Chanakya – आचार्य चाणक्य भारत की रचनात्मक बुद्धि के प्रतीक हैं। वे ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्यात हुए। उनकी नीतियां एक आम आदमी के लिए मार्गदर्शक मानी गई हैं। वे कौटिल्य अथवा ‘चाणक्य’ अथवा ‘विष्णुगुप्त’ के नाम से जाने जाते हैं।
चाणक्य का परिचय – Chanakya Biography in Hindi
पूरा नाम | चाणक्य (Chanakya) |
अन्य नाम | कौटिल्य, विष्णुगुप्त |
जन्म दिनांक | ईसा से 300 वर्ष पूर्व |
जन्म भूमि | पंजाब |
मृत्यु | ईसा पूर्व. 225 |
पत्नी | ‘बृहत्कथाकोश’ के अनुसार चाणक्य की पत्नी का नाम ‘यशोमती’ था। |
शिक्षा | ‘तक्षशिला’ |
धर्म | हिन्दू |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | अर्थशास्त्र |
प्रसिद्धि के कारण | राजनीतिज्ञ और चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री |
चाणक्य प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने भारतीय राजनीति में कूटनीतिक जोड़-तोड़, दांव-पेंचों की शतरंजी चालों का सफलतापूर्वक प्रयोग किया। इतनी सदियाँ गुजरने के बाद आज भी यदि चाणक्य के द्वारा बताए गए सिद्धांत और नीतियाँ प्रासंगिक हैं तो मात्र इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने गहन अध्ययन, चिंतन और जीवानानुभवों से अर्जित अमूल्य ज्ञान को, पूरी तरह नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण के उद्देश्य से अभिव्यक्त किया। चाणक्य भौतिक कूटनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक अर्थशास्त्री भी थे।
आचार्य चाणक्य का प्रारंभिक जीवन – Chanakya Storyin Hindi
आचार्य चाणक्य का जन्म ईसा से 300 वर्ष पूर्व ऋषि चणक के पुत्र के रूप में हुआ। वही उनके आरंभिक काल के गुरु थे। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि चणक केवल उनके गुरु थे। चाणक्य का जन्म एक निर्धन परिवार मे हुआ था। चणक के ही शिष्य होने के नाते उनका नाम चाणक्य पड़ा। हालाँकि उस समय का कोई प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है।
इतिहासकारों ने प्राप्त सूचनाओं के आधार पर अपनी-अपनी धारणाएं बनाई। अपने उग्र और गूढ़ स्वभाव के कारण वे ‘कौटिल्य’ भी कहलाये। उनका एक नाम संभवत: ‘विष्णुगुप्त’ भी था। विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इसकी कथा बराबर मिलती है। बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है।
चाणक्य ने उस समय के महान शिक्षा केंद्र ‘तक्षशिला’ (एक नगर जो रावलपिंडी के पास था) में शिक्षा पाई थी। तब सभी सूचनाएं व विधाएं धर्मग्रंथों के माध्यम से ही प्राप्त होती थीं। अत: धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन शिक्षा प्राप्त का एकमात्र साधन था। चाणक्य ने किशोरावस्था में ही उन ग्रंथों का सारा ज्ञान ग्रहण कर लिया था। अब बारी उच्च शिक्षा की थी, जो उनमें मंथन व शोध की योग्यता पैदा करे जिससे वे अब तक प्राप्त ज्ञान को रचनात्मक रूप दे सकें व उसका विस्तार कर सकें।
14 वर्ष के अध्ययन के बाद 26 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी समाजशास्त्र, राजनीती और अर्थशास्त्र की शिक्षा पूर्ण की और नालंदा में उन्होंने शिक्षण कार्य भी किया, वे पढ़ाई मे मेधावी छात्र थे। गुरु उनकी शिक्षा ग्रहण करने की तीव्र क्षमता से अत्यंत प्रसन्न थे।
राजनीतिक जीवन – Chanakya and Chandragupta Maurya History in Hindi
वह युग राजनीतिक उथल-पुथल का था। चारों ओर अराजकता फैली थी। लोगों का जीवन असुरक्षित था। उन पर शोषण की मार पड़ती ही रहती थी। इतिहास करवट ले रहा था। यूनान के सिकंदर महान विश्व विजय का सपना लेकर एक विशाल सेना के साथ पूर्व की ओर कूच कर चुका था। एशिया महाद्वीप के मध्य-पूर्वी देश उसके आक्रमणों की चपेट में आ गए थे। युद्ध की गरम हवाएं भारत की ओर पश्चिम से आ रही थीं। कई राज्य उजड़ रहे थे।
चाणक्या राजतंत्र के प्रबल समर्थक थे, उन्हें ‘भारत का मेकियावली’ के नाम से भी जाना जाता है। शासक राजे निरंकुश थे, जो धनी वर्ग व जमींदारों के साथ मिलकर जनता पर अत्याचार करते व उनका खून चूसते थे। अधिकतर राजाओं के राज्यों में न कोई विधि-विधान था न प्रशासनिक व्यवस्था। अधिकारियों व उनके कारिंदों की मनमानी ही कानून था। गरीब लोग त्रस्त थे। चाणक्य स्वयं उसी निर्धन-असहाय वर्ग से थे। अत: राजनीतिक व सामाजिक दुर्दशा का विश्लेषण करना उनका स्वाभाव हो गया। चारों ओर घटती घटनाओं से भी वह शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।
ऐसी किंवदन्ती है कि एक बार पाटलिपुत्र के राजा नंद या महानंद के यहाँ कोई यज्ञ था। उसमें ये भी गए और भोजन के समय एक प्रधान आसन पर जा बैठे। महाराज नंद ने इनका काला रंग देख इन्हें आसन पर से उठवा दिया। तभी उन्होंने नंद – वंश के विनाश का बीड़ा उठाया था।
इसके बाद उन्होंने अपनी कूटनीति से चन्द्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी पर बैठा कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली तथा नंद – वंश को मिटाकर मौर्य वंश की स्थापना की। चाणक्य देश की अखण्डता के भी अभिलाषी थे, इसलिये उन्होंने चंद्रगुप्त द्वारा यूनानी आक्रमाकारी सिंकंदर को भारत से बाहर निकलवा दिया और नंद – वंश के अत्याचारों से पीड़ित प्रजा को भी मुक्ति दिलाई।
आचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास के सर्वाधिक कुटनीतिज्ञ माने जाते है। उन्होंने ‘अर्थशास्त्र’ नामक पुस्तक में अपने राजनैतिक सिध्दांतों का प्रतिपादन किया है, जिनका महत्त्व आज भी स्वीकार किया जाता है। कई विश्वविद्यालयों ने कौटिल्य (चाणक्य) के ‘अर्थशास्त्र’ को अपने पाठ्यक्रम में निर्धारित भी किया है। उनके ग्रंथ अर्थशास्त्र में एक राज्य के आदर्श अर्थतंत्र की पूरी व्यवस्था का विस्तृत वर्णन है और उसी में राजशाही के संविधान की रूपरेखा भी है। शायद विश्व में चाणक्य का अर्शशास्त्र पहला विधि-विधान पूर्वक लिखा गया राज्य का संविधान है। उन्होंने संविधान लेखक रूप में स्वयं को कौटिल्य के रूप में प्रस्तुत किया हैं।
इस पुस्तक में तत्कालीन राजनीति, अर्थनीति, इतिहास, आचरण शास्त्र, धर्म आदि पर भली भाँति प्रकाश डालता है। ‘अर्थशास्त्र’ मौर्य काल के समाज का दर्पण है, जिसमें समाज के स्वरूप को सर्वागं देखा जा सकता है। अर्थशास्त्र से धार्मिक जीवन पर भी काफ़ी प्रकाश पड़ता है। उस समय बहुत से देवताओं तथा देवियों की पूजा होती थी। न केवल बड़े देवता-देवी अपितु यक्ष, गन्धर्व, पर्वत, नदी, वृक्ष, अग्नि, पक्षी, सर्प, गाय आदि की भी पूजा होती थी। महामारी, पशुरोग, भूत, अग्नि, बाढ़, सूखा, अकाल आदि से बचने के लिए भी बहुत से धार्मिक कृत्य किये जाते थे। अनेक उत्सव, जादू टोने आदि का भी प्रचार था।
चाणक्य ने अर्थशास्त्र में वार्ता (अर्थशास्त्र) तथा दण्डनीति (राज्यशासन) के साथ आन्वीक्षिकी (तर्कशास्त्र) तथा त्रयी (वैदिक ग्रन्थों) पर भी काफ़ी बल दिया है। अर्थशास्त्र के अनुसार यह राज्य का धर्म है कि वह देखे कि प्रजा वर्णाश्रम धर्म का ‘उचित पालन करती है कि नहीं।[
चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।
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