Pranab Mukherjee / प्रणव मुखर्जी देश का सर्वोच्च पद प्राप्त करने वाले पहले बंगाली है। यह भारत के तेरहवें व पूर्व राष्ट्रपति (President of India) रह चुके हैं। इनका कार्यालय 25 जुलाई 2012 से आरंभ हुआ और 25 जुलाई 2017 में समाप्त हुआ। राष्ट्रपति पद के रूप में इनकी उम्मीदवार घोषित होने के साथ ही यह तय माना जा रहा था कि यही इस गरिमामय पद के लिए नर्वाचित हो ही जाएंगे। इन्हें 66.7 प्रतिशत मत प्राप्त हुए, जबकि इन के निकटतम प्रतिद्वन्द्वी पी.ए संगमा महज 30.3 प्रतिशत मत प्राप्त कर सके।
प्रणव मुखर्जी का परिचय – Pranab Mukherjee Biography in Hindi
पूरा नाम | प्रणब कुमार मुखर्जी (Pranab Kumar Mukherjee) |
जन्म दिनांक | 11 दिसंबर, 1935 |
जन्म स्थान | मिराटी (मिराती) गाँव, बीरभूम ज़िला, पश्चिम बंगाल |
पद | भारत के 13वें राष्ट्रपति और पूर्व वित्त मंत्री |
कार्य काल | 25 जुलाई, 2012 से 25 जुलाई, 2017 तक |
पिता का नाम | कामदा किंकर मुखर्जी |
माता का नाम | राजलक्ष्मी मुखर्जी |
पत्नी | शुभ्रा मुखर्जी |
शिक्षा | इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर, एलएलबी |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म विभूषण |
प्रणब मुखर्जी को कई प्रतिष्ठित और हाई प्रोफाइल मंत्रालय संभालने जैसी विशिष्टता प्राप्त है। उन्होंने रक्षा मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, विदेश विषयक मंत्रालय, शिपिंग, राजस्व, नौवहन, यातायात, संचार, वाणिज्य और उद्योग, आर्थिक मामले जैसे लगभग सभी महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों में अपनी सेवाएं दी हैं। वह कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधायक दल के नेता भी रह चुके है। साथ-साथ वह लोकसभा में सदन के नेता, बंगाल प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मंत्रीपरिषद में केंद्रीय वित्त मंत्री रह चुके है।
प्रारंभिक जीवन – Early Life of Pranab Mukherjee
प्रणव मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में एक ब्राह्मण परिवार मे हुआ। घर में प्यार से इन्हे पोल्तु नाम से पुकारा जाता था। आज यह लगभग 77 वर्ष के हो चुके हैं। परिवारिक संस्कारों के कारण इस उम्र में भी शारीरिक व मानसिक रुप से यह क्रियाशील है। इनके पिता श्री के.के मुखर्जी भारत के स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े हुए थे। 1952 से 1964 के मध्य भारत के राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में भी बंगाल विधान सभा में ये उपस्थित रहे। इनकी माता का नाम राज्यलक्ष्मी मुखर्जी था।
प्रणव दा ने बीरभूमि के सूरी विद्यासागर विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की, जो कोलकाता विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त था। इन्होने राजनीतिक विज्ञान के इतिहास में स्नाकोत्तर उपाधि प्राप्त की। कोलकाता विश्वविद्यालय से इन्होंने कानून की स्नातक उपाधि भी प्राप्त की।
प्रणव मुखर्जी ने उप लेखाकार सामान्य के कार्यालय में उच्च श्रेणी लिपिक के पद से अपने व्यावसायिक जीवन का आरंभ कोलकाता में किया। 1963 में यह 24 परगना के विद्यानगर महाविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान पढ़ाने लगे। राजनीतिक जीवन में प्रवेश करने से पूर्व इन्होने ‘देशेर डाक’ के लिए सक्रिय पत्रकार के रूप में भी कार्य किया। प्रणव मुखर्जी बंगीय साहित्य परिषद के ट्रस्टी एवं अखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे।
विवाह – Pranab Mukherjee Marriage
प्रणव दा का विवाह 13 जुलाई 1957 को शुभा मुखर्जी के साथ संपन्न हुआ था। इनके दो पुत्र हैं और एक पुत्री। इनके एक पुत्र अभिजीत मुखर्जी पश्चिम बंगाल कांग्रेस के सदस्य और विधायक हैं। प्रणव दा की एक बहन अन्नपूर्णा देवी बीरभूम के ‘मिलाती शहर’ में रहती है।
राजनीतिक में प्रवेश और राष्ट्रपति का पदभार – Career of Pranab Mukherjee
सन 1969 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में इन्होने राजनीतिक में प्रवेश किया। मिदनापुर उप-चुनाव में इन्होंने स्वतंत्रा उम्मीदवार कृष्णा मेनन की सफलता चुनाव मुहिम को अंजाम दिया। इससे तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती इंदिरा गांधी ने बेहद प्रभावित हुई और इनकी प्रतिभा को पहचान कर अपने दिल में सम्मिलित कर लिया। इन्हे जुलाई 1969 में राज्यसभा मे प्रतिनिधि बनाया गया। फिर 1975, 1981, 1993 और 1999 मे यह पुन: राज्यसभा के लिए चुने गए।
वे सन 1982 से 1984 तक कई कैबिनेट पदों के लिए चुने जाते रहे और और सन् 1984 में भारत के वित्त मंत्री बने। सन 1984 में, यूरोमनी पत्रिका के एक सर्वेक्षण में उनका विश्व के सबसे अच्छे वित्त मंत्री के रूप में मूल्यांकन किया गया। उनका कार्यकाल भारत के अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के ऋण की 1.1 अरब अमरीकी डॉलर की आखिरी किस्त नहीं अदा कर पाने के लिए उल्लेखनीय रहा। वित्त मंत्री के रूप में प्रणव के कार्यकाल के दौरान डॉ॰ मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे।
वे इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र लोगों में से एक रहे हैं। विवादास्पद आपातकाल के दौरान उन पर ज्यादितियां करने का भी आरोप लगा। राजीव गांधी के कार्यकाल में उनके सितारे गर्दिश में रहे क्योंकि वे भी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन राजीव समर्थकों के कारण असफल हो गए। वे राजीव गांधी की समर्थक मण्डली के षड्यन्त्र के शिकार भी हुए जिसने इन्हें मन्त्रिमणडल में शामिल नहीं होने दिया।
कुछ समय के लिए उन्हें कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया। उस दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक दल राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया, लेकिन सन 1989 मे राजीव से सुलह के बाद उन्होंने कांग्रेस में वापसी की। बाद में, पी.वी. नरसिंहराव ने योजना आयोग का प्रमुख बनाया। सोनिया गांधी को कांग्रेस प्रमुख बनवाने में भी उन्होंने अहम योगदान दिया। इससे पहले वे देश के विदेश मंत्री रहे। जब कांग्रेस नेतृत्व में यूपीए बनी तब उन्होंने पहली बार लोकसभा के लिए जांगीपुर से चुनाव जीता।
सन 2004 में, जब कांग्रेस ने गठबन्धन सरकार के अगुआ के रूप में सरकार बनायी, तो कांग्रेस के प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह सिर्फ एक राज्यसभा सांसद थे। इसलिए जंगीपुर (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से पहली बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले प्रणव मुखर्जी को लोकसभा में सदन का नेता बनाया गया। उन्हें रक्षा, वित्त, विदेश विषयक मन्त्रालय, राजस्व, नौवहन, परिवहन, संचार, आर्थिक मामले, वाणिज्य और उद्योग, समेत विभिन्न महत्वपूर्ण मन्त्रालयों के मन्त्री होने का गौरव भी हासिल है। वह कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधायक दल के नेता रह चुके हैं, जिसमें देश के सभी कांग्रेस सांसद और विधायक शामिल होते हैं। इसके अतिरिक्त वे लोकसभा में सदन के नेता, बंगाल प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मंत्रिपरिषद में केन्द्रीय वित्त मन्त्री भी रहे। वे मनमोहन के बाद सरकार के दूसरे बड़े नेता रहे।
10 अक्टूबर 2008 को मुखर्जी और अमेरिकी विदेश सचिव कोंडोलीजा राइस ने धारा 123 समझौते पर हस्ताक्षर किए। वे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और अफ्रीकी विकास बैंक के प्रशासक बोर्ड के सदस्य भी थे। सन 1984 में उन्होंने आईएमएफ और विश्व बैंक से जुड़े ग्रुप-24 की बैठक की अध्यक्षता की। मई और नवम्बर 1995 के बीच उन्होंने सार्क मन्त्रिपरिषद सम्मेलन की अध्यक्षता की।
जुलाई 2012 के चुनाव में उन्होंने पी.ए. संगमा को आसानी से हराकर राष्ट्रपति पद हासिल किया। उन्होंने निर्वाचक मंडल के 70 फीसदी मत हासिल किए थे।
सम्मान और उपाधि – Pranab Mukherjee Awards
सन 2007 में प्रणब मुखर्जी को भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा गया। 2011 मे वोल्वरहैम्तन विश्वविद्यालय द्वारा प्रणब जी को डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। वे एक संजीदा व्यक्तित्व वाले नेता हैं। पार्टी के सामाजिक क्षेत्र में उनको पूर्ण सम्मान दिया जाता है। उन्हें भारतीय राजनीति, आर्थिक मामलों व नीतिगत मुद्दों की गहरी समझ है। उन्होंने भारत के प्रथम बंगाली राष्ट्रपति होने का गौरव प्राप्त किया। उन्हें एक संपूर्ण राजनीतिज्ञ माना जाता है। प्रधानमंत्री पद को छोड़कर सभी पद उनके पास रहे और राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि वे मनमोहन सिंह के स्थान पर अच्छे प्रधानमंत्री सिद्ध होते।
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