Poet Hari ram vyas / हरिराम व्यास रीतिकालीन राधावल्लभ सम्प्रदाय के उच्च कोटि के भक्त तथा कवि थे। इनका जन्म-स्थान ओरछा (टीकमगढ़ ) राज्य माना जाता है। राघावल्लभीय संप्रदाय के हरित्रय में इनका विशिष्ट स्थान है।
हरिराम व्यास का परिचय – Hari ram vyas Biography & History in Hindi
हरिराम व्यास जी के जन्म- संवत में कोई ऐतिहासिक या अन्य ऐसा उल्लेख नहीं मिलता जिसके आधार पर निर्विवाद रूप से कुछ कहा जा सके। परन्तु इनकी रचनाओं और अन्य भक्त कवियों की वाणी से जो संकेत उपलब्ध होते हैं आधार पर व्यास जी का जन्म -संवत 1549 और मृत्यु-संवत 1650 से 1655 के मध्य स्वीकार किया जा सकता है।
व्यास जी जन्म सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम समोखन शुक्ल था, इसी नाम को कतिपय स्थलों सुमोखन या सुखोमणि भी लिखा गया है। व्यास जी ने अपने परिवार की परम्परा के अनुकूल शैशव में ही संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। वे बड़े विद्या-व्यसनी पंडित थे। पुराण और दर्शन से विशेष अनुराग था।
ओरछा नरेश मधुकरशाह इनके मंत्रिशष्य थे। हरिराम व्यास अपने पिता की ही भाँति परम वैष्णव तथा सद्गृहस्थ थे। राधाकृष्ण की ओर विशेष झुकाव हो जाने से ये ओरछा छोड़कर वृन्दावन चले आए। राधावल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख आचार्य गोस्वामी हितहरिवंश के जीवन दर्शन का इनके ऊपर ऐसा मोहक प्रभाव पड़ा कि इनकी अंतर्वृत्ति नित्यकिशोरी राधा तथा नित्यकिशोर कृष्ण के निकुंज लीलागान मे रम गई।हरिराम व्यास की प्रवृत्ति दार्शनिक मतभेदों को प्रश्रय देने की नहीं थी। राघावल्लभीय संप्रदाय के मूल तत्व-नित्यविहार दर्शन, जिसे रसोपासना भी कहते हैं, की सहज अभिव्यक्ति इनकी वाणी में हुई है। श्रृंगार के अंतर्गत हरिराम व्यास ने संयोगपक्ष को नित्यलीला का प्राण माना है। ‘राधा का नखशिख’ और ‘श्रृंगार परक’ इनकी अन्य रचनाएँ भी संयमित एवं मर्यादित हैं। ‘व्यासवाणी’ भक्ति और साहित्यिक गरिमा के कारण इनकी श्रेष्ठ कृतियाँ हैं।
सोभा जुगलकिसोर की !
सुख सागर चौथा ए !!
आवें लेहेरें नेहेरें अति बड़ी !
झीलें अरवाहें जो इन के !!
प्रणाम जी