टिपू सुल्तान का इतिहास, जानकारी | Tipu Sultan History in Hindi

Tipu Sultan in Hindi/ टीपू सुल्तान मैसूर के महान शासक थे जो की मैसूर के शेर के नाम से भी जाने जाते है। योग्य शासक के अलावा टीपू एक विद्वान, कुशल़ य़ोग़य सैनापति और कवि भी थे। वे ऐसे शासक थे जिन्होंने अंतिम साँस तक अंग्रेजो से मुकाबला किया। टीपू सुल्तान को दुनिया का पहला मिसाइल मैन माना जाता है। लंदन के मशहूर साइंस म्यूजियम में टीपू सुल्तान के रॉकेट रखे हुए हैं। इन रॉकेटों को 18वीं सदी के अंत में अंग्रेज अपने साथ लेते गए थे।

टिपू सुल्तान का इतिहास, जानकारी | Tipu Sultan History in Hindiटिपू सुल्तान का जीवन परिचय – Tipu Sultan Biography in Hindi

पूरा नामटीपू सुल्तान (Tipu Sultan)
जन्म दिनांक20 नवम्बर, 1750 ई.
जन्म भूमि‘देवनहल्ली’, कोलार ज़िला, कर्नाटक
मृत्यु4 मई 1799 ई. (श्रीरंगपट्टनम, कर्नाटक)
पिता का नामहैदर अली
माता का नामफ़ातिमा फ़ख़्र-उन-निसा
धार्मिक मान्यताइस्लाम
राजधानीश्रीरंगपट्टनम
युद्धमैसूर युद्ध

18वीं सदी के मैसूर ने दक्षिण भारत में ब्रिटिश विस्तारवाद को सबसे कठिन चुनौती दी थी। पहले हैदर अली और उसके बाद टीपू सुल्तान ने मद्रास की ब्रिटिश फैक्ट्री को बार-बार हराया था। उनके अन्य समकालीन हैदराबाद के निजाम और मराठों के विपरीत टीपू ने कभी अंग्रेजों के साथ कोई गठबंधन नहीं किया। वो हमेशा अंग्रेजी कंपनी के इरादों के प्रति सशंकित रहा और उनको रोकने के लिए हरसंभव प्रयास किए। कहा जा सकता है कि टीपू के भीतर साम्राज्यवाद की एक आदिम समझ विद्यमान थी। उसे देशी और विदेशी में फर्क करना आता था। यह एक ऐसी बात थी जो अंग्रेजों को हमेशा अखरती रही।

प्रारंभिक जीवन – Early Life of Tipu Sultan

टीपू सुल्तान का जन्म मैसूर के सुल्तान हैदर अली के घर 20 नवम्बर, 1750 को ‘देवनहल्ली’, वर्तमान में कर्नाटक का कोलार ज़िला में हुआ था। टीपू सुल्तान का पूरा नाम फ़तेह अली टीपू था। वह बड़ा वीर, विद्याव्यसनी तथा संगीत और स्थापत्य का प्रेमी था। उनके पिता का नाम हैदर अली और माता का नाम फ़क़रुन्निसा था। उनके पिता हैदर अली मैसूर साम्राज्य के सैनापति थे। जो अपनी ताकत से 1761 मे मैसूर साम्राज्य के शासक बने।

टीपू सुल्तान के पिता ने दक्षिण में अपनी शक्ति का विस्तार आरंभ किया था। इस कारण अंग्रेज़ों के साथ-साथ निजाम और मराठे भी उसके शत्रु बन गए थे। टीपू ने 18 वर्ष की उम्र में अंग्रेज़ों के विरुद्ध पहला युद्ध जीता था। टीपू को अपनी वीरता के कारण ही ‘शेर-ए-मैसूर’ का ख़िताब अपने पिता से प्राप्त हुआ था।

टीपू सुल्तान ने बहुत से विषयों जैसे हिन्दुस्तानी भाषा (हिंदी – उर्दू), फारसी, अरेबिक, कन्नड़, क़ुरान, इस्लामी न्यायशास्त्र, घुड़सवारी, शूटिंग और तलवारबाजी आदि पर ज्ञान प्राप्त किया। इनके पिता हैदर अली के फ़्रांसिसी अधिकारीयों के साथ राजनीतिक सम्बन्ध होने से, युवा राजकुमार टीपू सुल्तान को सेना में और अत्यधिक कुशल फ़्रांसिसी अधिकारीयों द्वारा राजनीतिक मामलों में प्रशिक्षित किया गया था।

टिपू सुल्तान का इतिहास – Tipu Sultan History in Hindi

टीपू सुल्तान काफ़ी बहादुर होने के साथ ही दिमागी सूझबूझ से रणनीति बनाने में भी बेहद माहिर था। अपने शासनकाल में भारत में बढ़ते ईस्ट इंडिया कंपनी के साम्राज्य के सामने वह कभी नहीं झुका और उसने अंग्रेज़ों से जमकर लोहा लिया। मैसूर की दूसरी लड़ाई में अंग्रेज़ों को खदेड़ने में उसने अपने पिता हैदर अली की काफ़ी मदद की। उसने अपनी बहादुरी से जहाँ कई बार अंग्रेज़ों को पटखनी दी, वहीं निज़ामों को भी कई मौकों पर धूल चटाई। अपनी हार से बौखलाए हैदराबाद के निज़ाम ने टीपू सुल्तान से गद्दारी की और अंग्रेज़ों से मिल गया।

मैसूर की तीसरी लड़ाई में भी जब अंग्रेज़ टीपू को नहीं हरा पाए तो उन्होंने मैसूर के इस शेर से ‘मंगलोर की संधि’ नाम से एक समझौता कर लिया। संधि की शर्तों के अनुसार दोनों पक्षों ने एक दूसरे के जीते हुए प्रदेशों को वापस कर दिया। टीपू ने अंग्रेज़ बंदियों को भी रिहा कर दिया। टीपू के लिए यह संधि उसकी उत्कृष्ट कूटनीतिक सफलता थी।

लेकिन पांच वर्ष बाद ही संधि को तोड़कर निजाम और मराठों को साथ लेकर अंग्रेज़ों ने फिर आक्रमण कर दिया। टीपू सुल्तान ने अरब, काबुल, फ्रांस आदि देशों में अपने दूत भेजकर उनसे सहायता मांगी, पर सफलता नहीं मिली। अंग्रेज़ों को इन कार्रवाइयों का पता था। अपने इस विकट शत्रु को बदनाम करने के लिए अंग्रेज़ इतिहासकारों ने इसे धर्मांध बताया है। परंतु वह बड़ा सहिष्णु राज्याध्यक्ष था। यद्यपि भारतीय शासकों ने उसका साथ नहीं दिया, पर उसने किसी भी भारतीय शासक के विरुद्ध, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, अंग्रेज़ों से गठबंधन नहीं किया।

‘फूट डालो, शासन करो’ की नीति चलाने वाले अंग्रेज़ों ने संधि करने के बाद टीपू से गद्दारी कर डाली। ईस्ट इंडिया कंपनी ने हैदराबाद के साथ मिलकर चौथी बार टीपू पर ज़बर्दस्त हमला किया और आख़िरकार 4 मई सन् 1799 ई. को मैसूर का शेर श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए शहीद हो गया। 1799 ई. में उसकी पराजय तथा मृत्यु पर अंग्रेज़ों ने मैसूर राज्य के एक हिस्से में उसके पुराने हिन्दू राजा के जिस नाबालिग पौत्र को गद्दी पर बैठाया, उसका दीवान पुरनिया को नियुक्त कर दिया।

कहा जाता हैं जब टीपू सुल्तान को उनके सेनापति ने गुप्त रास्ते से निकल जाने को कहा ताकि दुसरे दिन वो लड़ सके। इसके जवाब ने टीपू ने कहा “1000 सालो तक भेड़ की तरह जीने से बेहतर शेर की तरह एक दिन जीना है“।

अंग्रेजों पर हुकुमत करने वाला पहला शासक – Tipu Sultan Information

टीपू सुल्तान अंग्रेजों, जोकि सुल्तान के शासन के अधीन प्रदेशों को जीतने की कोशिश किया करते थे, के खिलाफ अपनी बेहतरीन लड़ाई के लिए भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी के रूप में महत्व दिया जाता है। मंगलौर की संधि, जोकि द्वितीय एंग्लो – मैसूर युद्ध को खत्म करने के लिए थी, इसमें उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ मिलकर एक शर्त पर  हस्ताक्षर किये, यह आखिरी अवसर था कि एक भारतीय राजा ने अंग्रेजों पर हुकुमत की।

विकास कार्य –

टीपू की शहादत के बाद अंग्रेज़ श्रीरंगपट्टनम से दो रॉकेट ब्रिटेन के ‘वूलविच संग्रहालय’ की आर्टिलरी गैलरी में प्रदर्शनी के लिए ले गए। सुल्तान ने 1782 में अपने पिता के निधन के बाद मैसूर की कमान संभाली थी और अपने अल्प समय के शासनकाल में ही विकास कार्यों की झड़ी लगा दी थी। उसने जल भंडारण के लिए कावेरी नदी के उस स्थान पर एक बाँध की नींव रखी, जहाँ आज ‘कृष्णराज सागर बाँध’ मौजूद है।

टीपू ने अपने पिता द्वारा शुरू की गई ‘लाल बाग़ परियोजना’ को सफलतापूर्वक पूरा किया। टीपू निःसन्देह एक कुशल प्रशासक एवं योग्य सेनापति था। उसने ‘आधुनिक कैलेण्डर’ की शुरुआत की और सिक्का ढुलाई तथा नाप-तोप की नई प्रणाली का प्रयोग किया। उसने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में ‘स्वतन्त्रता का वृक्ष’ लगवाया और साथ ही ‘जैकोबिन क्लब’ का सदस्य भी बना। उसने अपने को नागरिक टीपू पुकारा।

‘पालक्काड क़िला’, ‘टीपू का क़िला’ नाम से भी प्रसिद्ध है। यह पालक्काड टाउन के मध्य भाग में स्थित है। इसका निर्माण 1766 में किया गया था। यह क़िला भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण के अंतर्गत संरक्षित स्मारक है।

एक धर्मनिरपेक्ष शासक –

टीपू सुल्तान को भले ही इतिहासकारों ने धर्मांध बताया है परंतु वह बड़ा सहिष्णु राज्याध्यक्ष थे। हिंदू कई मन्दिरों को तोहफ़े पेश किए। मेलकोट के मन्दिर में सोने और चांदी के बर्तन है, जिनके शिलालेख बताते हैं कि ये टीपू ने भेंट किए थे। ने कलाले के लक्ष्मीकान्त मन्दिर को चार रजत कप भेंटस्वरूप दिए थे। 1782 और 1799 के बीच, टीपू सुल्तान ने अपनी जागीर के मन्दिरों को 34 दान के सनद जारी किए। इनमें से कई को चांदी और सोने की थाली के तोहफे पेश किए। ननजनगुड के श्रीकान्तेश्वर मन्दिर में टीपू का दिया हुअ एक रत्न-जड़ित कप है। ननजनगुड के ही ननजुनदेश्वर मन्दिर को टीपू ने एक हरा-सा शिवलिंग भेंट किया। श्रीरंगपटना के रंगनाथ मन्दिर को टीपू ने सात चांदी के कप और एक रजत कपूर-ज्वालिक पेश किया।

लन्दन के ब्रिटिश म्यूजियम में टीपू सुल्तान की तमाम चीजे रखी हैं। खास तरह से कारीगिरी की गयी टीपू सुल्तान की तलवार भी इसमें शामिल हैं। हालाँकि 2003 इंडियन बुसिनेस मेन विजय माल्या ने लन्दन में नीलामी के वक्त इसे ख़रीदा और वापस इंडिया लेके आये। इस तलवार की मुठ पर रत्नजड़ित बाघ बना हुआ हैं क्योंकि टीपू सुल्तान का प्रतिक चिन्ह बाघ ही था।


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