Pranchand Chauhan / प्राणचंद चौहान भक्तिकाल के कवि थे जिन्होंने रामायण महानाटक की रचना की। इन्होने कई नाटक की रचना की।
प्राणचंद चौहान के बारे में व्यक्तित्व पर पर्याप्त विवरण नहीं मिलता है। पं. रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, संस्कृत में रामचरित संबंधी कई नाटक हैं। जिनमें कुछ तो नाटक के साहित्यिक नियमानुसार हैं और कुछ केवल संवाद रूप में होने के कारण नाटक कहे गए हैं। इसी पिछली पद्धति पर संवत 1667 (सन् 1610ई.) में प्राणचंद चौहान रामायण महानाटक लिखा।
रचना के कवित्त इस प्रकार है –
कातिक मास पच्छ उजियारा । तीरथ पुन्य सोम कर वारा॥
ता दिन कथा कीन्ह अनुमाना । शाह सलेम दिलीपति थाना॥
संवत् सोरह सै सत साठा । पुन्य प्रगास पाय भय नाठा॥
जो सारद माता कर दाया । बरनौं आदि पुरुष की माया॥
जेहि माया कह मुनि जग भूला । ब्रह्मा रहे कमल के फूला॥
निकसि न सक माया कर बाँधा । देषहु कमलनाल के राँधा॥
आदिपुरुष बरनौं केहिभाँती । चाँद सुरज तहँ दिवस न राती॥
निरगुन रूप करै सिव धयाना । चार बेद गुन जेरि बखाना॥
तीनों गुन जानै संसारा । सिरजै पालै भंजनहारा॥
श्रवन बिना सो अस बहुगुना । मन में होइ सु पहले सुना॥
देषै सब पै आहि न ऑंषी । अंधकार चोरी के साषी॥
तेहि कर दहुँ को करै बषाना । जिहि कर मर्म बेद नहिं जाना॥
माया सींव भो कोउ न पारा । शंकर पँवरि बीच होइ हारा॥
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