Panna Dhai – पन्ना धाय मेवाड़ के राजा उदयसिंह की धाय माँ थीं। वे माँ के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना ‘धाय माँ’ कहलाई थी। पन्ना धाय किसी राजपरिवार की सदस्य नहीं थीं, उन्होंने उदयसिंह की माँ कर्मावती के सामूहिक आत्म बलिदान द्वारा स्वर्गारोहण पर बालक की परवरिश करने का दायित्व संभाला था।
पन्ना धाय की कहानी – Panna Dhai Story in Hindi
मेवाड़ के इतिहास में जिस गौरव के साथ प्रात: स्मरणीय महाराणा प्रताप को याद किया जाता है, उसी गौरव के साथ पन्ना धाय का नाम भी लिया जाता है, जिसने स्वामीभक्ति को सर्वोपरि मानते हुए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया था। अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना पन्ना धाय का जन्म कमेरी गाँव में हुआ था।
पन्ना के पिता हरचंद हांकला एक वीर योद्धा थे और अनेकों युद्धों में वह राणा संग्राम सिंह के साथ रहे थे। इतना ही नही वह युद्ध में ही हुतात्मा हो गये थे। ऐसे स्वामी भक्त, देशभक्त और परम निष्ठावान योद्धा की पुत्री को धायमाता बनाना परम सौभाग्य की बात थी। कहते हैं कि रानी कर्मवती से जब उदयसिंह का जन्म हुआ तो रानी तभी से अस्वस्थ रही और निरंतर एक वर्ष गंभीर रूप से अस्वस्थ रहीं। तब उदयसिंह के लालन पालन के लिए पन्ना को धायमाता बनाया गया। इस धाय ने अपनी स्वामीभक्ति और कत्र्तव्यनिष्ठा से सिद्घ कर दिया था कि वह जन्मजात शेरनी है और गूजरी होकर अपने कत्र्तव्य पथ से विषम से विषम परिस्थिति में भी हटने वाली नही है।
मेवाड़ के शासक राणा संग्राम सिंह एक वीर शासक थे, परन्तु मित्र और शत्रु को परखने की क्षमता का अभाव था। वे अपनी प्रशंशा सुन के किसी पर भी विश्वास कर लेते थे। इसी का लाभ उठाते हुवे एक धूर्त, चालाक और महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने राजा को धोखा दिया। इसका नाम था बनबीर। वह दासी का पुत्र था जो धोखे से चित्तौड़ का शासक बनाना चाहता था। उसने राणा के वंशजों को एक-एक कर मार डाला।
बनवीर एक रात महाराजा विक्रमादित्य की हत्या करके उदयसिंह को मारने के लिए उसके महल की ओर चल पड़ा। एक विश्वस्त सेवक द्वारा पन्ना धाय को इसकी पूर्व सूचना मिल गई। पन्ना राजवंश और अपने कर्तव्यों के प्रति सजग थी व उदयसिंह को बचाना चाहती थी। उसने उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुलाकर उसे झूठी पत्तलों से ढककर एक विश्वास पात्र सेवक के साथ महल से बाहर भेज दिया। बनवीर को धोखा देने के उद्देश्य से अपने पुत्र को उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। बनवीर रक्तरंजित तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उसके बारे में पूछा। पन्ना ने उदयसिंह के पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उसका पुत्र सोया था। बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदयसिंह समझकर मार डाला।
पन्ना अपनी आँखों के सामने अपने पुत्र के वध को अविचलित रूप से देखती रही। बनवीर को पता न लगे इसलिए वह आंसू भी नहीं बहा पाई। बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र की लाश को चूमकर राजकुमार को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पड़ी। स्वामिभक्त वीरांगना पन्ना धन्य हैं! जिसने अपने कर्तव्य-पूर्ति में अपनी आँखों के तारे पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राजवंश को बचाया।
पुत्र की मृत्यु के बाद पन्ना उदयसिंह को लेकर बहुत दिनों तक सप्ताह शरण के लिए भटकती रही पर दुष्ट बनबीर के खतरे के डर से कई राजकुल जिन्हें पन्ना को आश्रय देना चाहिए था, उन्होंने पन्ना को आश्रय नहीं दिया। पन्ना जगह-जगह राजद्रोहियों से बचती, कतराती तथा स्वामिभक्त प्रतीत होने वाले प्रजाजनों के सामने अपने को ज़ाहिर करती भटकती रही। कुम्भलगढ़ में उसे यह जाने बिना कि उसकी भवितव्यता क्या है शरण मिल गयी। उदयसिंह क़िलेदार का भांजा बनकर बड़ा हुआ। तेरह वर्ष की आयु में मेवाड़ी उमरावों ने उदयसिंह को अपना राजा स्वीकार कर लिया और उसका राज्याभिषेक कर दिया। उदय सिंह 1542 में मेवाड़ के वैधानिक महाराणा बन गए।