कुम्भ मेले का इतिहास और जानकारी | Kumbh Mela History in Hindi

Kumbh Mela in Hindi / भारत समृद्ध संस्कृति का एक ऐसा देश है जहाँ एक से ज्यादा धार्मिक संस्कृति के लोग एक साथ रहते हैं। इसलिए यहां धार्मिक यज्ञ, मेला आदि समय-समय पर आयोजित होते रहते है। इन्ही में एक कुम्भ मेला हैं जो हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण पर्व है। इस उत्सव में करोड़ों श्रद्धालु कुम्भ पर्व स्थल- हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि कुम्भ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वो जीवन- मरण के चक्र से मुक्त हो जाते है।

कुम्भ मेले का इतिहास और जानकारी | Kumbh Mela History in Hindi

कुम्भ मेला की जानकारी – Kumbh Mela Information in Hindi

कलश को कुम्भ कहा जाता है। कुंभ का अर्थ होता है घड़ा। इस पर्व का संबंध समुद्र मंथन के दौरान अंत में निकले अमृत कलश से जुड़ा है। कुम्भ मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है। माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गई थी। कुंभ मेले का आयोजन चार जगहों पर होता है:- हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष में इस पर्व का आयोजन होता है। मेला प्रत्येक तीन वर्षो के बाद नासिक, इलाहाबाद, उज्जैन और हरिद्वार में बारी-बारी से मनाया जाता है।

2017 में यूनेस्को ने भारत मे आयोजित इस मेले को ‘इनटैन्जिबल कल्चर हेरिटेज ऑफ़ ह्यूमैनिटी लिस्ट’ में शामिल किया है। इस तरह से यह मेला एक वैश्विक स्तर का आयोजन बन गया है। इस मेले मे स्वदेशी लोगों के साथ विदेशी अतिथी भी शामिल होते है।

धार्मिक मान्यता – Kumbh Mela Story 

कुंभ पर्व के आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है। जो इस प्रकार हैं –

इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी।

भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र ‘जयंत’ अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा।

वह युद्ध बारह वर्षों तक चला। इस दौरान सूर्य, चंद्रमा, गुरु एवं शनि ने अमृत कलश की रक्षा में सहयोग दिया। इन बारह वर्षों में बारह स्थानों पर जयंत द्वारा अमृत कलश रखने से वहाँ अमृत की कुछ बूंदे छलक गईं। कहते हैं उन्हीं स्थानों पर, ग्रहों के उन्हीं संयोगों पर कुम्भ पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि उनमें से आठ पवित्र स्थान देवलोक में हैं तथा चार स्थान पृथ्वी पर हैं।

देव-दानव कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया। जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुंभ पर्व होता है।

हिन्दू पंचाग के अनुसार कुम्भ मेले को तीन प्रकारों में बांटा गया है – Kumbh Mela Calendar 

  • महाकुम्भ – हर 144 वर्षो में (12 पूर्ण कुम्भो के पूर्ण होने पर)
  • कुम्भ मेला – हर 12 सालो में आयोजित
  • अर्द्ध कुम्भ – हर 6 साल में आयोजित (दो पूर्ण कुम्भ मेलो के बीच)

गुरू एक राशि लगभग एक वर्ष रहता है। इस तरह बारह राशि में भ्रमण करते हुए उसे 12 वर्ष का समय लगता है। इसलिए हर बारह साल बाद फिर उसी स्थान पर कुंभ का आयोजन होता है। लेकिन कुंभ के लिए निर्धारित चार स्थानों में अलग-अलग स्थान पर हर तीसरे वर्ष कुंभ का अयोजन होता है। कुंभ के लिए निर्धारित चारों स्थानों में प्रयाग के कुंभ का विशेष महत्व है। हर 144 वर्ष बाद यहां महाकुंभ का आयोजन होता है।

शास्त्रों में बताया गया है कि पृथ्वी का एक वर्ष देवताओं का दिन होता है, इसलिए हर बारह वर्ष पर एक स्थान पर पुनः कुंभ का आयोजन होता है। देवताओं का बारह वर्ष पृथ्वी लोक के 144 वर्ष के बाद आता है। ऐसी मान्यता है कि 144 वर्ष के बाद स्वर्ग में भी कुंभ का आयोजन होता है इसलिए उस वर्ष पृथ्वी पर महाकुंभ का अयोजन होता है। महाकुंभ के लिए निर्धारित स्थान प्रयाग को माना गया है।

कुम्भ मेले का इतिहास – Kumbh Mela History in Hindi

कुंभ मेले का आयोजन प्राचीन काल से हो रहा है, लेकिन मेले का प्रथम लिखित प्रमाण महान बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग के लेख से मिलता है जिसमें छठवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के शासन में होने वाले कुंभ का प्रसंगवश वर्णन किया गया है।

कुंभ मेले के आयोजन का प्रावधान कब से है इस बारे में विद्वानों में अनेक भ्रांतियाँ हैं। वैदिक और पौराणिक काल में कुंभ तथा अर्धकुंभ स्नान में आज जैसी प्रशासनिक व्यवस्था का स्वरूप नहीं था। कुछ विद्वान गुप्त काल में कुंभ के सुव्यवस्थित होने की बात करते हैं। परन्तु प्रमाणित तथ्य सम्राट शिलादित्य हर्षवर्धन 617-647 ई. के समय से प्राप्त होते हैं। बाद में श्रीमद आघ जगतगुरु शंकराचार्य तथा उनके शिष्य सुरेश्वराचार्य ने दसनामी संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर स्नान की व्यवस्था की।

कुंभ का पर्व इन चार जगहों पर – Kumbh Mela Place 

प्रयाग में कुंभ : ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार जब बृहस्पति कुम्भ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तब कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। प्रयाग कुंभ का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह 12 वर्षो के बाद गंगा, यमुना एवं सरस्वती के संगम पर आयोजित किया जाता है।

हरिद्वार में कुंभ : हरिद्वार हिमालय पर्वत शृंखला के शिवालिक पर्वत के नीचे स्थित है। प्राचीन ग्रंथों में हरिद्वार को तपोवन, मायापुरी, गंगाद्वार और मोक्षद्वार आदि नामों से भी जाना जाता है। हरिद्वार का सम्बन्ध मेष राशि से है। कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुंभ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का भी आयोजन होता है।

नासिक में कुम्भ : यह स्थान नासिक से 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और गोदावरी नदी का उद्गम भी यहीं से हुआ। 12 वर्षों में एक बार सिंहस्थ कुंभ मेला नासिक एवं त्रयम्बकेश्वर में आयोजित होता है। सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुकुंभ पर्व गोदावरी के तट पर नासिक में होता है। अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य एवं चन्द्र के कर्क राशि में प्रवेश होने पर भी कुंभ पर्व गोदावरी तट पर आयोजित होता है।

उज्जैन में कुंभ : उज्जैन का अर्थ है विजय की नगरी और यह मध्य प्रदेश की पश्चिमी सीमा पर स्थित है। सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है। इसके अलावा कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र के साथ होने पर एवं बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश होने पर मोक्षदायक कुंभ उज्जैन में आयोजित होता है।

कुम्भ के अनुष्ठान – Kumbh Mela facts

कुम्भ मेला, विश्व का सबसे विशाल आयोजन है जिसमें अलग अलग जाति, धर्म, क्षेत्र के लाखों लोग भाग लेते हैं। ऐसी मान्यता है कि कुम्भ में स्नान करने से सारे पाप दूर हो जाते हैं और मनुष्य जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। कुम्भ मेला सभी हिंदू तीर्थ में पवित्र माना जाता है।

इस स्नान का पौराणिक महत्व स्वर्ग और मुक्ति से संबंध रखता है। स्नान के लिए तय तिथि को श्रद्धालु सुबह तीन बजे से स्नान के लिए लाइन में लग जाते हैं। सूर्योदय होने के साथ ही सभी श्रद्धालु स्नान के लिए नदी में उतरने लगते हैं। समस्त साधुओं में नागा साधुओं को सर्वप्रथम स्नान का सौभाग्य प्राप्त होता है। स्नान के बाद श्रद्धालु नये और पवित्र कपडे पहन कर घाट पर पूजा करते हैं। इस मेले में विभिन्न सिद्ध पुरुष और साधुओं का आगमन होता है।

कुम्भ में आयोजनों में पेशवाई का महत्वपूर्ण स्थान है। पेशवाई का अर्थ होता है प्रवेशाई यानि शोभायात्रा। ये शोभायात्रा दुनियाभर से आने वाले लोगो का स्वागत कर कुम्भ मेले के आयोजन को सूचित करने के लिए निकाली जाती है। पेशवाई में साधू-संत अपनी टोलियों के साथ बड़े धूमधाम के साथ प्रदर्शन करते हुए कुम्भ में पहुचते है। हाथी, घोड़ो, बग्घी, बैंड-बाजो के साथ निकलने वाली पेशवाई का स्वागत एवं दर्शन करने के लिए मार्ग के दोनों तरफ भारी संख्या में श्रुद्धालू और सेवादार खड़े रहते है।

मकर सक्रांति से हर दिन कुम्भ का पवित्र माना जाता है। पर कुछ तिथि बेहद ख़ास होती है। इन्ही तिथियों को स्नान को शाही स्नान या राजयोगी स्नान कहते है। अलग अलग अखाड़ो के सदस्य, संत-शिष्य शोभायात्राओ के साथ पहुचते है। आखाड़ो के शाही स्नान के बाद ही आम जनता को स्नान करने का मौका मिलता है।

कुम्भ में अखाड़ो के शक्ल में हिन्दू धर्म के संगठित और विराट स्वरूप का दर्शन किया जा सकता है। ये स्वरूप आदिगुरु शंकराचार्य की देन है। उन्होंने संत-सन्यासियों को दशनामी परम्परा में बांटा था यानि दस अलग अलग समूहों में। अब इनकी संख्या 13 हो गयी है। जिन्हें अखाड़ा कहा जाता है। कुम्भ एक ऐसा मौका है जिसमे सभी अखाड़े एक साथ आ जाते है।

कुम्भ मेला की सुविधा 

कुम्भ के दौरान प्रयागराज आने वाले पर्यटकों और श्रुधालुओ के स्वागत के लिए PaintMyCity योजना तैयार की गयी। यदि आप एक श्रद्धालु होकर इस मेले में जाना चाहते हैं और स्नान का पुण्य उठाना चाहते हैं, तो आपको साधारण तौर से ही जाना होता है। ये मेला जहां भी आयोजित होता है वहाँ यातायात के लिए ट्रेन और सड़क मार्गो की अच्छी व्यवस्था उपलब्ध है।

इस बार श्रुधालुओ की सुविधाओं का ख्याल रखते हुए कुम्भ में पांच सितारा सुविधाओं से लेस टेंट सिटी भी बनाई गयी है इसमें श्रुधलुओ को Wi-Fi एवं अन्य तकनीकी सुविधाए भी मुहैया कराई जायेगी। प्रयागराज कुम्भ मेला 2019 के लिए वेबसाइट, मोबाइल एप्प और सोशल मीडिया चैनल प्रदेश सरकार द्वारा लागु किये गए है। कुम्भ मेला एप्प से आप सही जानकारी आसानी से पा सकते हैं।

 

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