अन्ना हज़ारे – Anna Hazare Life History In Hindi :-
समाजसेवी अन्ना हजारे का जन्म 15 जून 1937 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के रालेगन_सिद्धि गांव के एक मराठा किसान परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम किसन बापट बाबूराव हजारे हैं। उनके पिता का नाम बाबूराव हजारे और मां का नाम लक्ष्मीबाई हजारे था। उनका बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे तथा दादा सेना में थे। वैसे अन्ना के पूर्वंजों का गांव अहमद नगर जिले में ही स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मृत्यु के सात वर्षों बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। अन्ना के छह भाई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वे दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये के वेतन पर काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।
वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर अन्ना 1963 में सेना की मराठा रेजीमेंट में ड्राइवर के रूप में भर्ती हो गए। उन्होने 15 साल के कार्यकाल के समय, उनका विभिन्न क्षेत्रो में स्थानांतरण हुआ जैसे सिक्किम, भूटान, जम्मू-काश्मीर, असम, मिजोरम, लेह और लद्दाख और उन्हें इन जगहों पर अलग-अलग बदलते मौसम का भी सामना करना पड़ा था। उस समय अन्ना हजारे अपने जीवन से हताश हो गये थे और और मानवी जीवन के अस्तित्व को देखकर आश्चर्यचकित हो गये थे। उनका दिमाग हमेशा ये सोचने में लगा रहता के वो इन छोटे-छोटे प्रश्नों के उत्तर कैसे ढूंढे. आखिर में उनकी हताशा इस कदर बढ़ गयी थी के एक समय वे आत्महत्या भी करने के लिए राज़ी हो गये थे। और ऐसा करते वक़्त उन्होंने एक 2 पेज का निबंध भी लिखा था। की क्यों वे अब जीना नहीं चाहते। और अचानक उनमे एक प्रेरणा आई यह बहुत ही छोटी घटना से आई- यह प्रेरणा उन्हें दिल्ली रेलवे स्टेशन के बुक स्टाल से आई, जहा वे बाद में रहने लगे, उस समय वे बुक स्टाल के नज़दीक आये और वहा रखी स्वामी विवेकानंद की किताब को खरीद लिया। बुक के कवर पर छपे स्वामी विवेकानंद की फोटो से उन्हें प्रेरणा मिली, और जैसे ही उन्होंने स्वामी विवेकानंद की किताब ‘कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन’ को पढना शुरू किया उन्हें उनके सारे प्रश्नों के उत्तर मिल चुके थे।
उस किताब में उन्हें बताया की मानवी जीवन का मुख्य उद्देश मानवता की सेवा करने में ही है। साधारण मनुष्यों के भले के लिए कुछ करना ही भगवान् के लिए कुछ करने के बराबर है। 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया और उस समय अन्ना हजारे खेमकरण बॉर्डर पर स्थित थे। 12 नवम्बर 1965 को पाकिस्तान ने भारत पर हवाई हमला किया जिसमे हजारे के सहकर्मी शहीद हुए, और तभी हजारे के एकदम सर के पास से ही एक गोली गुजरी जो अचानक ही उन्हें धक्का देने वाली घटना थी। हजारे ऐसा मानते है की वही घटना उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट भी है, इसका मतलब उन्हें उनके जीवन में और भी कुछ करना बाकी है। अन्ना पर स्वामी विवेकानंद की किताबो का बहुत प्रभाव पड़ा, उनके इसी प्रभाव के कारण 26 साल की आयु में उन्होंने अपने जीवन को मानवता की सेवा करने के लिए समर्पित किया।
बाद में उन्होंने यह निर्णय लिया की अब वे जीवन में कभी भी पैसो के बारे में विचार नहीं करेंगे. और यही कारण है की वे आज तक कुवारे है। उन्होने 15 साल सेना मे सेवा दी उसके बाद स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली। वे अपने गाँव रालेगन सिद्धि, पारनेर तहसील, अहमदाबाद वापिस आ गये।
समाज सेवी जीवन :-
इसी गाँव को उन्होंने अपनी सामाजिक कर्मस्थली बनाकर समाज सेवा में जुट गए। वे वहाँ चट्टान पर बैठकर गांव को सुधारने की बात सोचा करते थे। इस गांव में बिजली और पानी की ज़बरदस्त कमी थी। अन्ना ने गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और स्वयं भी इसमें योगदान दिया। अन्ना के कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई। उन्होंने अपनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी और अपनी पेंशन का सारा पैसा गांव के विकास के लिए समर्पित कर दिया। वे गांव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गांव का हर शख्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गांवों के लिए भी यहां से चारा, दूध आदि जाता है। यह गांव आज शांति, सौहार्द्र एवं भाईचारे की मिसाल है।
1991 में अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ ‘भ्रष्ट’ मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की। ये मंत्री थे- शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप। अन्ना ने उन पर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगाया था। सरकार ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अंतत: उन्हें दागी मंत्रियों शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को हटाना ही पड़ा। जन लोकपाल विधेयक (नागरिक लोकपाल विधेयक) के निर्माण के लिए जारी यह आंदोलन अपने अखिल भारतीय स्वरूप में 5 अप्रैल 2011 को समाजसेवी अन्ना हजारे एवं उनके साथियों के जंतर-मंतर पर शुरु किए गए अनशन के साथ आरंभ हुआ, जिनमें मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरविंद केजरीवाल, भारत की पहली महिला प्रशासनिक अधिकारी किरण बेदी, प्रसिद्ध लोकधर्मी वकील प्रशांत भूषण, आदि शामिल थे।
इन्होंने भारत सरकार से एक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक बनाने की माँग की थी और अपनी माँग के अनुरूप सरकार को लोकपाल बिल का एक मसौदा भी दिया था। किंतु मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने इसके प्रति नकारात्मक रवैया दिखाया और इसकी उपेक्षा की। लेकिन इस अनशन के आंदोलन का रूप लेने पर भारत सरकार ने आनन-फानन में एक समिति बनाकर संभावित खतरे को टाला और 16 अगस्त तक संसद में लोकपाल विधेयक पारित कराने की बात स्वीकार कर ली। अगस्त से शुरु हुए मानसून सत्र में सरकार ने जो विधेयक प्रस्तुत किया वह कमजोर और जन लोकपाल के सर्वथा विपरीत था। अन्ना हजारे ने इसके खिलाफ अपने पूर्व घोषित तिथि 16 अगस्त से पुनः अनशन पर जाने की बात दुहराई, तब दिल्ली पुलिस ने उन्हें घर से ही गिरफ्तार कर लिया। इस खबर ने आम जनता को उद्वेलित कर दिया और वह सड़कों पर उतरकर सरकार के इस कदम का अहिंसात्मक प्रतिरोध करने लगी।
दिल्ली पुलिस ने अन्ना को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। उन्हें 7 दिनों के न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया गया। शाम तक देशव्यापी प्रदर्शनों की खबर ने सरकार को अपना कदम वापस खींचने पर मजबूर कर दिया। दिल्ली पुलिस ने अन्ना को सशर्त रिहा करने का आदेश जारी किया। मगर अन्ना अनशन जारी रखने पर दृढ़ थे। बिना किसी शर्त के अनशन करने की अनुमति तक उन्होंने रिहा होने से इनकार कर दिया। 17 अगस्त तक देश में अन्ना के समर्थन में प्रदर्शन होता रहा। दिल्ली में तिहाड़ जेल के बाहर हजारों लोग डेरा डाले रहे। 17 अगस्त की शाम तक दिल्ली पुलिस रामलीला मैदान में 7 दिनों तक अनशन करने की इजाजत देने को तैयार हुई। मगर अन्ना ने 30 दिनों से कम अनशन करने की अनुमति लेने से मना कर दिया, उन्होंने जेल में ही अपना अनशन जारी रखा।
अन्ना को रामलीला मैदान में 15 दिन कि अनुमति मिली और 19 अगस्त से अन्ना राम लीला मैदान में जन लोकपाल बिल के लिये आनशन जारी रखने पर दृढ़ थे। आज 24 अगस्त तक तीन मुद्दओ पर सरकार से सहमति नही बन पायी है। अनशन के 10 दिन हो जाने पर भी सरकार अन्ना का अनशन समापत नही करवा पाई। हजारे ने दस दिन से जारी अपने अनशन को समाप्त करने के लिए सार्वजनिक तौर पर तीन शर्तों का ऐलान किया। उनका कहना था कि तमाम सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाया जाए, तमाम सरकारी कार्यालयों में एक नागरिक चार्टर लगाया जाए और सभी राज्यों में लोकायुक्त हो। 74 वर्षीय हजारे ने कहा कि अगर जन लोकपाल विधेयक पर संसद चर्चा करती है और इन तीन शर्तों पर सदन के भीतर सहमति बन जाती है तो वह अपना अनशन समाप्त कर देंगे।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दोनो पक्षों के बीच जारी गतिरोध को तोड़ने की दिशा में पहली ठोस पहल करते हुए लोकसभा में खुली पेशकश की कि संसद अरूणा राय और डॉ॰ जयप्रकाश नारायण सहित अन्य लोगों द्वारा पेश विधेयकों के साथ जन लोकपाल विधेयक पर भी विचार करेगी। उसके बाद विचार विमर्श का ब्यौरा स्थायी समिति को भेजा जाएगा। 25 मई 2012 को अन्ना हजारे ने पुनः जंतर मंतर पर जन लोकपाल विधेयक और विसल ब्लोअर विधेयक को लेकर एक दिन का सांकेतिक अनशन किया।
गांधी की विरासत उनकी थाती है। कद-काठी में वह साधारण ही हैं। सिर पर गांधी टोपी और बदन पर खादी है। आंखों पर मोटा चश्मा है, लेकिन उनको दूर तक दिखता है। इरादे फौलादी और अटल हैं। महात्मा गांधी के बाद अन्ना हजारे ने ही भूख हड़ताल और आमरण अनशन को सबसे ज्यादा बार बतौर हथियार इस्तेमाल किया है। इसके जरिए उन्होंने भ्रष्ट प्रशासन को पद छोड़ने एवं सरकारों को जनहितकारी कानून बनाने पर मजबूर किया है। अन्ना हजारे को आधुनिक युग का गान्धी भी कहा जा सकता है अन्ना हजारे हम सभी के लिये आदर्श है।
सम्मान और पुरस्कार
(1) | 6 अप्रैल1992 | पद्म भूषण – भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन द्वारा। |
(2) | 24 मार्च1990 | पद्म श्री – भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन द्वारा। |
(3) | 19 नवंबर1986 | इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार – तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा। |
(4) | 1989 | महाराष्ट्र सरकार का कृषि भूषण पुरस्कार |
(5) | 1988 | मैन ऑफ़ द ईयर अवार्ड |
(6) | 2000 | पॉल मित्तल नेशनल अवार्ड |
(7) | 2003 | ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंटेग्रीटी अवार्ड |
(8) | 1994 | विवेकानंद सेवा पुरस्कार |
(9) | 1996 | शिरोमणि अवार्ड |
(10) | 1997 | महावीर पुरस्कार |
(11) | 1999 | दिवालीबेन मेहता अवार्ड |
(12) | 1998 | केयर इन्टरनेशनल अवार्ड |
(13) | 2000 | जाइण्ट्स इन्टरनेशनल अवार्ड |
(14) | 2000 | वासवश्री प्रशस्ति अवार्ड |
(15) | 1999 | नेशनल इंटरग्रेसन अवार्ड |
(16) | 1998 | जनसेवा पुरस्कार |
(17) | 1998 | रोटरी इन्टरनेशनल मानव सेवा पुरस्कार |
(18) | 2008 | विश्व बैंक का ‘जित गिल स्मारक पुरस्कार’ |
अन्ना हजारे का हमेशा से यह मानना था की –
“जो अपने लिए जीते है वो मर जाते है, जो समाज के लिए जीते है वो तो मरकर भी हमेशा के लिए जिंदा रहते है”
ये भी जाने : –
- आना हज़ारे के अनमोल विचार
- वेंकटरामन रामकृष्णन जीवनी
- बुखार ठीक करने के घरेलू उपचार
- ए पी जे अब्दुल कलाम के सुविचार
- रहीम दास जी की जीवनी
Please Note : – Anna Hazare Biography & Life History In Hindi मे दी गयी Information अच्छी लगी हो तो कृपया हमारा फ़ेसबुक (Facebook) पेज लाइक करे या कोई टिप्पणी (Comments) हो तो नीचे करे। Anna Hazare Short Biography & Life story In Hindi व नयी पोस्ट डाइरेक्ट ईमेल मे पाने के लिए Free Email Subscribe करे, धन्यवाद।
अन्ना हजारे एक पक्के गाँधीबादी बिचार एबम कर्मठ समर्पित देस भक्तय है।जन लोकपाल उनकी देन है।हालांकि स्वास्थ्य की दृष्टि से उनका देश ब्यापि दौरा नही हो पाता।किन्तु देसभक्तया की लो अभी भी जिंदा है।