Sabarimala Temple / सबरीमाला मंदिर या श्री अय्यप्पा मंदिर केरल राज्य के पतनमतिट्टा ज़िले में स्थित यहाँ के प्राचीनतम प्रख्यात मंदिरों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान की स्थापना स्वयं परशुराम ने की थी और यह विवरण ‘रामायण’ में भी मिलता है। मक्का-मदीना के बाद यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है, जहां हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
सबरीमाला मंदिर की जानकारी – Sabarimala Temple Information & History in Hindi
Ayyappa Temple Kerala – अयप्पा मंदिर , जहाँ भगवान् अयप्पा की पूजा की जाती है, सबरीमला का का मुख्य आकर्षण है। उनका आशीर्वाद लेने के लिए मनुष्यों का समुद्र प्रति वर्ष यहाँ आता है। यह संतोष, आध्यात्मिक उन्नति, खुशहाली, भक्तों की इच्छाओं की पूर्ती का आश्वासन देता है। यह अपनी तीर्थयात्रा के लिए मुख्य रूप से जाना जाता है जो नवंबर का महीने में प्रारंभ होकर जनवरी में समाप्त होती है।
कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण के लिए शिल्पकार का प्रबंध स्वयं भगवान देवेन्द्र ने किया था। इसका निर्माण कार्य विश्वकर्मा के सान्निध्य में पूरा हुआ। बाद में परशुराम ने भगवान की स्थापना यहाँ ‘मकर संक्रांति’ के दिन की।
सबरीमाला मंदिर वर्ष भर खुला नहीं रहता। इस मंदिर में कई तरह के नियमों का पालन किया जाता हैं एवम साफ़ सफाई का बहुत ध्यान रखा जाता हैं। सबरीमाला मंदिर में तीर्थ यात्रियों द्वारा मंडला पूजा की जाती हैं। केरला में इसका में बहुत ज्यादा महत्व हैं।
इस मंदिर में हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं की भींड़ जुटती है, जिसमें केवल पुरुष ही होते हैं। केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित है। माना जाता है कि भगवान श्री अयप्पा ब्रह्माचारी थे इसलिये यहां 10 से 50 वर्ष की लड़कियों और महिलाओं का आना वर्जित है। इस मंदिर में वे छोटी बच्चियां आ सकती हैं जो रजस्वला न हुई हों या बूढ़ी औरतें, जो मासिकधर्म से मुक्त हो चुकी हों। इस मंदिर में ना तो जात- पात का कोई बंधन और ना ही अमीर-गरीब का।
यह मंदिर अठारह पहाड़ी पर स्थित मंदिर हैं। पूरी पहाड़ियाँ अयप्पा के मंत्र के साथ गूंज उठती हैं क्योंकि इस समय के दौरान मंडल पूजा का उत्सव मनाया जाता है। भक्तों को मंदिर के गर्भगृह तक पहुँचने के लिए 18 पवित्र सीढियां चढ़नी होती हैं। ऐसा विश्वास है कि ये सीढियां मनुष्य के अलग अलग लक्षणों को प्रस्तुत करती हैं: पहली पांच सीढियां मनुष्य की पांच इन्द्रियों को चिन्हित करती हैं, अगली 8 मानवीय भावनाओं को प्रस्तुत करती हैं, इसकी अगली तीन सीढियां मानवीय गुण और अंतिम 2 सीढियां ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक हैं।
अयप्पा मंदिर के बाएँ ओर एक मंदिर है जो मलिकप्पुरम देवी को समर्पित है। यह मंदिर आत्मा को तरोताज़ा करने वाला अनुभव प्रदान करता है क्योंकि पर्यटकों को मंदिर के परिसर से पश्चिमी घाट का बहुत मनोरम दृश्य दिखाई देता है।
कौन थे श्री अयप्पा – Sabarimala Temple Story in Hindi
अय्यप्पा का एक नाम ‘हरिहरपुत्र’ हैं। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव के पुत्र, बस भगवान इन्ही के अवतार माने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव के दो पुत्रों के अलावा गणेश और कार्तिक के अलावा भगवान शिव को एक और पुत्र था। शिव के इस पुत्र ने कब, कहां और कैसे जन्म लिया। भगवान शिव के तीसरे बेटे की कहानी शुरू होती है उस समय से जब मां दुर्गा ने असुरों के राजा महिशासुर का वध किया था। महिशासुर को भगवान शिव से वरदान प्राप्त था। जिसका दुरुपयोग करते हुए वह देवी-देवताओं और मानव जाति को परेशान किया करता था।
महिशासुर की एक बहिन थी महिषि, जो देवताओं से नाराज थी क्योंकि उन्होंने उनके प्यारे भाई का वध कर दिया था। जबकि महिषी ने ब्रह्मा जी को खुश करने के लिए तपस्या शुरू कर दी थी। उसकी तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा ने उसे अभेद्य का वरदान दिया। उसे शिव और विष्णु की संयुक्त शक्ति प्राप्त थी। इस वरदान के मिलते ही महिषि ने पूरे संसार में तानाशाही शुरू कर दी थी। उससे आहत हुए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर लिया।
मोहिनी एक ऐसी सुंदरी थी, जो राक्षसों को रिझाती थी। लेकिन इस बार मोहिनी भगवान शिव के पास पहुंची थी। वह उन्हें रिझाने में सफल हो गई। तब मोहिनी के रूप में विष्णु और भगवान शिव के मिलन सेे शिव के तीसरे पुत्र ने जन्म लिया। जिसका नाम अयप्पन रखा गया था। अयप्पन को राजा पंडलम ने गोद लिया था। राजा पंडालम ने ही अचिनकोविल नदी के मुहाने पर एक मंदिर बनवाया था, जिसे ‘वालिया कोयिकल’ नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि यह मंदिर और शबरीमला मंदिर का निर्माण राजा पंडालम ने ही अपने मानस पुत्र की याद और भक्ति में करवाया था। अयप्पन ने बड़े होकर महिषि का वध किया था। केरला के एक जिले में आज भी अयप्पन को भगवान का दर्जा दिया जाता है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
पूजा विधि – Sabarimala Temple in Hindi
तीर्थ यात्री पंपा में आकर मिलते हैं। पंपा त्रिवेणी का महत्व उत्तर भारत के प्रयाग त्रिवेणी से कम नहीं है और इस नदी को भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा के समान समझा गया है। भक्तजन पंपा त्रिवेणी में स्नान करते हैं और दीपक जलाकर नदी में प्रवाहित करते हैं। इसके बाद ही सबरीमाला की ओर प्रस्थान करते हैं।
इस मंदिर में दर्शन की विधियाँ निर्धारित हैं। भक्तों को यहाँ आने से पहले 41 दिन तक समस्त लौकिक बंधनों से मुक्त होकर ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है। इस अवधि में उन्हें नीले अथवा काले कपड़े ही पहनने की अनुमति है। गले में तुलसी की माला रखनी होती है। पूरे दिन में केवल एक बार ही साधारण भोजन का प्रावधान है। शाम को पूजा-अर्चना करनी होती है और ज़मीन पर ही सोना होता है।
इस व्रत की पूणार्हूति पर एक गुरु स्वामी के निर्देशन में पूजा करनी होती है। मंदिर यात्रा के दौरान उन्हें सिर पर इरुमुडी रखनी होती है। इरुमुड़ी का अर्थ है- ‘दो थैलियाँ, एक थैला’। एक में घी से भरा हुआ नारियल व पूजा सामग्री होती है तथा दूसरे में भोजन सामग्री, उन्हें शबरी पीठ की परिक्रमा भी करनी होती है, तब जाकर अठारह सीढियों से होकर मंदिर में प्रवेश मिलता है। धारणा है कि भगवान श्री अय्यप्पा ने महिषी से वादा किया था कि जिस वर्ष कोई नया अय्यप्पा भक्त सबरीमाला नहीं आएगा, उसी वर्ष उससे विवाह करेंगे।
मन की शुद्धता के साथ तन की शुद्धता का भी ध्यान रखा जाता हैं। मंडला पूजा 41 से 56 दिनों की होती हैं। इसका पालन सभी अपनी मान्यतानुसार करते हैं। पूजा के समय भगवान के आभूषण पंतलम नरेश के महल से सन्निधाम मंदिर में भक्तों की शोभा यात्रा के साथ लाये जाते हैं। यह शोभा देखते ही बनती है। माना जाता है कि जब यह आभूषण मंदिर की ओर ले जाये जाते हैं, उस समय अविश्वसनीय रूप से एक बाज आकाश में घेरा डालकर उड़ता रहता है। भगवान पर आभूषण चढ़ाने के पश्चात् यह बाज मंदिर की तीन बार परिक्रमा कर गायब हो जाता है।
दिव्य ज्योति के होते हैं दर्शन – Sabarimala Temple Divine Light
यहां आने वाले लाखों भक्तो को रात के समय पहड़ों के बीच में दिव्य ज्योति दिखाई देती है, जिसे माकरा विलाकू कहते हैं। माना जाता है कि यह खुद भगवान अयप्पा हैं जो सच्चे मन से आए भक्तों को दर्शन देते हैं।
कैसे पहुंचे –
उत्तर दिशा से आनेवाले यात्री एरणाकुलम से होकर कोट्टयम या चेंगन्नूर रेलवे स्टेशन से उतरकर वहां से क्रमश: 116 किमी और 93 किमी तक किसी न किसी साधन से पंपा पहुंच सकते है। पंपा से पैदल चार-पांच किमी वन मार्ग से पहाडियां चढकर ही शबरिमला मंदिर में अय्यप्प के दर्शन का लाभ उठाया जा सकता है।
तिरुअनंतपुरम सबरीमला का सबसे समीपी हवाई अड्डा है, जो यहां से 92 किलोमीटर दूर है। वैसे तिरुअनंतपुरम, कोच्चि या कोट्टायम तक रेल मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है। सबरीमला का सबसे समीपी रेलवे स्टेशन चेंगन्नूर है। ये सभी नगर् देश के दूसरे बडे़ नगरों से जुडे़ हुए हैं।
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