राहत इन्दौरी ग़ज़ल और शायरी – रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं Rahat Indori Gajal shayari

राहत इन्दौरी ग़ज़ल- रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं

रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं

मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता
कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं

कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर
अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता हैं

ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक हैं मगर दिल अक्सर
नाम सुनता हैं तुम्हारा तो उछल पड़ता हैं

उसकी याद आई हैं साँसों ज़रा धीरे चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता हैं

राहत इन्दौरी 

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Rahat Indori – Roz taaron ko numaaish main khalal padta hai

Roz taaron ko numaaish main khalal padta hai
Chand pagal hai andhere main nikal padta hai

Main samandar hun kudhali se nahi kat sakta
Koi fawwara nahi hun jo ubal padta hai

Kal wahan chand uga karte the har aahat par
Apne raste main jo viraan mahal padta hai

Na ta-aaruf na ta-alluk hai magar dil aksar
Naam sunta hai tumhara uchhal padta hai

Uski yaad aayi hai saanson zara dheere chalo
Dhadkano se bhi ibadat main khalal padta hai

Rahat Indori

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