Rani Padmavati Mahal / ‘रानी पद्मिनी का महल’ राजस्थान के पर्यटन स्थलों में से एक है, जो चित्तौड़गढ़ में स्थित है। इतिहास प्रसिद्ध राणा रत्न सिंह की ख़ूबसूरत पत्नी रानी पद्मावती के नाम पर ही इस महल का नाम रखा गया था। यह महल ‘पद्मिनी तालाब’ की उत्तरी परिधि पर स्थित है। यह एक छोटा महल है, जो पानी के बीचों-बीच में बना हुआ है।
रानी पद्मिनी महल की जानकारी – Rani Padmavati Mahal History in Hindi
रानी पद्मिनी का महल राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है। यह महल तालाब के बीच में बना है जिसे जलमहल कहते हैं। पद्मावती महल के एक कमरे में आज भी बड़े-बड़े शीशे लगे हुए हैं, जिसमें पानी के बीच वाले महल में खड़े व्यक्ति का प्रतिबिम्ब साफ दिखाई देता है। कहा जाता है कि, अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मावती का प्रतिबिम्ब इसी स्थान पर खड़े होकर देखा था। रानी पद्मावती की सुन्दरता पर मोहित होकर ही अलाउद्दीन ने क़िले पर आक्रमण किया था।
मेवाड़ के भाटों में प्रचलित कथा के अनुसार – चित्तौड़ के रावल रतनसिंह की रानी पद्मावती बड़ी रूपवती थी। उसके सौन्दर्य की प्रशंसा सुन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने उसे प्राप्त करने के लिए चित्तौड़ पर चढ़ाई की। कहा जाता है कि शक्ति से पद्मावती को प्राप्त करने में असमर्थ उसने रावल को यह संदेश भिजवाया कि आइने में उसे पद्मावती का मुख ही दिखला दिया जाय तो वह वापस दिल्ली लौटने को तैयार है।
अतः शांति रखने के लिए रावल रतनसिंह ने दर्पण में पद्मावती का मुह दिखाना स्वीकार कर लिया। सुल्तान अपने कुछ सैनिकों सहित दुर्ग में आया और पद्मावती के मुख का प्रतिबिम्ब देखकर लौट गया। राजपूत उसको पहुंचाने के लिए दुर्ग के नीचे तक गये जहां सुल्तान के संकेत पर रावल रतनसिंह को बंदी बना लिया गया और कह कर भेजा कि रावल को तभी छोड़ा जाएगा जब पद्मावती सुल्तान के साथ चलने को राजी हो।
इसके बाद हुए युद्ध में सुल्तान को निराश होकर दिल्ली लौटना पड़ा। अलाउद्दीन खिलजी लौट तो गया, किन्तु उसे चैन न पड़ा। वह फिर अपनी सेना को संगठित कर चित्तौड़ पर चढ़ आया। इस बार विजय खिलजी के हाथ लगी तथा पद्मावती ने जौहर किया।
इसके आस – पास के क्षेत्र में कई तालाब व कुण्ड बने हुए हैं। सबसे बड़ा चत्रंग तालाब पश्चिम नैऋत्य में है। रत्नेश्वर तालाब, घी-तेल की बावड़ी, गौमुख कुण्ड, हाथी कुण्ड, कातन बावड़ी, जयमल फत्ता का तालाब, सूर्य कुण्ड, जल महल, भीमताल कुण्ड, अन्नपूर्णा बाणमाता के कुण्ड इत्यादि अन्य छोटे-बड़े सभी कुण्ड व तालाब पहाड़ी के पश्चिम वायव्य से लेकर पश्चिम नैऋत्य के बीच बने हैं।
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