Taj-ul-Masajid Bhopal History in Hindi / ताज उल मस्जिद, मध्य प्रदेश के भोपाल शहर में स्थित एक विशाल मस्जिद है। एक अनुमान के मुताबिक यह एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद हैं। इसका निर्माण कार्य भोपाल के आठवें शासक शाहजहां बेगम के शासन काल में प्रारंभ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवंतपर्यंत यह बन न सकी। 1971 में भारत सरकार के दखल के बाद यह मस्जिद पूरी तरह से बन तैयार हो सकी। ताज उल मस्जिद का अर्थ है ‘मस्जिदों का ताज’।
ताज-उल-मस्जिद की जानकारी – Taj-ul-Masajid Information in Hindi
ताज उल मस्जिद का सही नाम ताजुल मसाजिद हैं। ताज उल मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद से प्रेरणा लेकर बनाई गई है। ताज उल मस्जिद में हर साल तीन दिन का इज्तिमा उर्स होता है। जिसमें देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। गुलाबी रंग की इस विशाल मस्जिद की दो सफेद गुंबदनुमा मीनारें हैं, जिन्हें मदरसे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
ताज उल मस्जिद का निर्माण – Taj-ul-Masajid History in Hindi
यह मस्जिद का ख्वाब भोपाल के आठवें शासक सिकन्दर बेगम ने देखा था। इसलिए ताज उल मस्जिद सिकन्दर बेगम के नाम से सदा के लिए जुड़ गयी। सिकन्दर बेगम 1861 में इलाहाबाद दरबार के बाद जब वह दिल्ली गई तो उन्होंने देखा कि दिल्ली की जामा मस्जिद को ब्रिटिश सेना की घुड़साल में तब्दील कर दिया गया है। सिकन्दर बेगम ने अपनी वफ़ादारियों के बदले अंग्रेज़ों से इस मस्जिद को हासिल कर लिया और ख़ुद हाथ बँटाते हुए इसकी सफाई करवाकर शाही इमाम की स्थापना की।
दिल्ली के जामा मस्जिद से प्रेरित होकर उन्होंने तय किया की भोपाल में भी ऐसी ही मस्जिद बन वायेगी। सिकन्दर जहाँ का ये ख्वाब उनके जीते जी पूरा न हो सका फिर उनकी बेटी शाहजहाँ बेगम ने इसे अपना ख्वाब बना लिया।
शाहजहाँ बेगम ने इस मस्जिद का निर्माण वैज्ञानिक तरीके किया और बहुत मेहनत के बाद इसका नक्शा तैयार करवाया। ध्वनि तरंग के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए 21 ख़ाली गुब्बदों की एक ऐसी संरचना का नक्शा तैयार किया गया कि मुख्य गुंबद के नीचे खडे होकर जब इमाम कुछ कहेगा तो उसकी आवाज़ पूरी मस्जिद में गूँजेगी।
शाहजहाँ बेगम ने ताज उल मस्जिद के लिए विदेश से 15 लाख रुपए का पत्थर भी मंगवाया चूँकि इसमें अक्स दिखता था लेकिन मौलवियों ने इस पत्थर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। आज भी ऐसे कुछ पत्थर ‘दारुल उलूम’ में रखे हुए हैं। धन की कमी के कारण उनके जीवंतपर्यंत यह बन न सकी और शाहजहाँ बेगम का ये ख्वाब भी अधूरा ही रह गया और गाल के कैंसर से उनका असामयिक मृत्यु हो गई।
कुछ सालो बाद, भोपाल के अलाम्मा मोहम्मद इमरान खान नादवी अजहरी ने इस अधूरे कार्य को पूरा करने का बीड़ा उठाया और इसका निर्माणकार्य अंततः 1971 में पूरा हुआ। और एक सुन्दर, मनमोहक और विशाल मस्जिद का निर्माण किया गया। उस समय में, मस्जिद मदरसा का काम करती थी।
अब जो ताज उल मस्जिद हमें दिखाई देती है उसे बनवाने का श्रेय मौलाना मुहम्मद इमरान को जाता है जिन्होंने 1970 में इस मुकम्मल करवाया। यह दिल्ली की जामा मस्जिद की हूबहू नक़ल है। आज एशिया की छठी सबसे बड़ी मस्जिद है लेकिन यदि क्षेत्रफल के लिहाज़ से देखें और इसके मूल नक्शे के हिसाब से वुजू के लिए बने 800×800 फीट के मोतिया तालाब को भी इसमें शामिल कर लें तो बकौल अख्तर हुसैन के यह दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद होगी।
मस्जिद की बनावट – Architecture of Taj-ul-Masajid in Hindi
ताज-उल-मस्जिद कुल 23,312 वर्ग फीट के मैदान पर फैली हुई है जिसकी मीनारे तक़रीबन 206 फीट ऊँची है। साथ ही मस्जिद में 3 विशाल गोलाकार आकर के गुम्बद, एक सुन्दर प्रार्थना कक्ष और आभूषण जडित पिलर, मार्बल से बनी फर्श और गुम्बद भी है। इसके अलावा मस्जिद में एक विशाल टैंक के साथ बड़ा आँगन भी है। साथ ही प्रार्थना कक्ष की मुख्य दीवार पर जाली काम और प्राचीन हस्तकला का काम भी किया गया है।
27 छतो को विशाल पिलर की सहायता से दबाया गया है, और उन्हें सलाखी काम से अलंकृत भी किया गया है। 27 छतो में से 16 को फूलों की डिजाईन से सजाया गया है। साथ ही फर्श की डिजाईन में भी क्रिस्टल स्लैब का उपयोग किया गया है, जिन्हें सात लाख रुपये खर्च कर इंग्लैंड से इम्पोर्ट किया गया था। मोतिया तालाब और ताज-उल-मस्जिद को मिलाकर मस्जिद का कुल क्षेत्रफल 14 लाख 52 हजार स्क्वेयर फीट है।
ताज उल मस्जिद में सुर्ख लाल रंग की मीनारें हैं, जिनमें सोने के स्पाइक जड़े हैं। इस मस्जिद का प्रवेश द्वार दो मंजिला है और वह बहुत बेहद ख़ूबसूरत है। ताज-उल-मस्जिद के प्रवेश द्वार के चार मेहराबें हैं और मुख्य प्रार्थना हॉल में जाने के लिए 9 प्रवेश द्वार हैं। पूरी इमारत बेहद ख़ूबसूरत है।
उत्सव – Taj-ul-Masajid Function in Hindi
मस्जिद में तीन दिन के अलामी तबलीग इज्तिमा जश्न का आयोजन भी किया जाता है, जहाँ पूरी दुनिया से लाखो श्रद्धालु आते है। मस्जिद में कमरों की कमी होने की वजह से वर्तमान में इस जश्न का आयोजन गाजी पूरा, भोपाल में किया जाता है।
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