मुंडेश्वरी मंदिर बिहार, इतिहास | Mundeshwari Temple History

Mundeshwari Temple / मुंडेश्वरी मंदिर बिहार के कैमूर जिला में स्थित भगवान शिव और देवी शक्ति को समर्पित है। मंदिर मुंड़ेश्वरी पर्वत पर 608 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। इस मंदिर को दुनिया का ‘सबसे पुराना कार्यात्मक’ मंदिर माना जाता है क्योंकि यहां बिना रुके सारे अनुष्ठान मनाए जाते हैं। इस मंदिर में भगवान गणेश, सूर्य और विष्णु की मूर्तियां भी हैं। यह प्राचीन मंदिर पुरातात्विक धरोहर ही नहीं, अपितु तीर्थाटन व पर्यटन का जीवंत केन्‍द्र भी है।

मुंडेश्वरी मंदिर बिहार, इतिहास | Mundeshwari Temple History

मुंडेश्वरी मंदिर, कैमूर बिहार – Mundeshwari Temple Kaimur Bihar in Hindi

बिहार के सबसे लोकप्रिय शहर ग्रीन सिटी भभुआ (कैमूर) जिले में स्थित माँ मुंडेश्वरी देवी मंदिर सबसे ख़ास है, यहां आने वाले भक्तो को हर मनोकामना पूरी हो जाती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) अनुसार, यह मंदिर 108 ई. में बनाया गया था और 1915 के बाद से एक संरक्षित स्मारक है।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह मंदिर भारत के सर्वाधिक प्राचीन व सुंदर मंदिरों में एक है। भारत के ‘पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग’ द्वारा संरक्षित मुंडेश्वरी मंदिर के पुरुत्थान के लिए योजनायें बनाई जा रही है और इसके साथ ही इसे यूनेस्को की लिस्ट में भी शामिल करवाने के प्रयास जारी हैं।

मुंडेश्वरी मंदिर मंदिर का इतिहास – Mundeshwari Temple History in Hindi

Mundeshwari Mandir – मुंडेश्वरी मंदिर को कब और किसने बनाया, यह दावे के साथ कहना कठिन है, लेकिन यहाँ से प्राप्त शिलालेख के अनुसार माना जाता है कि उदय सेन नामक क्षत्रप के शासन काल में इसका निर्माण हुआ। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह मंदिर भारत के सर्वाधिक प्राचीन व सुंदर मंदिरों में एक है।

मुंडेश्वरी मंदिर की प्राचीनता का महत्व इस दृष्टि से और भी अधिक है कि यहाँ पर पूजा की परंपरा 1900 सालों से अविच्छिन्न चली आ रही है और आज भी यह मंदिर पूरी तरह जीवंत है। बड़ी संख्या में भक्तों का यहाँ आना-जाना लगा रहता है।

मंदिर परिसर में विद्यमान शिलालेखों से इसकी ऐतिहासिकता प्रमाणित होती है। 1838 से 1904 ई. के बीच कई ब्रिटिश विद्वान् व पर्यटक यहाँ आए थे। मंदिर का एक शिलालेख कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में है। पुरातत्वविदों के अनुसार यह शिलालेख 349 ई. से 636 ई. के बीच का है।

इस मंदिर का उल्लेख कनिंघम ने भी अपनी पुस्तक में किया है। उसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि कैमूर में मुंडेश्वरी पहाड़ी है, जहाँ मंदिर ध्वस्त रूप में विद्यमान है। इस मंदिर का पता तब चला, जब कुछ गडरिये पहाड़ी के ऊपर गए और मंदिर के स्वरूप को देखा। उस समय इसकी इतनी ख्याति नहीं थी, जितनी अब है। प्रारम्भ में पहाड़ी के नीचे निवास करने वाले लोग ही इस मंदिर में दीया जलाते और पूजा-अर्चना करते थे।

यहाँ से प्राप्त शिलालेख में वर्णित तथ्‍यों के आधार पर कुछ लोगों द्वारा यह अनुमान लगाया जाता है कि यह आरंभ में वैष्णव मंदिर रहा होगा, जो बाद में शैव मंदिर हो गया तथा उत्‍तर मध्‍ययुग में शाक्‍त विचारधारा के प्रभाव से शक्तिपीठ के रूप में परिणित हो गया। मंदिर की प्राचीनता का आभास यहाँ मिले महाराजा दुत्‍तगामनी की मुद्रा से भी होता है, जो बौद्ध साहित्य के अनुसार अनुराधापुर वंश का था और ईसा पूर्व 101-77 में श्रीलंका का शासक रहा था।

इस मंदिर की नक़्क़ाशी व मूर्तियाँ उत्तर गुप्तकालीन समय की हैं। शिलालेख के अनुसार यह मंदिर महाराजा उदय सेन के शासन काल में निर्मित हुआ था। जानकार लोग बताते हैं कि शिलालेख में उदय सेन का ज़िक्र है, जो शक संवत 30 में कुषाण शासकों के अधीन क्षत्रप रहा होगा। उनके अनुसार ईसाई कैलेंडर से मिलान करने पर यह अवधि 108 ईस्‍वी सन् होती है।

मंदिर का निर्माण काल 635-636 ई. बताया जाता है। पंचमुखी शिवलिंग इस मंदिर में स्थापित है, जो अत्यंत दुर्लभ है। दुर्गा का वैष्णवी रूप ही माँ मुंडेश्वरी के रूप में यहाँ प्रतिस्थापित है। मुंडेश्वरी की प्रतिमा वाराही देवी की प्रतिमा है, क्योंकि इनका वाहन महिष है। मुंडेश्वरी मंदिर अष्टकोणीय है। मुख्य द्वार दक्षिण की ओर है। मंदिर में शारदीय और चैत्र माह के नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालु दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। वर्ष में दो बार माघ और चैत्र में यहाँ यज्ञ होता है।

मंदिर से जुड़े पौराणिक कथाएं – Mundeshwari Temple Story in Hindi

Mundeshwari Mandir – मुंडेश्वरी देवी का जिक्र मार्कण्डेय पुराण में हुआ था इस महा पुराण के अनुसार माता भगवती ने इसी जगह अत्याचारी और दुराचारी असुर मुंड का वध किया था। इसी से देवी का नाम मुंडेश्वरी पड़ा। मुंडेश्वरी मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पशु बलि की सात्विक परंपरा है। यहां बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता।

एक और अनोखी बात यह है कि यहां पहाड़ी के मलबे के अंदर गणेश और शिव सहित अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ दब गईं। खुदाई के दौरान ये मिलती रही हैं। यहाँ खुदाई के क्रम में मंदिरों के समूह भी मिले हैं। वर्ष 1968 में पुरातत्व विभाग ने यहां से मिलीं 97 दुर्लभ प्रतिमाओं को सुरक्षा की दृष्टि से ‘पटना संग्रहालय’ में रखवा दिया। तीन प्रतिमाएं ‘कोलकाता संग्रहालय’ में हैं।

कैसे पहुंचे – Mundeshwari Mandir Bihar

मुंडेश्वरी देवी मंदिर पंवरा पहाड़ी पर 608 फिट.की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुचने के लिए पटना, गया और वाराणसी से सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। यहां से नजदीकी रेलवे स्टेशन भभुआ रोड (मोहनिया) की दूरी 22 कि.मी है। इस रेलवे स्टेशन से मंदिर तक के लिए बस से भी आप जा सकते है। पटना से मुंडेश्वरी देवी मंदिर की दूरी 217 कि.मी है।


और अधिक लेख –

Hope you find this post about ”Mundeshwari Temple History” useful. if you like this article please share on Facebook & Whatsapp.

1 thought on “मुंडेश्वरी मंदिर बिहार, इतिहास | Mundeshwari Temple History”

  1. Sir , मुंडेश्वरी मन्दिर के बारे में बहुत सही जानकारी का ये आर्टिकल आपने लिखा है ,

    क्योकि इसमे सही और सटीक जानकारी प्राप्त होती है ।
    बिहार का ये मन्दिर है और आपने पूरी डिटेल के साथ इसे बताया है , जैसे कि ये कितना पुराना है , और सरकार किस तरह से इसे यूनेस्को में शामिल करवाना चाहती है ।

    बहुत अच्छी जानकारी , बहुत अच्छे ।।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *