Bipin Chandra Pal / बिपिनचंद्र पाल उन महान स्वतन्त्रता सेनानी में एक थे, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की बुनियाद तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाई। वे मशहूर लाल-बाल-पाल (लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक एवं विपिनचन्द्र पाल) तिकड़ी का हिस्सा थे। इस तिकड़ी ने अपने तीखे प्रहार से अंग्रेजी हुकुमत की चूलें हिला दी थी। विपिनचंद्र पाल राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ एक शिक्षक, पत्रकार, लेखक व बेहतरीन वक्ता भी थे। उन्हें भारत में क्रांतिकारी विचारों का जनक भी माना जाता है। उन्होंने अपने पुरे जीवन आज़ादी के लिये समर्पित किया।
बिपिनचंद्र पाल का परिचय – Bipin Chandra Pal Biography in Hindi
बिपिन चन्द्र पाल में अपने क्रन्तिकारी विचारो से अंग्रेजो को परेशान कर रखा था। राष्ट्रवाद के मसीहा, महान् क्रान्तिकारी विपिनचन्द्र पाल उग्रवादी राष्ट्रीयता के प्रबल समर्थक थे। लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक एवं विपिनचन्द्र पाल (लाल-बाल-पाल) की इस तिकड़ी ने 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आंदोलन किया जिसे बड़े स्तर पर जनता का समर्थन मिला। ‘गरम’ विचारों के लिए प्रसिद्ध इन नेताओं ने अपनी बात तत्कालीन विदेशी शासक तक पहुँचाने के लिए कई ऐसे तरीके अपनाए जो एकदम नए थे। इन तरीकों में ब्रिटेन में तैयार उत्पादों का बहिष्कार, मैनचेस्टर की मिलों में बने कपड़ों से परहेज, औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल आदि शामिल हैं। इस हड़ताल से विदेशी हुकूमत की नींद उड़ गयी।
विदेशी उत्पादों के कारण देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हो रही थी और यहाँ के लोगों का काम भी छिन रहा था। उन्होंने अपने आंदोलन में इस विचार को भी सामने रखा। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गरम धड़े के अभ्युदय को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इससे आंदोलन को एक नई दिशा मिली और इससे लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान जागरुकता पैदा करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। उनका विश्वास था कि केवल प्रेयर पीटिशन से स्वराज नहीं मिलने वाला है बल्कि स्वराज के लिए विदेशी हुकुमत पर करारा प्रहार करना पड़ेगा। इसी कारण उन्हें स्वाधीनता आन्दोलन में ‘क्रांतिकारी विचारों का पिता कहा जाता है’।
शुरूआती जीवन – Early Life Bipin Chandra Pal
विपिनचंद्र पाल का जन्म 7 नवंबर 1858 को अविभाजित भारत के हबीबगंज जिले में (अब बांग्लादेश में) पोइल नामक गाँव में एक अमीर हिंदु वैष्णव परिवार के घर में हुआ था। उनके पिता रामचंद्र पाल एक पारसी विद्वान और छोटे ज़मींदार थे। विपिनचंद्र पाल ‘चर्च मिशन सोसाइटी कॉलेज’ (अब सेंट पौल्स कैथेड्रल मिशन कॉलेज) में अध्ययन किया और बाद में पढ़ाया भी। यह कॉलेज कलकत्ता यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध था।
निजी जीवन में भी अपने विचारों पर अमल करने वाले और स्थापित दकियानूसी मान्यताओं के खिलाफ थे। उन्होंने एक विधवा से विवाह किया था जो उस समय दुर्लभ बात थी। इसके लिए उन्हें अपने परिवार से नाता तोड़ना पड़ा। लेकिन धुन के पक्के पाल ने दबावों के बावजूद कोई समझौता नहीं किया। किसी के विचारों से असहमत होने पर वह उसे व्यक्त करने में पीछे नहीं रहते। यहाँ तक कि सहमत नहीं होने पर उन्होंने महात्मा गाँधी के कुछ विचारों का भी विरोध किया था। विपिन चन्द्र पाल बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह शिक्षक और पत्रकार होने के साथ-साथ एक कुशल वक्ता और लेखक भी थे।उन्होंने कटक, म्हैसुर और सिल्हेट इस जगह उन्होंने शिक्षक की नोकरी की थी। भारतीय समाज की प्रगती शिक्षा की वजह से होंगी, ऐसा उनका मानना था।
स्वतंत्रता आन्दोलन में भूमिका – Indian nationalist
1880 मे बिपिनचंद्रने सिल्हेट इस जगह ‘परिदर्शक’ इस नाम का बंगाली साप्ताहिक प्रकाशीत किया, वैसे ही कोलकता आने के बाद उनको वहा के ‘बंगाल पब्लिक ओपिनियन’ के संपादक मंडल मे लिया गया। सन 1886 में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। सन 1887 में कांग्रेस के मद्रास सत्र में उन्होंने अंग्रेजी सरकार द्वारा लागू किये गए ‘शस्त्र अधिनियम’ तत्काल हटाने की मांग की क्योंकि यह अधिनियम भेदभावपूर्ण था। 1887 में बिपिनचंद्र ने राष्ट्रीय कॉग्रेस के मद्रास अधिवेशन मे पहली बार हिस्सा लिया। ‘शस्त्रबंदी कानुन के खिलाफ’ उस जगह का भाषण उत्तेजनापूर्ण और प्रेरक रहा।
1887 – 88 में उन्होंने लाहोर के ‘ट्रिब्युन’ का संपादन किया। अंग्रेजी हुकुमत में उनको बिलकुल भी विश्वास नहीं था और उनका मानना था कि विनती और असहयोग जैसे हथियारों से विदेशी ताकत को पराजित नहीं किया जा सकता। इसी कारण गाँधी जी के साथ उनका वैचारिक मतभेद था। अपने जीवन के अंतिम कुछ सालों में वे कांग्रेस से अलग हो गए।
1905 मे गव्हर्नर जनरल लॉर्ड कर्झन ने बंगाल का विभाजन किया। लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय जहाल नेताओ के साथ उन्होंने इस विभाजन का विरोध किया। देश मे जागृती कि। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पुरे देश मे आंदोलन शुरु हुये। उस मे से भारतीय राजकारण में लाल – बाल – पाल इन त्रिमूर्तीओं का उदय हुवा।
1907 मे अक्तुबर महीने मे अरविंद घोष के खिलाफ जो राजद्रोह का मामला दर्ज चलाया था। उसमे न्यायालय ने बिपिनचंद्र को गवाही के बुलाने पर उन्होंने स्वाभिमान पूर्वक मना कर दिया। तब न्यायालय का अवमान करने के आरोप मे उन्हे छे महीनों की सजा दी गयी और इसी साल ‘वंदे मातरम्’ के संपादन का कार्य उन्होंने किया।
‘वंदे मातरम्’ पत्रिका के संस्थापक रहे पाल एक बड़े समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने परिवार के विरोध के बावज़ूद एक विधवा से शादी की। बाल गंगाधर तिलक की गिरफ़्तारी और 1907 में ब्रितानिया हुकूमत द्वारा चलाए गए दमन के समय पाल इंग्लैंण्ड गए। वह वहाँ क्रान्तिकारी विधार धारा वाले ‘इंडिया हाउस’ से जुड़ गए और ‘स्वराज पत्रिका’ की शुरुआत की। मदन लाल ढींगरा के द्वारा 1909 में कर्ज़न वाइली की हत्या कर दिये जाने के कारण उनकी इस पत्रिका का प्रकाशन बंद हो गया और लंदन में उन्हें काफ़ी मानसिक तनाव से गुज़रना पड़ा। इस घटना के बाद वह उग्र विचारधारा से अलग हो गए और स्वतंत्र देशों के संघ की परिकल्पना पेश की।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1958 में पाल की जन्मशती के मौक़े पर अपने सम्बोधन में उन्हें एक ऐसा महान व्यक्तित्व क़रार दिया, जिसने धार्मिक और राजनीतिक मोर्चों पर उच्चस्तरीय भूमिका निभाई।
निधन – Bipin Chandra Pal Death
20 मई 1932 को इस महान क्रन्तिकारी का कोलकाता में निधन हो गया। वे लगभग 1922 के आस-पास राजनीति से सन्यास ले लिए थे और अपनी मृत्यु तक अलग ही रहे।
रचनाएं – Bipin Chandra Pal
विपिनचंद्र पाल क्रांतिकारी के साथ-साथ एक कुशल लेखक और संपादक भी थे। उन्होंने कई रचनाएँ भी की और कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
- इंडियन नेस्नलिज्म
- नैस्नल्टी एंड एम्पायर
- स्वराज एंड द प्रेजेंट सिचुएशन
- द बेसिस ऑफ़ रिफार्म
- द सोल ऑफ़ इंडिया
- द न्यू स्पिरिट
- स्टडीज इन हिन्दुइस्म
- क्वीन विक्टोरिया – बायोग्राफी
पत्रिकाओं का सम्पादन
- परिदर्शक (1880)
- बंगाल पब्लिक ओपिनियन ( 1882)
- लाहौर ट्रिब्यून (1887)
- द न्यू इंडिया (1892)
- द इंडिपेंडेंट, इंडिया (1901)
- बन्देमातरम (1906, 1907)
- स्वराज (1908 -1911)
- द हिन्दू रिव्यु (1913)
- द डैमोक्रैट (1919, 1920)
- बंगाली (1924, 1925)
और अधिक लेख –
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