गोपाल कृष्ण गोखले की जीवनी | Gopal Krishna Gokhale Biography in Hindi

Gopal Krishna Gokhale – गोपाल कृष्ण गोखले एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं समाज  सुधारक भी थे। वे ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ने वाले भारतीय राजनेता थे। इन्होने सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की थी। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सबसे प्रसिद्ध नरमपंथी और वरिष्ठ नेता थे।

गोपाल कृष्ण गोखले की जीवनी | Gopal Krishna Gokhale Biography in Hindiगोपाल कृष्ण गोखले का परिचय – Gopal Krishna Gokhale Biography

पूरा नामगोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale)
जन्म दिनांक9 मई, 1866 ई.
जन्म भूमिकोल्हापुर, महाराष्ट्र (भारत)
मृत्यु19 फरवरी, 1915 ई. मुम्बई, महाराष्ट्र
पिता का नामश्री कृष्णराव श्रीधर गोखले
शिक्षास्नातक
पार्टीभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
धर्महिन्दू
नागरिकताभारतीय
प्रसिद्धिस्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं समाज सुधारक
संस्थापकसर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी

गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के मार्गदर्शकों में से एक थे। महादेव गोविंद रानाडे के शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का ‘ग्लेडस्टोन’ कहा जाता है। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। स्व-सरकार व्यक्ति की औसत चारित्रिक दृढ़ता और व्यक्तियों की क्षमता पर निर्भर करती है। महात्मा गांधी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

प्रारंभिक जीवन – Early Life Gopal Krishna Gokhale

गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई, 1866 ई. को महाराष्ट्र में कोल्हापुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता कृष्णराव श्रीधर गोखले एक ग़रीब किंतु स्वाभिमानी ब्राह्मण थे। माता का नाम वालुबाई गोखले था। पिता के असामयिक निधन ने गोपाल कृष्ण को बचपन से ही सहिष्णु और कर्मठ बना दिया था।

गोखले का परिवार गरीब था, इसलिए उनके परिवार के लोग चाहते थे कि गोखले को अच्छी शिक्षा प्राप्त हो, ताकि वो ब्रिटिश राज में क्लर्क अथवा कोई छोटी – मोटी नौकरी प्राप्त कर सकें। स्नातक की डिग्री प्राप्त कर गोखले गोविन्द रानाडे द्वारा स्थापित ‘देक्कन एजुकेशन सोसायटी’ के सदस्य बने। बाद में ये महाराष्ट्र के ‘सुकरात’ कहे जाने वाले गोविन्द रानाडे के शिष्य बन गये। शिक्षा पूरी करने पर गोपालकृष्ण कुछ दिन ‘न्यू इंग्लिश हाई स्कूल’ में अध्यापक रहे। बाद में पूना के प्रसिद्ध फर्ग्यूसन कॉलेज में इतिहास और अर्थशास्त्र के प्राध्यापक बन गए।

गोपाल कृष्ण उस समय के किसी भी भारतीय द्वारा पहली बार कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने वाले चंद लोगों में से एक थे। गोखले शिक्षा के महत्त्व को भली-भांति समझते थे। उनको अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान था जिसके कारण वो बिना किसी हिचकिचाहट और अत्यंत स्पष्टता के साथ अपने आप को अभिव्यक्त कर पाते थे।

गोपाल कृष्ण गोखले ने फर्ग्यूसन कॉलेज को अपने जीवन के करीब दो दशक दिए और कॉलेज के प्रधानाचार्य बने। इस दौरान वो महादेव गोविन्द रानाडे के संपर्क में आये। रानाडे एक न्यायाधीश, विद्द्वान और समाज सुधारक थे जिन्हे गोखले ने अपना गुरु बना लिया।

गोखले ने 2 बार शादी की थी। गोखले का प्रथम विवाह सन 1880 में सावित्रीबाई से हुआ, तब गोखले की उम्र 14 वर्ष थी। उनकी पहली पत्नि किसी असाध्य रोग से ग्रसित थी। इसके बाद सन 1887 में उनका द्वितीय विवाह हुआ, तब उनकी पहली पत्नि सावित्रीबाई जीवित थी। उनकी दूसरी पत्नि ने 2 बेटियों को जन्म दिया और सन 1899 में उनकी दूसरी पत्नि की मृत्यु हो गयी।

राजनीति जीवन में प्रवेश – Gopal Krishna Gokhale Life History in Hindi

गोखले का राजनीति में पहली बार प्रवेश 1888 ई. में इलाहाबाद में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में हुआ। बाल गंगाधर तिलक से मिलने के बाद गोखले के जीवन को नई दिशा मिल गई। गोखले ने पहली बार कोल्हापुर में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया।

वर्ष 1892 में गोखले ने फरग्यूसन कॉलेज छोड़ दिया। वह दिल्ली में इम्पीरियल विधान परिषद के सदस्य बने जहाँ वह देशवाशियों के हित के लिए अपनी बात रखी। गोखले को हमारे देश की आर्थिक समस्याओं की अच्छी समझ थी जिसे उन्होंने बहस के दौरान काफी चतुरता से प्रस्तुत किया।

वर्ष 1894 में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूना में अपने सत्र का आयोजन किया तब उन्हें स्वागत समिति का सचिव बनाया गया। इस सत्र के कारण गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण सदस्य बन गए। गोखले पुणे नगरपालिका के दो बार अध्यक्ष चुने गए। कुछ दिनों के लिए गोखले बंबई विधान परिषद के एक सदस्य भी रहे जहाँ उन्होंने सरकार के खिलाफ अपनी बात रखी।

1905 में गोखले ने ‘भारत सेवक समाज’ (सरवेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी) की स्थापना की, ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इसीलिए इन्होंने सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा लागू करने के लिये सदन में विधेयक भी प्रस्तुत किया था। इसके सदस्यों में कई प्रमुख व्यक्ति थे। उन्हें नाम मात्र के वेतन पर जीवन-भर देश सेवा का व्रत लेना होता था। गोखले ने राजकीय तथा सार्वजनिक कार्यों के लिए 7 बार इंग्लैण्ड की यात्रा की।

उन्होंने 1909 के ‘मोर्ले मिंटो सुधारों’ के प्रस्तुतीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो अंत में एक कानून बन गया। हालाँकि इन सुधारों ने भारत में सांप्रदायिक विभाजन का बीज बोया फिर भी उन्होंने सरकार के भीतर सबसे अधिक अधिकार वाली सीटों पर भारतीय पहुँच का अधिकार दे दिया और जिस वजह से उनकी आवाज सार्वजनिक हितों के मामले में और अधिक सुनी जाने लगी।

गोखले उदारवादी होने के साथ-साथ सच्चे राष्ट्रवादी भी थे। वे अंग्रेज़ों के प्रति भक्ति को ही राष्ट्रभक्ति समझते थे। गोखले यह कल्पना नहीं कर सकते थे कि अंग्रेज़ी साम्राज्य के बाहर भारत कुछ प्रगति कर सकता है। अंग्रेज़ी साम्राज्य को चुनौती देने के दुष्परिणामों की कल्पना करके ही वे अंग्रेज़ी साम्राज्य के भारी समर्थक बन गये। गरम दल के लोगों ने उन्हें ‘दुर्बल हृदय का उदारवादी एवं छिपा हुआ राजद्रोही कहा।

गाँधी जी गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। साबरमती आश्रम की स्थापना के लिए गोखले ने गाँधी जी को आर्थिक सहायता दी। गोखले सिर्फ गांधी जी के ही नहीं बल्कि मोहम्मद अली जिन्ना के भी राजनीतिक गुरु थे। गांधी जी को अहिंसा के जरिए स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई की प्रेरणा गोखले से ही मिली थी। गोखले की प्रेरणा से ही गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया।

जन नेता कहे जाने वाले गोखले नरमपंथी सुधारवादी थे। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई के साथ ही देश में व्याप्त छुआछूत और जातिवाद के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया। वह जीवनभर हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए काम करते रहे।

गोखले का भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। चूँकि वे एक समन्वयवादी नेता थे, जिस कारण उनका ब्रिटिश इंपीरियल के साथ सामंजस्य पूर्ण व्यवहार था, जिसका प्रभाव भी पड़ा। परन्तु सबसे गहरा प्रभाव पड़ा, उनके शिक्षा के प्रति झुकाव के कारण। गोखले का मानना था कि जब भारतीय शिक्षित होंगे तो ही उनका विकास हो पाएगा और साथ ही साथ वे पश्चिमी शिक्षण प्रणाली से भी बहुत प्रभावित थे।

निधन – Gopal Krishna Gokhale Died

गोपाल कृष्ण गोखले मधुमेह, दमा जैसी कई गंभीर बीमारियों से परेशान रहने लगे और अंतत: 19 फरवरी, 1915 ई. को मुम्बई, महाराष्ट्र में उनका निधन हो गया। गोखले अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भी राजनैतिक रूप से सक्रीय रहे। जिसमें उनकी विदेश यात्राएं और विदेशों में होने वाले आंदोलनों और सुधार कार्यक्रमों में योगदान भी शामिल हैं।

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