Shivaji Maharaj – छत्रपति शिवाजी महाराज या शिवाजी राजे भोसले भारत के महान योद्धा रणनीतिकार, शासक और मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे। शिवाजी महाराज एक बहादुर, बुद्धिमान और निडर शासक थे। धार्मिक अभ्यासों में उनकी काफी रूचि थी। रामायण और महाभारत का अभ्यास वे बड़े ध्यान से करते थे। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनैतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया।
छत्रपती शिवाजी महाराज का परिचय – Chhatrapati Shivaji Maharaj Biography in Hindi
नाम | शिवाजी शहाजी भोसले. (Chhatrapati Shivaji Maharaj) |
जन्म दिनांक | 19 फ़रवरी, 1630 |
जन्म स्थान | शिवनेरी, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 3 अप्रैल, 1680 |
पिता का नाम | शाहजी भोंसले |
माता का नाम | जीजाबाई |
विवाह | साइबाईं निम्बालकर |
संतान | सम्भाजी |
राजघराना | मराठा साम्राज्य |
युद्ध | मुग़लों के विरुद्ध अनेक युद्ध हुए |
शासन काल | 1642 – 1680 ई. |
शिवाजी कला और संस्कृति, धर्मपरायणता और पत्रों के संरक्षक थे। उनके दिल में कोई भी भेदभाव कोई जातिवाद, और सांप्रदायिकता नहीं थी। सेनानायक के रूप में शिवाजी की महानता निर्विवाद रही है। मात्र 19 साल की आयु में शिवाजी ने तोरना का किला पर जीत हासिल की थी। उन्होंने मुगलो के साथ कई लड़ाई लड़ी। शिवाजी प्रभावशाली कुलीनों के वंशज थे।
शुरुवाती जीवन – Early Life of Chhatrapati Shivaji Maharaj
शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। शिवनेरी का दुर्ग पूना (पुणे) से उत्तर की तरफ़ जुन्नर नगर के पास था। उनके पिता का नाम शाहजी भोंसले और माता जीजाबाई थी। उनका बचपन उनकी माता जिजाऊ के मार्गदर्शन में बीता। माता जीजाबाई अत्याधिक और धार्मिक थी। इस धार्मिक माहौल का शिवाजी पर बहुत गहरा असर पड़ा। उन्होंने रामायण और महाभारत का गहरा अध्ययन किया। वह सभी कलाओं में माहिर थे, उन्होंने बचपन में राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा ली थी। ये भोंसले उपजाति के थे जो कि मूलतः क्षत्रिय राजपूत वंश के थे. उनके पिता अप्रतिम शूरवीर थे और उनकी दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते थीं।
उनकी माता जी जीजाबाई जाधव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली थी और उनके पिता एक शक्तिशाली सामंत थे। वे दक्षिण सल्तनत में बीजापुर सुल्तान के मराठा सेनाध्यक्ष थे। शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। बचपन से ही वे उस युग के वातावरण और घटनाओँ को भली प्रकार समझने लगे थे। शासक वर्ग की करतूतों पर वे झल्लाते थे और बेचैन हो जाते थे। उनके बाल-हृदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्ज्वलित हो गयी थी। उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों का संगठन किया। अवस्था बढ़ने के साथ विदेशी शासन की बेड़ियाँ तोड़ फेंकने का उनका संकल्प प्रबलतर होता गया। छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निम्बालकर के साथ लाल महल, पुना में हुआ था।
प्रभुता का विस्तार :-
1645 में किशोर शिवाजी ने प्रथम बार हिंदवी स्वराज्य की अवधारणा दादाजी नरस प्रभु के समक्ष प्रकट की। उस समय बीजापुर आपसी संघर्ष तथा मुग़लों के आक्रमण से परेशान था। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने बहुत से दुर्गों से अपनी सेना हटाकर उन्हें स्थानीय शासकों या सामन्तों के हाथ सौंप दिया था। जब आदिलशाह बीमार पड़ा तो बीजापुर में अराजकता फैल गई और शिवाजी महाराज ने अवसर का लाभ उठाकर बीजापुर में प्रवेश का निर्णय लिया। मात्र 15 वर्ष की उम्र में शिवाजी ने टोरना किले के बिजापुरी सेनापति, इनायत खान को रिश्वत देकर किले का कब्ज़ा पा लिया। पिता के मृत्यु के पश्चात शिवाजी ने दोबारा छापा मार कर 1656 में नज़दीकी मराठा प्रमुख से जव्वली का राज्य हासिल किया।
1659 में आदिलशाह ने अफ्ज़ल खान, उनके अनुभवी एवं पुराने सेनापति को शिवाजी को खत्म करने के इरादे से भेजा। इन दोनों के बीच प्रतापगढ़ के किले पर 10 नवंबर 1659 को युद्ध हुआ। ऐसा नियम तय हुआ था कि दोनों केवल एक तलवार व एक अनुयायी के साथ आयें। विश्वाशघात के संदेह से शिवाजी ने दूसरे हथियार छुपा लिए थे तथा अफ्ज़ल खान को घायल करने के पश्चात अपने छुपे हुए सैनिकों को बिजापुर पर आक्रमण का निर्देश दिया। 28 दिसम्बर 1659 को इसी बहादुरी के साथ उन्होंने बीजापुर के सेनापति रूस्तमजमन के हमले का जवाब कोल्हापुर में दिया।
शिवाजी राजे की बढती ताकत को देखते हुए मुघल सम्राट औरंगजेब ने जय सिंह और दिलीप खान को शिवाजी को रोकने के लिये भेजा. और उन्होंने शिवाजी को समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा. समझौते के अनुसार उन्हें मुघल शासक को 24 किले देने थे। इसी इरादे से औरंगजेब ने शिवाजी राजे को आमंत्रित भी किया. परंतु 12 मई 1666 को औरंगज़ेब ने शिवाजी को अपने दरबार में सेनापतियों के पीछे खड़ा कराया। शिवाजी नाराज़ होकर चले गये पर उन्हें गिरफ्तार कर औरंगजेब ने अपनी हिरासत में ले लिया था। कैद से आज़ाद होने के बाद, छत्रपति ने जो किले पुरंदर समझौते में खोये थे उन्हें पुनः हासिल कर लिया. और उसी समय उन्हें “छत्रपति” का शीर्षक भी दिया गया।
शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक :-
सन 1674 तक शिवाजी राजे ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरन्दर की संधि के अंतर्गत उन्हें मुगलों को देने पड़े थे। शिवाजी का राज्यअभिषेक एक भव्य समारोह में रायगढ़ में 6 जून 1674 को किया गया। विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। इस समय से शिवाजी अधिकारिक तौर पर छत्रपति कहलाये गये।
इस समारोह मे काशी के पंडित विश्वेक्ष्वर जी भट्ट को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इस कारण से दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ। इस समारोह में हिन्द स्वराजकी स्थापना का उद्घोष किया गया था। विजयनगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था. एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया।
उन्होंने मराठाओ की एक विशाल सेना तैयार कर ली थी। उन्ही के शासन कल से गुरिल्ला के युद्ध प्रयोग का भी प्रचलन शुरू हुआ। उन्होंने सशक्त नौसेना भी तैयार कर रखी थी। भारतीय नौसेना का उन्हें जनक कहा जाता है।
शिवाजी धर्मनिष्ठ हिन्दु थे परंतु वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे। वे संतों की बहुत श्रद्धा करते थे विशेष रूप से समर्थ रामदास का जिन्हें उन्होंने पराली का किला दिया जिसका नाम बाद में सज्जनगढ़ रखा गया। रामदास लिखित शिवस्तुति (महाराज शिवाजी की प्रशंसा) बहुत प्रख्यात है। शिवाजी जबरदस्ती धर्म परिवर्तन का विरोध करते थे। वे स्त्रीयों के प्रति मानवता रखते थे। शिवाजी की सेना में कई मुसलमान सैनिक भी थे। सिद्दी इब्राहिम उनके तोपों के प्रमुख थे।
शिवाजी महाराज हमेशा कहा करते थे :-
अगर मनुष्य के पास आत्मबल है, तो वो समस्त संसार पर अपने हौसले से विजय पताका लहरा सकता है।
मृत्यु :- मार्च 1680 के अंत में शिवाजी को बुखार हो गयी। 3-5 अप्रैल के करीब 52 वर्ष की उम्र उन्होने इस दुनिया से अलविदा कर गये। शिवाजी महाराज भले ही इस दुनिया मे नही रहे, परंतु आज भी उनकी गनिमी कावा को विलोभनियतासे और आदरसहित याद किया जाता है।
अच्छी ज्ञान की ओर से >> छत्रपती शिवाजी महाराज की जय <<
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