Indian Poet Ravidas Ji – रविदास जो की संभवत: रैदास के नाम से भी जाने जाते हैं। मध्ययुगीन संतों में रविदास का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे ऐसे महान संत थे जिन्होने समाज में भाईचारा बढ़ाने के लिए और लिंग भेद हटाने मे महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में उन्हें गुरु कहा जाता है। रविदास जी को ज्यादातर महान संत, दार्शनिक, कवी और समाज सुधारक के रूप में जाना जाता हैं।
रविदास जी का परिचय – Guru Ravidass Ji Biography in Hindi
नाम | श्री गुरु रविदासजी (Ravidas Ji) |
जन्म दिनांक | 1398 ई. (लगभग) |
जन्म स्थान | काशी, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 1518 ई. |
पिता का नाम | रग्घु जी |
माता | घुरविनिया |
पत्नी | लोना जी |
संतान | विजय दास जी |
नागरिकता | भारतीय |
कर्म-क्षेत्र | कवि |
विशेष योगदान | समाज सुधारक |
रविदास जी के भक्ति गीतों ने भक्ति अभियान पर एक आकर्षक छाप भी छोड़ी थी। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग रही है जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। मधुर एवं सहज संत रविदास की वाणी ज्ञानाश्रयी होते हुए भी ज्ञानाश्रयी एवं प्रेमाश्रयी शाखाओं के मध्य सेतु की तरह है। वे एक कवी-संत, सामाजिक सुधारक और आध्यात्मिक व्यक्ति थे। रविदास जी की रचनाओं में, उनके अंदर ईश्वर के प्रति प्रेम की झलक साफ़ दिखाई देती थी। वे अपनी रचनाओं के द्वारा दूसरों को भी परमेश्वर से प्रेम के बारे में बताते थे, और उनसे जुड़ने के लिए कहते थे।
प्रारंभिक जीवन –
रविदास के जीवन प्रामाणिक की पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नही है। लेकिन बहुत से विद्वानों का ऐसा मानना है की संत कवि रविदास का जन्म काशी, उत्तर प्रदेश के पास एक गाँव में सन 1398 में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था। रविवार के दिन जन्म होने के कारण इनका नाम रविदास रखा गया। उनकी माता का नाम माता ‘घुरविनिया’ और पिता का नाम बाबा ‘रग्घु’ जी था। हर साल उनका जन्मदिन पूरण मासी के दिन माघ के महीने में आता है।
इनके पिता राजा नगर राज्य में सरपंच और जूते बनाने का भी काम करते थे। जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था जिसे रविदास ने सहर्ष अपनाया। वह अपना काम पूरी लगन तथा मेहनत से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे। उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे।
रविदास जी को बचपन से ही जातिगत उच्च कुल वालों की हीन भावना का शिकार होना पड़ा था, उच्च कुल का न होने के कारण अक्सर चिढ़ाया जाता था। रविदास जी ने समाज को बदलने के लिए अपनी रचनाओं का सहारा लिया, वे अपनी रचनाओं के द्वारा जीवन के बारे में लोगों को समझाते। लोगों को शिक्षा देते कि इन्सान को बिना किसी भेदभाव के अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना चाहिए। उन्होंने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिल जुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।
रविदास जी का जीवन इतिहास – Ravidas Ji History in Hindi
रविदास जी हमेशा से ही जातिभेद, रंगभेद के खिलाफ लड़ रहे थे। बचपन से ही उन्हें भक्तिभाव काफी पसंद था, बचपन से ही भगवान पूजा में उन्हें काफी रूचि थी। उन्होंने गुरु पंडित शारदा नन्द से भी शिक्षा प्राप्त की थी। परम्पराओ के अनुसार रविदास पर संत-कवी रामानंद का बहुत प्रभाव पड़ा। इन्हें रामानन्द का शिष्य भी माना जाता है। उनकी भक्ति से प्रेरित होकर वहा के राजा भी उनके अनुयायी बन चुके थे।
साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष सुख का अनुभव होता था। वह उन्हें प्राय: मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रविदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से अलग कर दिया। रविदास पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग झोपड़ी बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे। कहते हैं, ये अनपढ़ थे, किंतु संत-साहित्य के ग्रंथों और गुरु-ग्रंथ साहब में इनके पद पाए जाते हैं।
गुरु रविदास ने गुरु नानक देव की प्रार्थना पर पुरानी मनुलिपि को दान करने का निर्णय लिया। उनकी कविताओ का संग्रह श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में देखा जा सकता है। बाद में गुरु अर्जुन देव जी ने इसका संकलन किया था, जो सिक्खो के पाँचवे गुरु थे। सिक्खो की धार्मिक किताब गुरु ग्रन्थ साहिब में गुरु रविदास के 41 छन्दों का समावेश है।
वे स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, क़ुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का सन्तोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वत: उनके अनुयायी बन जाते थे।
संत-मत के विभिन्न संग्रहों में उनकी रचनाएँ संकलित मिलती हैं। उन्होने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल, व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का भी मिश्रण है।
संत रविदास अपने समय के प्रसिद्ध महात्मा थे। कबीर ने संतनि में रविदास संत’ कहकर उनका महत्त्व स्वीकार किया इसके अतिरिक्त नाभादास, प्रियादास आदि ने रविदास का ससम्मान स्मरण किया है। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में मीरा बाई के मंदिर के सामने एक छोटी छत्री है जिसमे हमें रविदास के पदचिन्ह दिखाई देते है। विद्वान रविदास जी को मीरा बाई का गुरु भी मानते है। मीरा बाई और संत रविदास दोनों ही भक्तिभाव से जुड़े हुए संत-कवी थे। लेकिन उनके मिलने का कोई पर्याप्त जानकारी नही है।
रविदास जी का निधन –
गुरु रविदास जी के अनुयाईयों का मानना है कि रविदास जी 120 वर्ष बाद अपने आप शरीर को त्याग दिए। उनका निधन 1518 में वाराणसी में हुआ।
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Jai Guru Ravidass Ji
jai Bhim namo buddhay