Kedarnath Temple / केदारनाथ मंदिर एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर हैं जो भगवान शिव को समर्पित है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में बसा केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। हजारो साल पुराना यह मंदिर विशाल पत्थरो से बना हुआ है। केदारखण्ड में द्वादश (बारह) ज्योतिर्लिंग में आने वाले केदारनाथ दर्शन के सम्बन्ध में लिखा है कि जो कोई व्यक्ति बिना केदारनाथ भगवान का दर्शन किये यदि बद्रीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है, तो उसकी यात्रा निष्फल अर्थात व्यर्थ हो जाती है। आइये जाने, केदारनाथ का History, Story, Facts..
केदारनाथ धाम की जानकारी – Kedarnath Dham Information in Hindi
उत्तराखण्ड के हिमालय क्षेत्र में चारधाम के नाम से बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री तथा यमुनोत्री प्रसिद्ध हैं। ये तीर्थ देश के सिर-मुकुट में चमकते हुए बहुमूल्य रत्न हैं। इनमें बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थो के दर्शन का विशेष महत्त्व है। केदारनाथ का ज्योतिर्लिंग 3584 मी की ऊँचाई पर स्थित है। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया।
श्री केदारनाथ जी का मन्दिर पर्वतराज हिमालय की ‘केदार’ नामक चोटी पर अवस्थित है। इस चोटी की पूर्व दिशा में कल-कल करती उछलती अलकनन्दा नदी के परम पावन तट पर भगवान बद्री विशाल का पवित्र देवालय स्थित है तथा पश्चिम में पुण्य सलिला मन्दाकिनी नदी के किनारे भगवान श्री केदारनाथ विराजमान हैं। चरम मौसम की स्थिति के कारण यह मंदिर अप्रैल (अक्षय तृतीया) से कार्तिक पूर्णिमा (साधारणतः नवम्बर) तक ही खुला रहता है। सर्दियों के मौसम में केदारनाथ के भगवान शिव की मूर्ति को उखीमठ ले जाया जाता है और वहाँ 6 महीनो तक उनकी पूजा की जाती है। भगवान शिव की पूजा ‘केदारनाथ धाम’ के नाम से की जाती है।
मन्दिर के अन्दर गर्भगृह है जहाँ भगवान की पूजा की जाती है। मन्दिर परिसर के अन्दर ही एक मम्डप स्थित है जहाँ पर विभिन्न धार्मिक समारोहों का आयोजन होता है। लोककथाओं के अनुसार कुरूक्षेत्र के युद्ध के उपरान्त पाँण्डव अपने पापों के प्रायश्चित के लिये इस मन्दिर में आये थे। यह मंदिर 3584 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है, सीधे रास्ते से आप इस मंदिर में नही जा सकते और गौरीकुंड से मंदिर तक जाने के लिए आपको 21 किलोमीटर की पहाड़ी यात्रा करनी पड़ती है। मंदिर तक जाने के लिए गौरीकुंड में टट्टू और मेनन की सेवाए भी प्रदान की जाती है। साथ ही यह मंदिर 275 पादल पत्र स्थलों में से भी एक है।
केदारनाथ मंदिर का इतिहास – Kedarnath Temple History in Hindi
इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक केदारनाथ मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा फिर भी इस मंदिर को कुछ नहीं हुआ, इसलिए वैज्ञानिक इस बात से हैरान नहीं है कि ताजा जल प्रलय में यह मंदिर बच गया।
केदारनाथ धाम का इतिहास राजा भोज से जुड़ा हैं। विक्रम संवत् 1076 से 1099 तक राज करने वाले मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर को बनवाया था, लेकिन कुछ लोगों के अनुसार यह मंदिर 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने बनवाया था। बताया जाता है कि मौजूदा केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे पांडवों ने एक मंदिर बनवाया था, लेकिन वह मंदिर वक्त के थपेड़ों की मार नहीं झेल सका।
1882 के इतिहास के अनुसार साफ अग्रभाग के साथ मंदिर एक भव्य भवन था जिसके दोनों ओर पूजन मुद्रा में मूर्तियाँ हैं। “पीछे भूरे पत्थर से निर्मित एक टॉवर है इसके गर्भगृह की अटारी पर सोने का मुलम्मा चढ़ा है। मंदिर के सामने तीर्थयात्रियों के आवास के लिए पण्डों के पक्के मकान है। जबकि पूजारी या पुरोहित भवन के दक्षिणी ओर रहते हैं।
इस मन्दिर में उत्तम प्रकार की कारीगरी की गई है। मन्दिर के ऊपर स्तम्भों में सहारे लकड़ी की छतरी निर्मित है, जिसके ऊपर ताँबा मढ़ा गया है। मन्दिर का शिखर (कलश) भी ताँबे का ही है, किन्तु उसके ऊपर सोने की पॉलिश की गयी है। मन्दिर के गर्भ गृह में केदारनाथ का स्वयंमभू ज्योतिर्लिंग है, जो अनगढ़ पत्थर का है। यह लिंगमूर्ति चार हाथ लम्बी तथा डेढ़ हाथ मोटी है, जिसका स्वरूप भैंसे की पीठ के समान दिखाई पड़ता है। इसके आस-पास सँकरी परिक्रमा बनी हुई है, जिसमें श्रद्धालु भक्तगण प्रदक्षिणा करते हैं। इस ज्योतिर्लिंग के सामने जल, फूल, बिल्वपत्र आदि को चढ़ाया जाता है और इसके दूसरे भाग में यात्रीगण घी पोतते हैं। भक्त लोग इस लिंगमूर्ति को अपनी बाँहों में भरकर भगवान से मिलते भी हैं।
मन्दिर की पूजा श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है। प्रात:काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है। इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं। केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं।
केदारनाथ मन्दिर से जुडी शिव पुराण में कथा – Kedarnath Story in Hindi
पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे।
भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।
अन्य कथा – Kedarnath ki Katha in Hindi
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं।
केदारनाथ धाम में पूजा और दर्शन – Kedarnath me Darshan
श्री केदारनाथ मंदिर में शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजे जाते है। शिव की भूजाए तुंगनाथ में , मुख रुद्रनाथ में , नाभि मदम्देश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को “पंचकेदार” कहा जाता है। केदारनाथ पहुंचने के लिए गौरीकुण्ड से 15 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है।
2013 का प्रलय – Kedarnath 2013 Flood Story in Hindi
जून 2013 के दौरान भारत के उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा। मंदिर की दीवारें गिर गई और बाढ़ में बह गयी। इस ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहे लेकिन मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया। लेकिन मंदिर के आंतरिक भाग को इससे ज्यादा क्षति नही पहुची। लेकिन वर्तमान में यहाँ की परिस्थिति सुधर चुकी है और अब आम लोगो के लिए केदारनाथ के द्वार खुल चुके है।
केदारनाथ धाम से जुड़े रोचक तथ्य – Facts About Kedarnath Dham in Hindi
- केदारनाथ मंदिर न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है यहां- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी।
- केदारनाथ मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है ।
- केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते है।
- केदारनाथ मंदिर एवं सन 2013 में वहां आई अभूतपूर्व त्रासदी को दर्शाने के लिए एक फिल्म का निर्माण किया गया है। जिसका नाम है ‘केदारनाथ’।
- बाबा केदार का ये धाम कात्युहरी शैली में बना हुआ है। इसके निर्माण में भूरे रंग के बड़े पत्थरों का प्रयोग बहुतायत में किया गया है। मंदिर की छत लकड़ी की बनी हुई है, जिसके शिखर पर सोने रंग का कलश है।
- केदारनाथ मंदिर को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है पहला – गर्भगृह, दूसरा – दर्शन मंडप (जहां पर दर्शनार्थी एक बड़े प्रांगण में खड़े होकर पूजा करते हैं) और तीसरा – सभा मंडप (इस जगह पर सभी तीर्थ यात्री जमा होते हैं)।
- साल में भगवान केदारनाथ के दर्शन के लिए ये मंदिर केवल 6 महीने ही खुलता है और बाकी 6 महीने बंद रहता है। रहस्य की बात यह हैं की, जब 6 महीने का समय पूरा होता है तो मंदिर के पुजारी इस मंदिर में एक दीपक जलाते हैं। जो कि अगले 6 महीने तक जलता रहता है 6 महीने बाद जब ये मंदिर खोला जाता है तब ये दीपक जलता हुआ मिलता है।
केदारनाथ कैसे पहुंचे – How to Reach Kedarnath Dham in Hindi
केदारनाथ मंदिर तक पहुंचने के तीन रास्ते हैं। जो हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून है। केदारनाथ हरिद्वार से 247 किमी दूर है। और केदारनाथ देहरादून से 256 किमी दूर है। लेकिन सबसे नजदीकी शहर ऋषिकेश हैं, जो केदारनाथ से सिर्फ 105 किमी दूर है। आप ट्रैन, हवाई, बस और निजी वाहन से पहुँच सकते हैं।
रेल मार्ग : अगर आप ट्रैन से केदारनाथ दर्शन के लिए यात्रा कर रहे हैं, तो ऋषिकेश रेलवे स्टेशन तक आ सकते है, यहां से केदारनाथ यात्रा की 30 किलोमीटर की दूरी कम पड़ जाएँगी। लेकिन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन पर सिर्फ लोकल ट्रेन ही आती है। इसलिए आपको अपने शहर से हरिद्वार रेलवे स्टेशन आना होगा और वहां से ऋषिकेश आ सकते हैं।
हवाई जहाज : केदारनाथ जाने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून एयरपोर्ट हैं। भारत के लगभग सभी शहरों विमान यहां आते हैं। इसके बाद आपको बाकी की यात्रा बस या टैक्सी से करनी होगी।
सड़क मार्ग : यदि आप अपने निजी वाहन से यात्रा करने का विचार बना रहे है तो यह सुनिश्चित कर ले कि वहां का “ग्राउंड क्लीयरेंस” हो क्यूंकि पूरे यात्रा के दौरान सड़क मार्ग में चट्टानें हैं जिससे की वाहन को नुकसान हो सकता है। आप नजदीकी शहर ऋषिकेश पहुँच सकते हैं, इसके बाद केदारनाथ के लिए निकल सकते हैं।
केदारनाथ के लिए सबसे पहले गौरी कुंड आना होता हैं, यहाँ से घोड़े खच्चर, पिट्ठू में बैठकर, या पैदल यात्रा करके केदारनाथ पहुंचा जा सकता हैं।
Kedarnath Temple Address – Kedarnath Temple is located in the town of Kedarnath in Rudraprayag District, Uttarakhand – 246445
केदारनाथ जाने का सही समय – Kedarnath Timing
जैसे की ऊपर पहले ही बताया गया हैं केदानाथ दर्शन के लिए साल में 6 महीने खुला रहता हैं। यह मंदिर अप्रैल मई में अक्षय तृतीया के दिन खोला जाता है और ऑक्टूबर, नवंबर में कार्तिक पूर्णिमा के दिन केदरनाथ मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है। ऐसे तो आप इस बिच कभी भी दर्शन के लिए जा सकते हैं, पर सितम्बर से ऑक्टूबर के बिच भीड़ थोड़ी कम होती हैं। यहां सावन के महीने में कांवड़िये केदारनाथ में जल चढ़ाने को उमड़ते हैं। देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग है। मान्यता है कि यहां जल चढ़ाने से सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। दर्शन के लिए सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक या सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता हैं। इस बीच श्रद्धालु दर्शन कर सकते हैं।
FAQ
केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने किया?
एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर युग में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में है।
केदारनाथ 6 महीने के लिए क्यों बंद है?
केदारनाथ मंदिर पहाड़ी एरिया में बसा हैं, इसलिए यहां होने वाली भारी बर्फबारी के कारण मंदिर 6 महीने के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
केदारनाथ की चढ़ाई में कितना समय लगता है?
गौरीकुंड से केदारनाथ धाम पैदल जाने में कुल 5-6 घंटे का समय लगता है।
केदारनाथ जाने में कितना खर्चा होता है?
यह आप पर निर्भर करता हैं की आप कितना खर्च कर रहे हैं, लेकिन एक अनुमानित 50000 रुपए खर्च आते हैं।
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