Bhisham Sahni – बहुमुखी प्रतिभा के धनी भीष्म साहनी आम लोगों की आवाज उठाने और हिंदी के महान लेखक प्रेमचंद की जनसमस्याओं को उठाने की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले साहित्यकार के तौर पर पहचाने जाते हैं। वे आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से थे। साहनी जी एक ऐसे साहित्यकार थे जो बात को केवल कह देना ही नहीं बल्कि बात की सच्चाई और गहराई को नाप लेना भी उतना ही उचित समझते थे। वे एक प्रसिद्ध हिंदी लेखक, नाटककार और कलाकार थे।
भीष्म साहनी का परिचय – Bhisham Sahni Biography in Hindi Language
नाम | भीष्म साहनी (Bhisham Sahni) |
जन्म दिनांक | 8 अगस्त 1915 |
जन्म स्थान | रावलपिण्डी (पाकिस्तान) |
मृत्यु | 11 जुलाई 2003 |
पिता का नाम | श्री हरबंस लाल साहनी |
माता | श्रीमती लक्ष्मी देवी |
पत्नी | शीला जी |
कार्य क्षेत्र | साहित्य |
नागरिकता | भारतीय |
भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत, पंजाबी |
प्रसिद्द रचनाये | ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’, ‘झरोखे’, ‘तमस’, ‘बसन्ती’, ‘मायादास की माड़ी’, ‘हानुस’, ‘कबीरा खड़ा बाज़ार में’, ‘भाग्य रेखा’, ‘पहला पाठ’, ‘भटकती राख’ आदि। |
भीष्म साहनी अपने साहित्य के माध्यम से सामाजिक विषमता व संघर्ष के बन्धनों को तोड़कर आगे बढ़ने का आह्वाहन करते थे। उनके साहित्य में सर्वत्र मानवीय करूणा, मानवीय मूल्य व नैतिकता विद्यमान है। उनके उपन्यास तमस पर 1986 में एक फिल्म भी बन चुका हैं। 1998 में साहित्य में उनके योगदान को देखने हुए उन्हें पद्म भुषम अवार्ड से सम्मानित और 2002 में साहित्य अकादमी शिष्यवृत्ति प्रदान की गयी।
प्रारंभिक जीवन – Early Life of Bhisham Sahni
भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त 1915 को रावलपिण्डी (पाकिस्तान) में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। विभाजन के बाद वह भारत आ गए। वह अपने पिता श्री हरबंस लाल साहनी तथा माता श्रीमती लक्ष्मी देवी की सांतवी संतान थे। भीष्म साहनी हिन्दी फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई। पिता के समाजसेवी व्यक्तित्व का इन पर काफ़ी प्रभाव था। इस विरासत को उन्होंने भी आगे बढ़ाया।
1935 में लाहौर के गवर्नमेंट कालेज से अंग्रेजी विषय में एम.ए की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होने डॉ इन्द्रनाथ मदान के निर्देशन में ‘Concept of the hero in the novel’ शीर्षक के अन्तर्गत अपना शोधकार्य सम्पन्न किया। 1942 के भारत छोडो आंदोलन में वे शामिल हुए और इसके चलते कुछ समय तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। सन् 1944 में उनका विवाह शीला जी के साथ हुआ।
कार्यक्षेत्र – Bhisham Sahni History
भारत पाकिस्तान विभाजन के पहले अवैतनिक शिक्षक होने के साथ-साथ ये बिज़्नेस भी करते थे। विभाजन के बाद उन्होंने भारत आकर समाचारपत्रों में लिखने का काम किया। बाद में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जा मिले। इसके पश्चात अंबाला और अमृतसर में भी अध्यापक रहने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर बने।
उन्हें पंजाबी, हिंदी, और उर्दू भाषा में अच्छा ज्ञान था, इसके साथ-साथ उन्हें संस्कृत और रशियाई भाषा की भी अच्छी पकड़ थी। 1957 से 1963 तक मास्को में विदेशी भाषा प्रकाशन गृह (Foreign Language Publishing House) में अनुवादक के काम में कार्यरत रहे। यहां उन्होंने करीब दो दर्जन रूसी किताबें जैसे टालस्टॉय आस्ट्रोवस्की इत्यादि लेखकों की किताबों का हिंदी में रूपांतर किया।
उनकी पहली कहानी ‘अबला’ इण्टर कालेज की पत्रिका ‘रावी’ में तथा दूसरी कहानी ‘नीली ऑंखे’ अमृतराय के सम्पादकत्व में ‘हंस’ में छपी। साहनी जी के ‘झरोखे’, ‘कड़ियाँ’, ‘तमस’, ‘बसन्ती’, ‘मय्यादास की माड़ी’, ‘कुंतो’, ‘नीलू नीलिमा नीलोफर’ नामक उपन्यासो के अतिरिक्त भाग्यरेखा, पटरियाँ, पहला पाठ, भटकती राख, वाड।चू, शोभायात्रा, निशाचर, पाली, प्रतिनिधि कहानियाँ व मेरी प्रिय कहानियाँ नामक दस कहानी संग्रहों का सृजन किया।
नाटको के क्षेत्र में भी उन्होने हानूश, कबिरा खड़ा बाजार में, माधवी मुआवजे जैसे प्रसिद्धि प्राप्त नाटक लिखे। जीवनी साहित्य के अन्तर्गत उन्होने मेरे भाई बलराज, अपनी बात, मेंरे साक्षात्कार तथा बाल साहित्य के अन्तर्गत ‘वापसी’ ‘गुलेल का खेल’ का सृजन कर साहित्य की हर विधा पर अपनी कलम अजमायी। अपनी मृत्यु के कुछ दिन पहले उन्होने ‘आज के अतीत’ नामक आत्मकथा का प्रकाशन करवाया।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहनी ने नाटकों के अलावा फिल्मों में भी काम किया है। मोहन जोशी हाजिर हो, कस्बा के अलावा मिस्टर एंड मिसेज अय्यर फिल्म में उन्होंने अभिनय किया। साहनी की कृति पर आधारित धारावाहिक ‘तमस’ काफी चर्चित रहा था।
भीष्म साहनी ने दबे कुचले और समाज के पिछड़े लोगों की समस्याओं को आसान भाषा में अत्यंत सटीक तरीके से अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त किया है। यही वजह है कि उन्हें प्रेमचंद की परंपरा का साहित्यकार कहा जाता है।’
निधन –
बेहद सादगी पंसद रचनाकार और दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर साहनी को पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज उठाने वाले इस लेखक का 11 जुलाई सन् 2003 को इनका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया।
इसके आलावा उन्होंने और भी कई सम्मान और पुरूस्कार मिले थे। मरणोपरांत 1 मई 2017 को भारतीय डाक ने साहनी के सम्मान में उनके नाम का एक पोस्टेज स्टेम्प भी जारी किया है।
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