Chaudhary Charan Singh / चौधरी चरण सिंह एक भारतीय राजनेता और देश के पांचवे प्रधानमंत्री (Prime Minister of India) थे। इनका कार्यालय 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक रहा था।
चौधरी चरण सिंह का परिचय – Charan Singh Biography in Hindi
पूरा नाम | चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) |
जन्म दिनांक | 23 दिसम्बर, 1902 |
जन्म भूमि | नूरपुर ग्राम, मेरठ, उत्तर प्रदेश, |
मृत्यु | 29 मई, 1987 |
पिता का नाम | चौधरी मीर सिंह |
पत्नी | गायत्री देवी |
शिक्षा | विज्ञान स्नातक, कला स्नातकोत्तर और विधि |
कर्म-क्षेत्र | राजनितिक, लेखन |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | कांग्रेस और लोक दल |
पद | भारत के पाँचवें प्रधानमंत्री |
कहां जाता है कि गांधी जी का आदर्श, नेहरू की संवेदना, सरदार पटेल की प्रशासनिक परिपक्वता और नित्शे का उन्माद यदि मिश्रित करके किसी एक व्यक्तित्व का गठन किया जाए तो परिणाम स्वरूप वह चौधरी चरण सिंह का व्यक्तित्व बनकर उभरेगा।
उपरोक्त कथन के विपरीत राजनीतिक के कुछ पंडितों का यह भी कहना है कि चौधरी चरण सिंह में गांधीजी का आदर्श तो अवश्य है, किंतु त्याग नहीं, पंडित जवाहरलाल नेहरु की संवेदना तो है, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोन नहीं, सरदार पटेल की प्रशासनिक परिपक्वता तो है, लेकिन प्रवीणता नहीं है, लचीलापन नहीं है और नित्शे का उन्माद तो है, लेकिन उसकी दार्शनिकता नहीं है।
प्रारंभिक जीवन – Early Life of Chaudhary Charan Singh
बहुमुखी प्रतिभा के धनी चौधरी चरण सिंह का आर्थिक मान्यताओं के संदर्भ में यग्घपी कुछ विवादास्पद व्यक्तित्व रहे हैं, तथापि इस से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह अपनी दिल्ली इच्छा शक्ति के लिए पार्टी और सरकार में सम्मान की दृष्टि से देखे जाते रहे। इन्ही सम्मानित राजनीतिक चौधरी चरण सिंह का जन्म तत्कालीन उत्तर प्रदेश के, मेरठ के अंतर्गत आने वाले गांव नूरपुर में 23 दिसंबर 1902 को हुआ था।
चौधरी चरण सिंह के संपन्न किसान परिवार से होने के कारण उनकी शिक्षा-दीक्षा की ओर विशेष रुप से ध्यान दिया गया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मेरठ के गवर्नमेंट हाई स्कूल में हुई। इसके बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वह आगरा चले गए। चौधरी साहब ने 1923 में M.A किया और 1925 में उन्होंने इतिहास विषय में M.A. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने L.L.B किया और फिर गाजियाबाद कोर्ट से वकालत आरंभ कर दी।
विवाह – Chaudhary Charan Singh Wife
चौधरी चरण सिंह का विवाह 23 वर्ष की अवस्था में सन 1925 में सुयोग्य कन्या गायत्री देवी के साथ संपन्न हुआ। उनका दांपत्य जीवन बड़ा ही खुशहाल रहा। वास्तव में श्रीमती गायत्री देवी एक सुलझी हुई विचारवान और उच्च आदर्शों वाली महिला थी। उनके साथ चौधरी साहब का जीवन हर्ष और प्रसंता से अभिभूत हो उठा। चौधरी साहब की धर्मपत्नी श्रीमती गायत्री देवी ने एक पुत्र और पांच पत्रियो को जन्म दिया।
राजनीति की शुरुआत – Chaudhary Charan Singh Life History
चौधरी चरण सिंह राजनीति की शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से की। 27 वर्ष की आयु में चौधरी साहब ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। सन 1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान ‘नमक कानून’ तोड़ने चरण सिंह को 6 महीने की सजा सुनाई गई। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने स्वयं को देश के स्वतन्त्रता संग्राम में पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया। 1937 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा के लिए चुने गए धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ता गया।
सन 1940 में गांधीजी द्वारा किये गए ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ में भी चरण सिंह को गिरफ्तार किया गया जिसके बाद वे अक्टूबर 1941 में रिहा किये गये। सन 1942 के दौरान सम्पूर्ण देश में असंतोष व्याप्त था और महात्मा गाँधी ने ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन के माध्यम से ‘करो या मरो’ का आह्वान किया था। इस दौरान चरण सिंह ने भूमिगत होकर गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मवाना, सरथना, बुलन्दशहर आदि के गाँवों में घूम-घूमकर गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। पुलिस चरण सिंह के पीछे पड़ी हुई थी और अंततः उन्हें गिरफतार कर लिया गया। ब्रिटिश हुकुमत ने उन्हें डेढ़ वर्ष की सजा सुनाई। जेल में उन्होंने ‘शिष्टाचार’, शीर्षक से एक पुस्तक लिखी।
1946 में वे संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में संसदीय मंत्री बनाए गए। चौधरी साहब ने कृषि, पशु पालन और सूचना आदि मंत्रालय में भी मंत्री पद पर कार्य किया। अपने अनुभवो, दूरदर्शिता और विचारशीलता के बल पर उन्होंने राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि के पथ को प्रस्तुत करते हुए अपना उत्तरदायित्व निभाया।
आज़ादी के बाद – Chaudhary Charan Singh Career
देश की आज़ादी के बाद चरण सिंह 1952, 1962 और 1967 के विधानसभा चुनावों में जीतकर राज्य विधानसभा के लिए चुने गए। पंडित गोविन्द वल्लभ पंत की सरकार में इन्हें ‘पार्लियामेंटरी सेक्रेटरी’ बनाया गया। इस भूमिका में इन्होंने राजस्व, न्याय, सूचना, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य आदि विभागों में अपने दायित्वों का निर्वहन किया। सन 1951 में इन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री का पद दिया गया, जिसके अंतर्गत उन्होंने न्याय एवं सूचना विभाग का दायित्व सम्भाला। सन 1952 में डॉक्टर सम्पूर्णानंद के सरकार में उन्हें राजस्व तथा कृषि विभाग की जिम्मेदारी प्राप्त हुई। चरण सिंह स्वभाव से भी एक कृषक थे अतः वे किसानों के हितों के लिए लगातार प्रयास करते रहे। सन 1960 में जब चंद्रभानु गुप्ता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तब उन्हें कृषि मंत्रालय दिया गया।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद और प्रधानमंत्री पद का सफ़र – Chaudhary Charan Singh Prime Minister
चरण सिंह ने सन 1967 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और एक नए राजनैतिक दल ‘भारतीय क्रांति दल’ (B.K.D) की स्थापना की। राज नारायण और रम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं के सहयोग से उन्होंने उत्तर प्रदेश में सरकार बनाया और सन 1967 और 1970 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
सन 1975 में इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया और चरण सिंह समेत सभी राजनैतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया। आपातकाल के बाद हुए सन 1977 के चुनाव में इंदिरा गाँधी की हार हुई और केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में ‘जनता पार्टी’ की सरकार बनी। चरण सिंह इस सरकार में गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री रहे।
जनता पार्टी में आपसी कलह के कारण मोरारजी देसाई की सरकार गिर गयी जिसके बाद कांग्रेस और सी. पी. आई. के समर्थन से चरण सिंह ने 28 जुलाई 1979 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 20 अगस्त तक का वक़्त दिया पर इंदिरा गाँधी ने 19 अगस्त को ही अपने समर्थन वापस ले लिया इस प्रकार संसद का एक बार भी सामना किए बिना चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया।
चौधरी चरण सिंह राजनीति में स्वच्छ छवि रखने वाले इंसान थे। वह गांधीवादी विचारधारा में यक़ीन रखते थे। पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह को किसानों के अभूतपूर्व विकास के लिए याद किया जाता है।
निधन – Chaudhary Charan Singh Died
चौधरी साहब अपने देश, प्रदेश और समाज के लिए अविस्मरणीय योगदान दिया। लंबी बीमारी के कारण 29 मई, 1987 को उनका निधन हो गया। दिल्ली में यमुना नदी के निकट उनका अंतिम संस्कार 31 मई, 1987 को कर दिया गया। इसी स्थान पर उनका समाधि स्थल बनाया गया। जिसका नामाकरण लोकप्रिय किसान के नेता के नाम पर ‘किसान घाट’ के रूप में किया गया।