Kasturba Gandhi Biography in Hindi / कस्तूरबा गांधी, भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पत्नी थी। भारत के गौरवशाली इतिहास में बलिदान की इतनी गाथाएँ हैं कि सितारों की गिनती तक कम पड़ जाती है। अगर हम अपने स्वतंत्रता संग्राम की ही बात करें तो अनगिनत महिलाओं का नाम प्रतिबिंबित होता है जो बहुत सक्रिय रहीं, लेकिन सबसे पहली महिला जिनका नाम ही स्वतंत्रता का पर्याय बन गया है वो हैं ‘श्रीमती कस्तूरबा गाँधी’।
कस्तूरबा गाँधी का परिचय – Kasturba Gandhi in Hindi
पूरा नाम | कस्तूरबा गाँधी (Kasturba Gandhi) |
जन्म दिनांक | 11 अप्रैल सन् 1869 |
जन्म स्थान | काठियावाड़, पोरबंदर, भारत |
मृत्यु तिथि | 22 फ़रवरी सन् 1944 |
मृत्यु स्थान | आगा ख़ाँ महल, पूना, भारत |
पिता का नाम | गोकुलदास कपाडिया |
माता का नाम | व्रजकुंवरबा कपाडिया |
कर्म-क्षेत्र | समाजसेवा, स्वतंत्रता सेनानी |
पति | महात्मा गाँधी |
संतान | हरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास |
आंदोलन | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम |
कस्तूरबा गाँधी, महात्मा गाँधी के ‘स्वतंत्रता कुमुक’ की पहली महिला प्रतिभागी थीं। कस्तूरबा गाँधी का अपना एक दृष्टिकोण था, उन्हें आज़ादी का मोल और महिलाओं में शिक्षा की महत्ता का पूरा भान था। स्वतंत्र भारत के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना उन्होंने भी की थी। उन्होंने हर क़दम पर अपने पति मोहनदास करमचंद गाँधी का साथ निभाया था। ‘बा’ जैसा आत्मबलिदान का प्रतीक व्यक्तित्व उनके साथ नहीं होता तो गाँधी जी के सारे अहिंसक प्रयास इतने कारगर नहीं होते। कस्तूरबा ने अपने नेतृत्व के गुणों का परिचय भी दिया था। जब-जब गाँधी जी जेल गए थे, वो स्वाधीनता संग्राम के सभी अहिंसक प्रयासों में अग्रणी बनी रहीं।
प्रारंभिक जीवन – Early Life of Kasturba Gandhi
कस्तूरबा गाँधी का जन्म 11 अप्रैल सन 1869 ई. में काठियावाड़ के पोरबंदर नगर गुजरात में हुआ था। उन्हे “बा” नाम से भी जाना जाता है कस्तूरबा के पिता ‘गोकुलदास मकनजी’ एक साधारण व्यापारी थे और कस्तूरबा उनकी तीसरी संतान थी।
उस जमाने में कोई लड़कियों को पढ़ाता तो था नहीं, और विवाह भी छोटी उम्र में ही कर देते थे कस्तूरबा के पिता महात्मा गांधी के पिता के करीबी मित्र थे और दोनों मित्रों ने अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलने का निर्णय कर लिया था। कस्तूरबा बचपन में निरक्षर थीं और मात्र सात साल की अवस्था में उनकी सगाई 6 साल के मोहनदास के साथ कर दी गई और 13 साल की छोटी उम्र में उन दोनों का विवाह हो गया।
उनके शादी के दिन को याद करते हुए, उनके पति मोहनदास करमचंद गाँधी कहते है की, “हम उस समय विवाह के बारे में कुछ नहीं जानते थे, हमारे लिए उसका मतलब केवल नए कपडे पहनना, मीठे पकवान खाना और रिश्तेदारों के साथ खेलना था”। कस्तूरबा का शुरूआती गृहस्थ जीवन बहुत ही कठिन था। उनके पति मोहनदास करमचंद गाँधी उनकी निरक्षरता से अप्रसन्न रहते थे और उन्हें ताने देते रहते थे। बापू ने उन पर आरंभ से ही अंकुश रखने का प्रयास किया और चाहा कि कस्तूरबा बिना उनसे अनुमति लिए कहीं न जाएं, किंतु वे उन्हें जितना दबाते उतना ही वे आज़ादी लेती और जहाँ चाहतीं चली जातीं।
मोहनदास का कहना था की शादी के बाद वे कस्तूरबा से प्रेम करने लगे थे और वे स्कूल में भी उन्ही के बारे में सोचते थे उनसे मिलने की योजनाये बनाते रहते थे। वे कहते थे की कस्तूरबा की बाते और यादे अक्सर उन्हे आती थी।
कुच्छ समय बाद कस्तूरबा महात्मा गांधी जी के साथ रहने लगी और एक शिशु को भी जन्म दिया जिसका नाम हरिलाल गाँधी था। कस्तूरबा के 3 और बच्चे थे, मणिलाल गाँधी, रामदास गाँधी और देवदास गाँधी। महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गाँधी जो भारत में बा के नाम से विख्यात है।
समाजसेवी जीवन
विवाह पश्चात पति-पत्नी सन 1888 तक लगभग साथ-साथ ही रहे परन्तु मोहनदास के इंग्लैंड प्रवास के बाद वो अकेली ही रहीं। मोहनदास के अनुपस्थिति में उन्होंने अपने बच्चे हरिलाल का पालन-पोषण किया। शिक्षा समाप्त करने के बाद गाँधी इंग्लैंड से लौट आये पर शीघ्र ही उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। इसके पश्चात मोहनदास सन 1896 में भारत आए और तब कस्तूरबा को अपने साथ ले गए।
दक्षिण अफ्रीका जाने से लेकर अपनी मृत्यु तक ‘बा’ महात्मा गाँधी का अनुसरण करती रहीं। उन्होंने अपने जीवन को गाँधी की तरह ही सादा और साधारण बना लिया था। कस्तूरबा गाँधी उनके पति के साथ काम करके, कस्तूरबा एक सामाजिक कार्यकर्त्ता और स्वतंत्रता सेनानी बन गयी थी। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने गांधीजी का बखूबी साथ दिया। वहां पर भारतियों की दशा के विरोध में जब वो आन्दोलन में शामिल हुईं तब उन्हें गिरफ्तार कर तीन महीनों की कड़ी सजा के साथ जेल भेज दिया गया।
जेल में मिला भोजन अखाद्य था अत: उन्होंने फलाहार करने का निश्चय किया पर अधिकारियों द्वारा उनके अनुरोध पर ध्यान नहीं दिए जाने पर उन्होंने उपवास किया जिसके पश्चात अधिकारियों को झुकना पड़ा। बाद में भारत में कभी जब महात्मा गाँधी को जेल हो जाती तब कुछ समय के लिए कस्तूरबा उनके अभियान को आगे बढाती।
1915 में, जब गांधीजी भारतीय बागानों को मदद करने वापिस आये तब कस्तूरबा ने उनका साथ दिया। उन्होंने स्वास्थ विज्ञानं, अनुशासन, पढना और लिखना सिखाया। 9 अगस्त 1942 को बापू आदि के गिरफ्तार हो जाने पर बा ने, शिवाजी पार्क (बंबई) में, जहाँ स्वयं बापू भाषण देने वाले थे, सभा में भाषण करने का निश्चय किया किंतु पार्क के द्वारा पर पहुँचने पर गिरफ्तार कर ली गर्इं। और पूना के आगा खाँ महल में भेज दिया गया। सरकार ने महात्मा गाँधी को भी यहीं रखा था। उस समय वे अस्वस्थ थीं। गिरफ्तारी के बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ता ही गया और कभी भी संतोषजनक रूप से नहीं सुधरा।
निधन – Kasturba Gandhi Death
कस्तूरबा गाँधी के जन्म में उलझन के कारण दीर्घकालीन फेफड़ो की बीमारी से पीड़ित थी। उनके फेफड़े न्युमोनिया की बीमारी से पीड़ित थे। जनवरी 1944 में उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ा। उनके निवेदन पर सरकार ने आयुर्वेद के डॉक्टर का प्रबंध भी कर दिया और कुछ समय के लिए उन्हें थोडा आराम भी मिला, पर 22 फरवरी, 1944 को उन्हें एक बार फिर भयंकर दिल का दौरा पड़ा और बा हमेशा के लिए ये दुनिया छोड़कर चली गयीं। उनकी मृत्यु के उपरांत राष्ट्र ने महिला कल्याण के निमित्त एक करोड़ रुपया एकत्र कर इन्दौर में कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की स्थापना की।
कस्तूरबा मोहनदास गाँधी वही महिला थी जिसने जीवन भर अपने पति का साथ दिया। जबकि स्वतंत्रता के दिनों में महिलाओ को इतना महत्त्व नहीं दिया जाता था, उस समय महात्मा गांधीजी ने कभी कस्तूरबा को समाजसेवा करने से नहीं रोका। कम उम्र में शादी होने के बाद भी कस्तूरबा अपनी जवाबदारियो से नहीं भागी, वो अंत तक अपने कर्तव्यो का पालन करती रही, और अपने समाज की सेवा करती रही। वे हमेशा महिलाओ के लिए प्रेरणास्त्रोत रहेंगे।
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