मलिक मुहम्मद जायसी की जीवनी | Malik Muhammad Jayasi Biography

Malik Muhammad Jayasi / मलिक मुहम्मद जायसी हिन्दी साहित्य के भक्ति काल के प्रसिद्ध कवि और सूफी संत थे। उनका ‘पदमावत’ प्रेमकथात्याक परम्परा का सर्वश्रेष्ट पबंध काव्य है। जायसी अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ी महात्मा थे। हिन्दी के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि, जिनके लिए केवल ‘जायसी’ शब्द का प्रयोग भी, उनके उपनाम की भाँति, किया जाता है।

मलिक मुहम्मद जायसी की जीवनी | Malik Muhammad Jayasi Biography

जायसी का परिचय – Malik Muhammad Jayasi Biography in Hindi 

नाम मलिक मुहम्मद जायसी (Malik Muhammad Jayasi)
जन्म  सन 1397 ई॰ और 1494 ई॰ के बीच
जन्म स्थान रायबरेली ज़िला, उत्तर प्रदेश
पिता का नाम मलिक राजे अशरफ़
मुख्य रचनाएँ पद्मावत, अखरावट, आख़िरी कलाम, चित्ररेखा, कहरानामा अादि
भाषा अवधी
छंद दोहा-चौपाई
शैली आलंकारिक शैली, प्रतीकात्मक शैली, शब्द चित्रात्मक शैली तथा अतिशयोक्ति-प्रधान शैली
विषय सामाजिक, आध्यात्मिक
काल भक्ति काल
विधा कविता

मलिक मोहम्मद जायसी की गणना हिन्दी के तीन श्रेष्ठ महाकवियों-कबीरदास, सूरदास और तुलसीदासजी के साथ किया जाता हैं। जायसी सूफी प्रेममार्गी शाखा के सबसे श्रेष्ठ कवी माने जाते हैं। उनकी प्रेम की तीव्रता, गहनता, सूफी पद्धति पर ही विकसित हुई है।

प्रारंभिक जीवन – 

मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के जायस नामक कस्बे में 1466 ईस्वी में हुआ था। जायसी मलिक वंश के थे। मिस्रमें सेनापति या प्रधानमंत्री को मलिक कहते थे। हालाँकि जायसी के जन्म को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ के अनुसार उनका जन्म गाजीपुर में कहीं हो सकती है किन्तु इसके लिए कोई प्रमाण नहीं मिलता।

मलिक मुहम्मद जायसी के वंशज अशरफी खानदान के चेले थे और मलिक कहलाते थे। फिरोज शाह तुगलक के अनुसार बारह हजार सेना के रिसालदार को मलिक कहा जाता था। उनके पिता का नाम मलिक राजे अशरफ़ बताया जाता है और कहा जाता है कि वे मामूली ज़मींदार थे और खेती करते थे। स्वयं जायसी का भी खेती करके जीविका-निर्वाह करना प्रसिद्ध है।

जायसी की शिक्षा भी विधिवत् नहीं हुई थी। जो कुछ भी इन्होनें शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की वह मुसलमान फ़कीरों, गोरखपन्थी और वेदान्ती साधु-सन्तों से ही प्राप्त की थी। जायसी ने अपनी कुछ रचनाओं में अपनी गुरु-परम्परा का भी उल्लेख किया है। उनका कहना है, “सैयद अशरफ, जो एक प्रिय सन्त थे मेरे लिए उज्ज्वल पन्थ के प्रदर्शक बने और उन्होंने प्रेम का दीपक जलाकर मेरा हृदय निर्मल कर दिया।

जायसी का झुकाव आरम्भ से ही सूफी मत की ओर था। साथ ही उन्होंने हिन्दू धर्म के दार्शनिक सिद्धांतो का भी ज्ञान प्राप्त कर लिया था। ऐसा माना जाता है कि एक दुर्घटना में उनके पुत्र की मृत्यु होने के बाद उन्होंने गृष्ट जीवन त्याग दिया और सूफी संत बन गये।

जायसी बड़े ही उदार, भाबुक, आडम्बरहीन जीवन जीने वाले व्यक्ति थे। वे अत्यन्त काले और कुरूप लगते थे। एक दिन दरबार में उनकी कुरूपता को देखकर शेरशाह हंसने लगा, तो उन्होंने कहा: “मोहि का हंससि कि कोहरहि……”अर्थात् तुम मुझ पर हंसे कि मुझे बनाने वाले कुम्हार {ईश्वर} पर हंसे ? यह सुनकर शेरशाह बड़ा ही लज्जित हुआ और उनका भक्त बन गया।

जायसी की रचनाएँ –

जायसी की 21 रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं जिसमें पद्मावत, अखरावट, आख़िरी कलाम, कहरानामा, चित्ररेखा आदि प्रमुख हैं पर उनकी ख्याति का आधार पद्मावत ग्रंथ ही है। इसकी भाषा अवधी है और इसकी रचना शैली पर आदिकाल के जैन कवियों की दोहा चौपाई पद्धति का प्रभाव पड़ा है। ‘पद्मावत’ का रचनाकाल उन्होंने 147 हिजरी (‘सन नौ से सैंतालीस अहै’- पद्मावत 24)। अर्थात् 1540 ई॰ बतलाया है।

उनका सबसे प्रसिद्द रचना ‘पद्मावत’ भारतीय लोककथा पर आधारित हैं। इसमें सिंहल देश की राज कुमारी पदमावती तथा चित्तोड़ के राजा रत्नसेन की प्रेम कथा है। जायसी ने इसमें लौकिक कथा का वर्णन इस ढंग से किआ है की आलोकिक एंव परोक्षा सत्ता का आभास होने लगता है। इस काव्य वेर्नन में में रहस्य का गहरा पूट भी मिलता है। ‘पद्मावत’ मसनवी शैली में रचित एक प्रबंध काव्य है। यह महाकाव्य 57 खंडो में लिखा है।

जायसी ने अनेक काव्यों की रचना की। उनकी भाषा ठेठ अवधि है और काव्य-शैली अत्यंत प्रोढ़ एवं गंभीर। उनके द्वारा प्रयुक्त रूपक, उपमा, मुहावरे, लोक्तिया यहाँ तक की पूरी काव्य-रचना पर भी लोक संस्कृति का गहरा प्रभाव है जो उनकी रचनाओं को न्य अर्थ एंव सोंदर्य प्रदान करता है।

जायसी की मुख्य कृतियों के अलावा इनकी अतिरिक्त ‘मसदा’, ‘कहरनामा’, ‘मुकहरानामा’ व ‘मुखरानामा’, ‘मुहरानामा’, या ‘होलीनामा’, ‘खुर्वानामा’, ‘संकरानामा’, ‘चम्पावत’, ‘मटकावत’, ‘इतरावत’, ‘लखरावत’, ‘मखरावत’ या ‘सुखरावत’ ‘लहरावत’, ‘नैनावात’, ‘घनावत’, ‘परमार्थ जायसी’ और ‘पुसीनामा’ रचनाएँ भी जायसी की बतायी जाती हैं। किन्तु इनके विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है।

मलिक मुहम्मद जायसी का निधन –

अपनी रचनावो के लिए प्रसिद्द जायसी को अमेठी के राजा रामसिंह उन्हें बहुत मानते थे। अपने अंतिम दिनों में जायसी अमेठी से कुछ दूर एक घने जंगल में रहा करते थे। लोग बताते हैं कि अंतिम समय निकट आने पर उन्होंने अमेठी के राजा से कह दिया कि मैं किसी शिकारी के तीर से ही मरूँगा जिस पर राजा ने आसपास के जंगलों में शिकार की मनाही कर दी। जिस जंगल में जायसी रहते थे, उसमें एक शिकारी को एक बड़ा बाघ दिखाई पड़ा। उसने डर कर उस पर गोली चला दी। पास जा कर देखा तो बाघ के स्थान पर जायसी मरे पड़े थे। जायसी कभी कभी योगबल से इस प्रकार के रूप धारण कर लिया करते थे।


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