चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जीवनी | Chakravarti Rajagopalachari Biography

C. Rajagopalachari – चक्रवर्ती राजगोपालाचारी एक वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। वे स्वतन्त्र भारत के द्वितीय गवर्नर जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल थे। उन्होंने अपने जीवन में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर बाद तक देश की सेवा करने के लिए इन्हें भारत का सर्वश्रेष्ठ नागरिक पुरस्कार भारत रत्न 1954 में दिया गया। राजगोपालाचारी को आधुनिक भारत के इतिहास का ‘चाणक्य’ माना जाता है।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जीवनी | Chakravarti Rajagopalachari Biographyचक्रवर्ती राजगोपालाचारी का परिचय – Chakravarti Rajagopalachari Biography in Hindi

पूरा नाम चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (Chakravarti Rajagopalachari)
अन्य नाम  राजाजी (Rajaji)
जन्म दिनांक 10 दिसंबर, 1878
जन्म भूमि मद्रास (अब तमिलनाडु)
मृत्यु 28 दिसम्बर, 1972
पिता का नाम चक्रवर्ती वेंकटआर्यन
माता का नाम सिंगारम्मा
कर्म-क्षेत्र राजनीति
नागरिकता भारतीय
शिक्षा वकालत
प्रसिद्धि के कारण स्वतन्त्रता सेनानी, क्रान्तिकारी, पत्रकार, समाजसुधारक, शिक्षा विशेषज्ञ, भारतीय गवर्नर जनरल

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (Chakravarti Rajagopalachari) प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण ‘राजाजी’ के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। वे महान् स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और गांधीवादी थे। उनकी बुद्धि चातुर्य और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी और सरदार पटेल जैसे अनेक उच्चकोटि के कांग्रेसी नेता भी उनकी प्रशंसा करते नहीं अघाते थे। वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में एक महत्वपूर्ण नेता के साथ-साथ मद्रास प्रेसीडेंसी के प्रमुख, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल, भारत के गृह मंत्री और मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे।

प्रारंभिक जीवन – Early Life of C. Rajagopalachari

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर, 1878 को मद्रास (तमिलनाडु) के सेलम ज़िले के होसूर के पास ‘धोरापल्ली’ नामक गांव में हुआ था। उनका जन्म एक धार्मिक आएंगर परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम चक्रवर्ती वेंकटआर्यन और माता का नाम सिंगारम्मा था। उनके पिता सेलम के न्यायालय में न्यायधीश के पद पर कार्यरत थे। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी बचपन में शारीरिक रूप से बहुत कमजोर थे।

शिक्षा – Education 

राजगोपालाचारी जी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही एक स्कूल से प्राप्त करने के बाद आर. वी. गवर्नमेंट बॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल में दाखिला लिया। उन्होंने बैंगलोर के सैंट्रल कॉलेज इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बी.ए. और वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की।

वकालत

वकालत की डिग्री पाने के पश्चात् वे सेलम में ही वकालत करने लगे। अपनी योग्यता और प्रतिभा के बल पर उनकी गणना वहां के प्रमुख वकीलों में की जाने लगी। वकालत के दौरान प्रसिद्ध राष्ट्रवादी बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और सालेम नगर पालिका के सदस्य और फिर अध्यक्ष चुने गए।

राजनितिक जीवन – C. Rajagopalachari Career

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी राजनितिक में आने के बाद राष्ट्रिय कांग्रेस के सदस्य बन गए और धीरे-धीरे इसकी गतिविधियों और आंदोलनों में भाग लेने लगे। 1919 में गाँधी जी ने रॉलेक्ट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ किया। इसी समय राजगोपालाचारी गाँधी जी के सम्पर्क में आये और उनके राष्ट्रीय आन्दोलन के विचारों से प्रभावित हुए। गाँधी जी ने पहली भेंट में उनकी प्रतिभा को पहचाना और उनसे मद्रास में सत्याग्रह आन्दोलन का नेतृत्व करने का आह्वान किया। उन्होंने पूरे जोश से मद्रास सत्याग्रह आन्दोलन का नेतृत्व किया और गिरफ्तार होकर जेल गये।

जेल से छूटते ही चक्रवर्ती ने अपनी वकालत और तमाम सुख सुविधाओं को त्याग दिया और पूर्ण रूप से देश के स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित हो गये। सन् 1921 में गाँधी जी ने नमक सत्याग्रह आरंभ किया। इसी वर्ष वह कांग्रेस के सचिव भी चुने गये। जब महात्मा गाँधी स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रीय हुए तब राजगोपालाचारी उनके अनुगामी बन गए।

चक्रवर्ती जी की सूझबूझ और राजनीतिक कुशलता का उदाहरण देखने को मिलता है, जब 1931-32 में हरिजनों के पृथक् मताधिकार को लेकर गाँधी जी और भीमराव अंबेडकर के बीच मतभेद उत्पन्न हो गये थे। एक ओर जहाँ गाँधी जी इस संदर्भ में अनशन पर बैठ गये थे, वहीं अंबेडकर भी पीछे हटने को तैयार नहीं थे। उस समय चक्रवर्ती ने उन दोंनों के बीच बड़ी ही चतुराई से समझौता कराकर विवाद को शांत कराया था।

राजनीति के साथ-साथ ही राजगोपालचारी ने भारतीय जात-पात के आडंबर पर भी गहरा चोट किया। कई मंदिरों में जहां दलित समुदाय का मंदिर में जाना वर्जित था, इन्होंने इस नियम का डटकर विरोध किया। इसके कारण मंदिरों में दलितों का प्रवेश संभव हो सका।

1937 में हुवे चुनाव के बाद मद्रास प्रेसीडेंसी में राजगोपालाचारी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी। 1938 में इन्होंने एग्रीकल्चर डेट रिलीफ एक्ट कानून बनाया ताकि किसानों को कर्ज से राहत मिल सके। दूसरे विश्व में भारत को शामिल करने के विरोध में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्हें दिसम्बर 1940 में गिरफ्तार कर एक साल के लिए जेल भेज दिया गया।

जेल से छूटने के बाद राजगोपालचारी को कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी के रूप में भी चुना गया। अंतिम गवर्नर माउंटबेटन के बाद राजगोपालचारी भारत के पहले गवर्नर बने थे। 1950 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार में इन्हें गृहमंत्री भी बनाया गया। 1952 में राजगोपालचारी ने मद्रास के मुख्यमंत्री के रूप में थपथ ली। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी पश्चिम बंगाल का प्रथम राज्यपाल भी रहे थे।

प्रधानमंत्री नेहरु के साथ कई सारे मुद्दों पर मतभेद होने के कारण अंततः उन्होंने अपने पदों से इस्तीफ़ा दे दिया और मद्रास चले गए। कांग्रेस से अलग होकर इन्होंने अपनी एक अलग पार्टी बनाई, जिसका नाम ‘एंटी कांग्रेस स्वतंत्र पार्टी’ रखा गया। बाद में उन्होंने कुछ समय के लिए सक्रीय राजनीति से सन्यास ले लिया और लेखन के कार्य में लग गए।

निजी जीवन – Personal Life of Chakravarti Rajagopalachari 

राजनीतिक कामों के अलावा इन्होंने संस्कृत ग्रंथ ‘रामायण’ का तमिल में अनुवाद किया। राजगोपालचारी तमिल के साथ-साथ अंग्रेजी के भी बेहतरीन लेखक थे। इन्होंने सलेम लिटरेरी सोसाइटी के संस्थापक थे।  अपने कारावास के समय के बारे में उन्होंने ‘मेडिटेशन इन जेल’ के नाम से किताब भी लिखी। उनकी लिखी अनेक कहानियाँ उच्च स्तरीय थीं। ‘स्वराज्य’ नामक पत्र उनके लेख निरंतर प्रकाशित होते रहते थे। सन 1958 में उन्हें उनकी पुस्तक ‘चक्रवर्ती थिरुमगन’ के लिए तमिल भाषा का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का विवाह वर्ष 1897 में अलामेलु मंगम्मा के साथ संपन्न हुआ। राजगोपालाचारी दंपत्ति के कुल पांच संताने हुईं – तीन पुत्र और दो पुत्रियाँ। मंगम्मा सन 1916 में स्वर्ग सिधार गयीं जिसके बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी अपने बच्चों के पालन-पोषण का भार संभाला। राजगोपालाचारी के पुत्री लक्ष्मी का विवाह महात्मा गाँधी के बेटे देवदास गाँधी के साथ हुआ था।

मृत्यु – C. Rajagopalachari Death 

1972 के आखिरी महीनो में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और 17 दिसम्बर को उन्हें मद्रास गवर्नमेंट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहाँ उनका 25 दिसम्बर 1972 को निधन हो गया। इस महापुरुष को भारत सरकार ने सन 1955 में ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया था।

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