Babur / बाबर एक मुग़ल शासक था जिसने मुग़ल साम्राज्य की नीव रखी। बाबर का पूरा नाम ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर था। तैमूर लंग और मंगोल शासक चंगेज़ ख़ान जैसे बहादुर बाबर के पूर्वज थे। हालाँकि बाबर अपने इन वंशजों से कुछ भिन्न थे। इनके पूर्वज भारत आकर लूटपाट करके चले गए, वही बाबर हिन्दुस्तान के ही होकर रह गये। वे कभी भी अपने-आपको विदेशी नहीं माना। अपने पिता की अचानक म्रत्यु के बाद बाबर ने मात्र 12 साल की उम्र में पिता के कमान संभाला। 22 वर्ष की आयु में क़ाबुल पर अधिकार कर अफ़ग़ानिस्तान में राज्य क़ायम किया और क़ाबुल का शासक रहा। इसके बाद 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में दिल्ली सल्तनत के अंतिम वंश (लोदी वंश) के सुल्तान इब्राहीम लोदी की पराजय के साथ ही बाबर ने भारत में मुग़ल वंश की स्थापना की।
बाबर का संक्षिप्त परिचय – Mughal Empire Babur Information in Hindi
नाम | जहिरुदीन मुहम्मद बाबर (Jahiruddin Muhammad Babur) |
पिता का नाम | उमर शेख मिर्जा |
माता का नाम | कुतलुग निगार खानम |
जन्म दिनांक | 23 फ़रवरी 1483 |
जन्म स्थान | फरगना घाटी, तुर्किस्तान |
पत्नी | आयशा सुल्तान, जैनब सुल्तान, मासूमा सुल्तान, महम सुल्तान, गुलरुख बेगम, दिलदार, मुबारका, बेगा बेगम |
बेटे-बेटी | हुमायूँ, कामरान मिर्जा, अस्करी मिर्जा, हिंदल, अहमद, शाहरुख़, गुलजार बेगम, गुलरंग,गुलबदन, गुलबर्ग |
मृत्यु | 26 दिसम्बर, 1530 आगरा, भारत |
बाबर का पिता ‘उमर शेख़ मिर्ज़ा’, ‘फ़रग़ना’ का शासक था, जिसकी मृत्यु के बाद बाबर राज्य का वास्तविक अधिकारी बना। पारिवारिक कठिनाईयों के कारण वह मध्य एशिया के अपने पैतृक राज्य पर शासन नहीं कर सका। मंगोल जाति (जिसे फ़ारसी में मुगल कहते थे) का होने के बावजूद उसकी जनता और अनुचर तुर्क तथा फ़ारसी लोग थे। उसकी सेना में तुर्क, फारसी, पश्तो के अलावा बर्लास तथा मध्य एशियाई कबीले के लोग भी थे। कहा जाता है कि बाबर बहुत ही तगड़ा और शक्तिशाली था। ऐसा भी कहा जाता है कि सिर्फ़ व्यायाम के लिए वो दो लोगों को अपने दोनो कंधों पर लादकर उन्नयन ढाल पर दौड़ लेता था। लोककथाओं के अनुसार बाबर अपने राह में आने वाली सभी नदियों को तैर कर पार करता था। उसने गंगा को दो बार तैर कर पार किया।
जन्म एवं राज्याभिषेक – Babar Biography
ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर (Babar) का जन्म 14 फ़रवरी, 1483 ई. को फ़रग़ना, तुर्किस्तान में हुआ। बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का पाँचवा एवं माता की ओर से चंगेज़ ख़ाँ (मंगोल नेता) का चौदहवाँ वंशज था। उसका परिवार तुर्की जाति के ‘चग़ताई वंश’ के अन्तर्गत आता था। बाबर अपने पिता ‘उमर शेख़ मिर्ज़ा’ की मृत्यु के बाद 11 वर्ष की आयु में शासक बना। उसने अपना राज्याभिषेक अपनी दादी ‘ऐसान दौलत बेगम’ के सहयोग से करवाया। बाबर ने अपने फ़रग़ना के शासन काल में 1501 ई. में समरकन्द पर अधिकार किया, जो मात्र आठ महीने तक ही उसके क़ब्ज़े में रहा। हालाँकि इस मुश्किल समय में भी वे उनके कुछ वफादारों ने उनका साथ नहीं छोड़ा। 1504 ई. में क़ाबुल विजय के उपरांत बाबर ने अपने पूर्वजों द्वारा धारण की गई उपाधि ‘मिर्ज़ा’ का त्याग कर नई उपाधि ‘बादशाह’ धारण की। बाबर की 11 बेगम थी, जिससे उसको 20 बच्चे हुए थे। बाबर का पहला बेटा हुमायूँ था, जिसे उसने अपना उत्तराधिकारी बनाया था।
भारत पर आक्रमण –
मध्य एशिया में जब बाबर अपना साम्राज्य नहीं फैला पाया, तब उसकी नजर भारत पर पड़ी। हालाँकि भारत पर आक्रमण के लिए भारत के कई राजाओ ने बाबर निमंत्रण भेजा था। बाबर का भारत के विरुद्व किया गया प्रथम अभियान 1519 ई. में ‘युसूफजाई’ जाति के विरुद्ध था। इस अभियान में बाबर ने ‘बाजौर’ और ‘भेरा’ को अपने अधिकार में किया। यह बाबर का प्रथम भारतीय अभियान था, जिसमें उसने तोपखाने का प्रयोग किया था। 1519 ई. के अपने दूसरे अभियान में बाबर ने ‘बाजौर’ और ‘भेरा’ को पुनः जीता साथ ही ‘स्यालकोट’ एवं ‘सैय्यदपुर’ को भी अपने अधिकार में कर लिया।
1524 ई. के चौथे अभियान के अन्तर्गत इब्राहीम लोदी एवं दौलत ख़ाँ लोदी के मध्य मतभेद हो जाने के कारण दौलत ख़ाँ, जो उस समय लाहौर का गवर्नर था, ने पुत्र दिलावर ख़ाँ एवं आलम ख़ाँ (बहलोल ख़ाँ का पुत्र) को बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित करने के लिए भेजा। सम्भवतः इसी समय राणा सांगा ने भी बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए निमत्रंण भेजा था।
बाबर को भारत आमंत्रण के कारण –
- दौलत ख़ाँ पंजाब में अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाये रखना चाहता था।
- आलम ख़ाँ किसी भी तरह से दिल्ली के सिंहासन पर अपना अधिकार करना चाहता था।
- राणा सांगा सम्भवतः बाबर के द्वारा अफ़ग़ानों की शक्ति को नष्ट करवा कर स्वयं दिल्ली के सिंहासन को प्राप्त करना चाहता था।
अपने चौथे अभियान 1524 ई. में बाबर ने लाहौर एवं दीपालपुर पर अधिकार कर लिया। नवम्बर 1526 ई. में बाबर द्वारा किये गये पाँचवे अभियान में, जिसमें बदख्शाँ की सैनिक टुकड़ी के साथ बाबर का पुत्र हुमायूँ भी आ गया था, उसने सर्वप्रथम दौलत ख़ाँ को समर्पण के लिए विवश किया और बाद में उसे बन्दी बना लिया गया। शीघ्र ही आलम ख़ाँ ने भी आत्समर्पण कर दिया। इस तरह पूरा पंजाब बाबर के क़ब्ज़े में आ गया।
पानीपत का प्रथम युद्ध –
इस समय इब्राहीम लोदी दिल्ली का सुल्तान था और दौलत ख़ाँ लोदी पंजाब का राज्यपाल। दौलत ख़ाँ लोदी, इब्राहीम लोदी से नाराज़ था। उसने दिल्ली सल्तनत से विद्रोह कर बाबर को अपनी मदद के लिये क़ाबुल से बुलाया। बाबर ख़ुद भी भारत पर हमला करना चाह रहा था। वह दौलत ख़ाँ लोदी के निमन्त्रण पर भारत पर आक्रमण करने की तैयारी करने लगा। उस समय तुर्क-अफ़ग़ान भारत पर आक्रमण लूट से मालामाल होने के लिये करते रहते थे। बाबर एक बहुत बड़ी सेना लेकर पंजाब की ओर चल दिया।
यह युद्ध दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी (अफ़ग़ान) एवं बाबर के मध्य लड़ा गया। 12 अप्रैल, 1526 ई. को दोनों ओर की सेनाएँ पानीपत के मैदान में आमने-सामने आ गईं और युद्ध का आरम्भ 21 अप्रैल को हुआ। ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध का निर्णय दोपहर तक ही हो गया। युद्ध में इब्राहीम लोदी बुरी तरह से परास्त हुआ और मार दिया गया।
इस युद्ध में लूटे गए धन को बाबर ने अपने सैनिक अधिकारियों, नौकरों एवं सगे सम्बन्धियों में बाँट दिया। सम्भवत: इस बँटवारे में हुमायूँ को वह कोहिनूर हीरा प्राप्त हुआ, जिसे ग्वालियर नरेश ‘राजा विक्रमजीत’ से छीना गया था। पानीपत के युद्ध ने भारत के भाग्य का तो नहीं, किन्तु लोदी वंश के भाग्य का निर्णय अवश्य कर दिया। अफ़ग़ानों की शक्ति समाप्त नहीं हुई, लेकिन दुर्बल अवश्य हो गई। युद्ध के पश्चात् दिल्ली तथा आगरा पर ही नहीं, बल्कि धीरे-धीरे लोदी साम्राज्य के समस्त भागों पर भी बाबर ने अधिकार कर लिया।
खानवा का युद्ध –
उत्तरी भारत में दिल्ली के सुल्तान के बाद सबसे अधिक शक्तिशाली शासक चित्तौड़ का राजपूत नरेश राणा साँगा (संग्राम सिंह) था। पानीपत की जीत के बाद भी बाबर की स्थिति भारत में मजबूत नहीं था। राना संग्राम ने ही बाबर को भारत का न्योता दिया था, उन्हें लगा था बाबर भारत में लूटपाट के बाद वापस काबुल चला जायेगा। लेकिन बाबर का भारत में रहने के फैसले ने राना संग्राम को मुसीबत में डाल दिया। अपने आप को और मजबूत बनाने के लिए बाबर ने मेवार के राना संग्राम को चुनोती दी। राना संग्राम सिंह के साथ कुछ अफगानी शासक भी जुड़ गए थे।
17 मार्च 1527 में खनवा में दो विशाल सेना एक दुसरे से भीढ़ गई। राजपूतों ने हमेशा की तरह अपनी लड़ाई लड़ी, लेकिन बाबर की सेना के पास नए उपकरण थे, जिसका सामना राजपूत नहीं कर पाए और वे बहुत बुरी तरह से हार गए। राजपूत की पूरी सेना को बाबर की सेना ने मार डाला। राना संग्राम अपने आप को हारता देख भाग गए और खुदखुशी कर ली। राना संग्राम के मरने के साथ राजपूतों को अपना भविष्य खतरे में दिखाई देने लगा। इस जीत के साथ लोगों ने उसे ‘ग़ाज़ी’ की उपाधि दी। राजपूतों को हराने के बाद भी बाबर को अफगानी शासक जो बिहार व बंगाल में राज्य कर रहे थे, उनके विरोध का सामना करना पड़ा। मई 1529 में बाबर ने घागरा में सभी अफगानी शासकों को हरा दिया।
घाघरा युद्ध के बाद बाबर ने बंगाल के शासक नुसरत शाह से संधि कर उसके साम्राज्य की संप्रभुता को स्वीकार किया। नुसरत शाह ने बाबर को आश्वासन दिया कि वह बाबर के शत्रुओं को अपने साम्राज्य में शरण नहीं देगा।
मुग़ल साम्राज्य की स्थापना –
बाबर अब तक एक मजबूत शासक बन गया था, जिसे कोई भी हरा नहीं सकता था। इसके पास एक विशाल सेना तैयार हो गई थी, कोई भी राजा बाबर को चुनौती देने से डरता था। इब्राहीम लोदी और राणा साँगा की हार के बाद बाबर ने भारत में मुग़ल राज्य की स्थापना की और आगरा को अपनी राजधानी बनाया। उससे पहले सुल्तानों की राजधानी दिल्ली थी; किंतु बाबर ने उसे राजधानी नहीं बनाया, क्योंकि वहाँ पठान थे, जो तुर्कों की शासन−सत्ता पंसद नहीं करते थे। प्रशासन और रक्षा दोनों नज़रियों से बाबर को दिल्ली के मुक़ाबले आगरा सही लगा।
सम्भवतः बाबर कुषाणों के बाद ऐसा पहला शासक था, जिसने काबुल एवं कंधार को अपने पूर्ण नियंत्रण में रखा। उसने भारत में अफ़ग़ान एवं राजपूत शक्ति को समाप्त कर ‘मुग़ल साम्राज्य’ की स्थापना की, जो लगभग पौने दो सौ वर्षों तक जीवित रहा। इसी वंश में अकबर जैसे बादशाह हुवे। बाबर ने भारत पर आक्रमण कर एक नई युद्ध नीति का प्रचलन किया।
मृत्यु –
बाबर केवल 4 वर्ष तक भारत पर राज्य कर सका। लगभग 48 वर्ष की आयु में 26 दिसम्बर, 1530 ई. को बाबर की आगरा में मृत्यु हो गई। प्रारम्भ में उसके शव को आगरा के ‘आराम बाग़’ में रखा गया, पर अंतिम रूप से बाबर की अंतिम इच्छानुसार उसका शव क़ाबुल ले जाकर दफ़नाया गया, जहाँ उसका मक़बरा बना हुआ है। उसके बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र हुमायूँ मुग़ल बादशाह बना। हालाँकि मरने से पहले बाबर खुद की किताब भी लिखी थी जिसमें उसके बारे में हर छोटी बड़ी बात थी।
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मेरा नाम रोहित कुमार है और मैन इस पोस्ट को ऊपर से नीचे तक पूरा पढ़ा और एक वाक्य भी इसमें पढ़ा जिसने मेरा दिमाग घुमा दिया। कृपया करके मुझे यह बताइये की क्या कोई देश का प्रधानमंत्री या देश का राजा किसी दूसरे देश को अपने ऊपर आक्रमण करने का न्योता देता है क्या ? ऊपर लिखा है कि राणा सांगा ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया? कृपया जवाब दे?
हेलो सर, आप इसे दोबरा पढ़े, इसमें बताया हुवा हैं की राणा सांगा ने आखिर क्यों बाबर को अपने देश में आक्रमण का न्योता दिया था. हालाँकि आप भी जानते होंगे सर जी की शासन की लालच में लोग क्या-क्या नहीं करते हैं. और बाद में खुद पछताते हैं. धन्यवाद,
जानकारी के लिए धन्यवाद।