Jijabai Shahaji Bhosale in Hindi/ जीजाबाई शाहजी भोसले, राजमाता जीजाबाई और साधारणतः जीजाई के नाम से जानी जाती है। जो की शाहजी भोंसले की पत्नी तथा मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी की माता थीं। उन्होंने जीवन की कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया और अपने पुत्र को वो संस्कार दिए, जो आगे चलकर हिंदू समाज का संरक्षक एवं गौरव बना।
जीजाबाई भोंसले का परिचय – Jijabai ka Jeevan Parichay
नाम | जीजाबाई भोंसले (Jijabai Shahaji Bhosale) |
जन्म दिनांक | 12 जनवरी, 1598 ई. |
जन्म स्थान | बुलढ़ाणा ज़िला, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 17 जून, 1674 ई. |
प्रसिद्धि | शिवाजी की संरक्षिका |
पिता का नाम | लखुजी जाधवराव |
माता का नाम | म्हालसा बाई |
पति का नाम | शाहजी भोंसले |
योगदान | मराठा साम्राज्य स्थापित में योगदान |
राजमाता जीजाबाई की प्रारंभिक जीवनी – Jijabai Biography in Hindi
जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी 1598 में महाराष्ट्र के एक गांव सिंधखेड़ में हुआ था। उनके पिता शाही दरबारी और प्रमुख मराठा सरदार थे, जिनका नाम लखुजी जाधवराव था, जबकि उनकी माता का नाम म्हालसा बाई था। इनके बाल्यकाल का नाम ‘जीजाऊ’ था। उनके पिता अहमदनगर में निजामशाही की सेवा करते थे और उन्हें अपने ऊंचे रुतबे और पद पर गर्व था।
उस समय की परम्पराओं के अनुसार अल्पायु में ही जीजाबाई की शाहजी राजे भोंसले से विवाह हो गया, जो बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह के दरबार में सैन्य दल के सेनापति थे। इनकी जोड़ी बचपन में ही तय कर दी गयी थी। यह शाहजी राजे की पहली पत्नी थीं। जीजाबाई ने आठ संतानों को जन्म दिया, जिनमें से छ: पुत्रियाँ और दो पुत्र थे। इन्हीं संतानों में से एक शिवाजी महाराज भी थे।
जीजाबाई का इतिहास – Jijabai history in hindi
शाहजी भोसले के पिताजी का नाम मालोजी शिलेदार था, जो बाद में तरक्की पाते हुए ‘सरदार मालोजी राव भोसले’ बन गए। वैसे तो दंपती का वैवाहिक जीवन बेहद सुखद था। लेकिन उनके परिजनों की आपसी टकराहट ने तनाव को जन्म दिया। शाहजी राजे और उनके ससुर जाधव के आपसी रिश्ते बिगड़ गए। हालात इतने बिगड़ चुके थे कि जीजाबाई पूरी तरह टूट गई थी। उन्हें अपने पति और पिता में से एक का पक्ष लेना था। उन्होंने पति का साथ दिया।
उनके पिता ने निजामशाही के खिलाफ दिल्ली के मुगलों से दोस्ती कर ली थी। वे शाहजी से बदला लेना चाहते थे। जीजाबाई अपने पति के साथ शिवनेरी की किले में ही रहीं। उनके प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। हालांकि, उन्हें इस बात का दुख था कि उनके पिता और पति दोनों ही किसी और शासक के अधीन काम करते हैं। उनकी इच्छा थी कि मराठों का अपना साम्राज्य स्थापित हो।
वह हमेशा भगवान से प्रार्थना करती थी कि उन्हें एक ऐसा बेटा मिले जो मराठा साम्राज्य की नींव रख सके। उनकी प्रार्थनाओं का जवाब शिवाजी के तौर पर मिला, जिन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना की।
जीजाबाई को एक प्रभावी और प्रतिबद्ध महिला के तौर पर जाना जाता है, जिसके लिए आत्मसम्मान और उनके मूल्य सर्वोपरि हैं। अपनी दूरदर्शिता के लिए प्रसिद्ध जीजाबाई खुद एक योद्धा और प्रशासक थी। उन्होंने बढ़ते शिवाजी में अपने गुणों का संचार किया। शिवाजी में कर्तव्य भावना, साहस और मुश्किल परिस्थितियों का सामना साहस के साथ करने के लिए मूल्यों का संचार किया। उनकी देख-रेख और मार्गदर्शन में शिवाजी ने मानवीय रिश्तों की अहमियत समझी, महिलाओं का मान-सम्मान, धार्मिक सहिष्णुता, और न्याय के साथ ही अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम और महाराष्ट्र की आजादी की इच्छा बलवती हुई।
शिवाजी भी अपनी सभी सफलताओं का श्रेय अपनी मां को देते थे, जो उनके लिए प्रेरणास्रोत थी। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपने बेटे को मराठा साम्राज्य का महानतम शासक बनाने पर लगा दी।
जीजाबाई रानी बनने के बाद पूना चली गई, वहां अपने पति की जागीर की देखरेख करने लगी। शिवाजी उनके साथ ही थे। 1666 में हालांकि, शिवाजी आगरा के लिए रवाना हुए। जीजाबाई ने राज्य का कामकाज देखने की जिम्मेदारी ली थी। उसके बाद जीजाबाई की जिंदगी में कई घटनाएं हुईं, कुछ अच्छी, कुछ बुरी और कुछ दर्दनाक। उन्होंने सबकुछ चुपचाप सहा। अपने पति के निधन ने उन्हें शोकमग्न कर दिया था। उनके बड़े बेटे संभाजी की अफजल खान ने हत्या कर दी थी, जिसका बदला शिवाजी ने जीजाबाई के आशीर्वाद से लिया।
हालांकि, शिवाजी की कई यादगार जीत रहीं, जिनमें तोरणगढ़ किले पर जीत, मुगलों की नजरबंदी से निकलकर भाग निकलना, तानाजी, बाजी प्रभु और सूर्याजी जैसे योद्धाओं के साथ मिलकर शिवाजी कई मोर्चों पर जीत हासिल करते गए। यह सभी जीजाबाई से प्रेरित था। वह शिवाजी और उनके साथियों की सफलता देखकर गर्वित होती थी। जीजाबाई का सपना उस समय पूरा हुआ, जब उनकी आंखों के सामने उनके बेटे का राज्याभिषेक समारोह संपन्न हुआ। 1674 में शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ और वह मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले महाप्रतापी राजा बन गए।
जीजाबाई एक चतुर और बुद्धिमान महिला थी. जीजाबाई शिवाजी को प्रेरणादायक कहानिया सुनाकर प्रेरित करती थी। गीता और रामायण आदि कथाये सुनाकर उन्होंने शिवाजी के बाल-ह्रदय पर स्वाधीनता की लौ प्रज्वलित कर दी थी। उनके दिए हुए इन संस्कारों के कारण आगे चलकर वह बालक हिन्दू समाज का संरक्षक एवं गौरव बना। दक्षिण भारत में हिन्दू स्वराज्य की स्थापना की और स्वतन्त्र शासक की तरह अपने नाम का सिक्का चलवाया तथा ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ के नाम से ख्याति प्राप्त की।
जीजाबाई की मृत्यु
मराठा साम्राज्य को स्थापित करने में तथा उसकी नींव को मजबूती प्रदान करने में विशेष योगदान देने वाली जीजाबाई का निधन 17 जून, 1674 ई. को हुआ। उनके बाद वीर शिवाजी ने मराठा साम्राज्य की पताका को विस्तार दिया। जीजाबाई का निधन शिवाजी महाराज के राज्यअभिषेक के 12 दिन बाद हुआ। उन्होंने अपने हिंदुत्व के सपने को साकार करने के बाद अपने प्राण त्यागे थे। आज जीजाबाई और शिवजी के जीवन पर कई फिल्मे बन चुकी हैं। इन फिल्मो में उनकी गौरव गाथा दिखाया गया हैं।
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