Dr. Sarvepalli Radhakrishnan / डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान भारतीय दर्शनशास्त्री थे जो स्वतंत्र भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने थे। इन्होने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाया। जिनका कार्यकाल 13 मई 1962 से 13 मई 1967 तक रहा। इनका नाम भारत के महान राष्ट्रपतियों की प्रथम पंक्ति में सम्मिलित है। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के लिए संपूर्ण राष्ट्रीय का सदा ऋणी रहेगा। 5 सितम्बर को उनके जन्मदिन पर शिक्षक दिन मनाया जाता हैं।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का परिचय – Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography
पूरा नाम | डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) |
जन्म दिनांक | 5 सितंबर 1888 |
जन्म भूमि | तिरूतनी, तमिलनाडु |
मृत्यु | 17 अप्रैल, 1975, चेन्नई, तमिलनाडु |
पिता का नाम | सर्वपल्ली वीरास्वामी |
माता का नाम | सीताम्मा |
पत्नी | सिवाकामू |
कर्म-क्षेत्र | शिक्षाविद, महान् दार्शनिक, महान् वक्ता |
नागरिकता | भारतीय |
शिक्षा | एम.ए. |
पुरस्कार-उपाधि | भारत रत्न |
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के ज्ञानी, एक महान् शिक्षाविद, महान् दार्शनिक, महान् वक्ता होने के साथ ही साथ विज्ञानी हिन्दू विचारक थे। डॉक्टर राधाकृष्णन ने अपने जीवन के 40 वर्ष एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किए थे। वह एक आदर्श शिक्षक थे। डॉ. राधाकृष्णन ने अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। वे पेरिस में यूनेस्को नामक संस्था की कार्यसमिति के अध्यक्ष भी रहे। यह संस्था ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ का एक अंग है और पूरे विश्व के लोगों की भलाई के लिए अनेक कार्य करती है। डॉ. राधाकृष्णन सन् 1949 से सन् 1952 तक रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत पद पर रहे। भारत रूस की मित्रता बढ़ाने में उनका भारी योगदान रहा था।
शुरुआती जीवन – Early Life of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी गाँव में जो मद्रास(चेन्नई) से लगभग 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 5 सितंबर 1888 को हुआ था। यह एक ब्राह्मण परिवार से संबंधित है। इनका जन्म स्थान एक पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात रहा है। (वैसे डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि उनका जन्म 20 सितंबर 1887 को हुआ था लेकिन सरकारी कागजातों में अंकित उनकी जन्मतिथि को ही आधिकारिक जन्मतिथि माना जाता है)
डॉक्टर राधाकृष्णन के पुरखे पहले सर्वपल्ली नामक गाँव में रहते थे और 18वी शताब्दी के मध्य में उन्होंने तिरुपति ग्राम की ओर निष्क्रमण किया था। लेकिन इनके पुरखे चाहते थे, कि उनके नाम के साथ उनके जन्म स्थल के ग्राम का बोध भी सदा रहना चाहिए। इसी कारण उनके परिजन अपने नाम के पूर्व ‘सर्वपल्ली’ धारण करने में लगे थे।
डॉक्टर राधाकृष्णन एक गरीब किंतु विद्वान ब्राह्मण की दूसरी संतान के रूप में पैदा हुए। इनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी और माता का नाम सितम्मा था। इनके पिता राजस्व विभाग में वैकल्पिक कार्यालय में काम करते थे। उन पर बड़े परिवार के भरण पोषण का दायित्व था। इनके पिता काफी कठिनाई के साथ परिवार का निर्वाह कर रहे थे। इस कारण बालक राधाकृष्णन को बचपन में कोई विशेष सुख नहीं प्राप्त हुआ।
शिक्षा और शादी
डॉक्टर राधाकृष्णन का बाल्यकाल तिरुतनि एवं तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही व्यतीत हुआ। बालक राधाकृष्णन ने अपनी शुरुआती शिक्षा क्रिश्चन मिशनरी संस्था लूथर मिशन स्कूल तिरुपति में 1896 से 1900 के बीच प्राप्त की। फिर अगले 4 वर्ष की शिक्षा वेल्लूर में हुई। इसके बाद इन्होने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज मद्रास में शिक्षा प्राप्त की।
उस समय मद्रास के ब्राह्मण परिवारों में भी कम उम्र में ही शादी संपन्न हो जाती थी और राधाकृष्णन इसके अपवाद नहीं रहे। 1903 में 16 वर्ष की आयु में ही इनका विवाह दूर के रिश्ते की बहन सिवाकामू के साथ संपन्न हो गया। उस समय उनकी पत्नी की आयु मात्र 10 वर्ष थी। अत: 3 वर्षों बाद इनकी पत्नी ने इनके साथ ररहना आरंभ किया।
कैरियर – Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Career
21 वर्ष की उम्र अर्थात 1909 में राधाकृष्णन ने मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में कनिष्ठ व्याख्याता के तौर पर दर्शन शास्त्र पढ़ना आरंभ किया। यह उनका परम सौभाग्य था कि उनको अपनी प्रकृति के अनुकूल आजीविका प्राप्त हुई थी। यहां उन्होंने 7 वर्षों तक ना केवल अध्यापन कार्य किया बल्कि स्वंय भी भारतीय दर्शन और भारतीय धर्म का गहराई से अध्ययन किया। उन दिनों व्याख्याता के लिए यह आवश्यकता था की अध्यापन हेतु वह शिक्षण का परिशिक्षण भी प्राप्त करें।
- 1940 में प्रथम भारतीय के रूप में ब्रिटिश अकादमी में चुने गए।
- 1939 से 1948 तक बनारस के हिंदू विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे।
- ऑक्स्फर्ड विश्वविद्यालय के 1936 से 1952 तक प्रोफेसर रहे।
- डॉक्टर राधाकृष्णन वाल्टेयर विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश के 1931 से 1936 तक वाइस चांसलर है।
- कोलकाता विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले जॉर्ज पंचम कॉलेज के प्रोफेसर के रूप में 1937 से 1941 तक कार्य किया।
- 1953 से 1962 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के चांसलर रहे।
- 1948 में उनेस्को में भारत के प्रतिनिधित्व के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
भारत के राष्ट्रपति का पदभार – Former President of India Dr. Sarvepalli Radhakrishnan
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की प्रतिभा का ही असर था कि, उन्हें स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। 1952 में जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर राधाकृष्णन सोवियत संघ के विशिष्ट राजदूत बने और इसी साल वे उपराष्ट्रपति के पद के लिये निर्वाचित हुए।
1962 में राजेन्द्र प्रसाद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पद संभाला। 13 मई, 1962 को 31 तोपों की सलामी के साथ ही डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की राष्ट्रपति के पद पर ताजपोशी हुई।
जब वे भारत के राष्ट्रपति बने, तब उनके कुछ मित्रो और विद्यार्थियों ने उनसे कहा की वे उन्हें उनका जन्मदिन (5 सितम्बर) मनाने दे। तब राधाकृष्णन ने बड़ा ही प्यारा जवाब दिया, “5 सितम्बर को मेरा जन्मदिन मनाने की बजाये उस दिन अगर शिक्षको का जन्मदिन मनाया जाये, तो निच्छित ही यह मेरे लिए गर्व की बात होगी।” और तभी से उनका जन्मदिन भारत में शिक्षक दिन के रूप में मनाया जाता है।
प्रसिद्द दार्शनिक बर्टेड रसेल ने डॉ राधाकृष्णन के राष्ट्रपति बनने पर कहा था – “यह विश्व के दर्शन शास्त्र का सम्मान है कि महान भारतीय गणराज्य ने डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को राष्ट्रपति के रूप में चुना और एक दार्शनिक होने के नाते मैं विशेषत: खुश हूँ। प्लेटो ने कहा था कि दार्शनिकों को राजा होना चाहिए और महान भारतीय गणराज्य ने एक दार्शनिक को राष्ट्रपति बनाकर प्लेटो को सच्ची श्रृद्धांजलि अर्पित की है।“
डॉ. राधाकृष्णन 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति रहे , और कार्यकाल पूरा होने के बाद मद्रास चले गए। वहाँ उन्होंने पूर्ण अवकाशकालीन जीवन व्यतीत किया। उनका पहनावा सरल और परम्परागत था , वे अक्सर सफ़ेद कपडे पहनते थे और दक्षिण भारतीय पगड़ी का प्रयोग करते थे।
डॉक्टर राधाकृष्णन पूरी दुनिया को ही एक विद्यालय के रूप में देखते थे। उनका विचार था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सही उपयोग किया जा सकता है। अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए। वे भारत को एक शिक्षित राष्ट्र बनाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने अपना पूरा जीवन बच्चो को पढ़ाने और जीवन जीने का सही तरीका बताने में व्यतीत किया।
उनके दर्शनशास्त्र का आधार अद्वैत वेदांत था, जिसे वे आधुनिक समझ के लिए पुनर्स्थापित करवाना चाहते थे। उन्होंने पश्चिमी परम्पराओ की आलोचना करते हुए हिंदुत्वता की रक्षा की, ताकि वे देश में एक आधुनिक हिन्दी समाज का निर्माण कर सके। वे भारतीयों और पश्चिमी दोनों देशो में हिंदुत्वता की एक साफ़-सुथरी तस्वीर बनाना चाहते थे, जिसे दोनों देशो के लोग आसानी से समझ सके और भारतीय और पश्चिमी देशो के मध्य संबंध विकसित हो सके।
राधाकृष्णन को उनके जीवन के कई उच्चस्तर के पुरस्कारों से नवाज़ा गया जिसमे 1931 में दी गयी “सामंत की उपाधि” भी शामिल है और 1954 में दिया गया भारत का नागरिकत्व का सबसे बड़ा पुरस्कार “भारत रत्न” भी शामिल है तथा उन्हें 1963 में ब्रिटिश रॉयल आर्डर की सदस्यता भी दी गयी।
मृत्यु – Sarvepalli Radhakrishnan Died
असीम प्रतिभा का धनी सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन लम्बी बीमारी के बाद 17 अप्रैल, 1975 को सुबह मृत्यु हो गयी। देश के लिए यह अपूर्णीय क्षति थी। परंतु अपने समय के महान दार्शनिक तथा शिक्षाविद् के रूप में वे आज भी अमर हैं।
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