Alauddin Khilji in Hindi/ अलाउद्दीन ख़िलजी (1296-1316 ई.) दिल्ली का सुल्तान था। वह ख़िलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन ख़िलजी का भतीजा और दामाद था। उस समय खिलजी साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली शासक अलाउद्दीन खिलजी ही था। अलाउद्दीन ने अपने चाचा जलालुद्दीन फिरुज ख़िलजी की हत्या कर, उनकी राजगद्दी हथ्यान ली। अलाउद्दीन खिलजी का पूरा नाम अली गुरशास्प उर्फ़ जूना खान खिलजी था।
अलाउद्दीन खिलजी का आरम्भिक जीवन – Alauddin Khilji Biography in Hindi
अलाउद्दीन का जन्म 1250 में बंगाल के बीरभूम जिले में हुआ था, उनका नाम जुना मोहम्मद खिलजी रखा गया था। इनके पिता शाहिबुद्दीन मसूद थे, जो खिलजी राजवंश के पहले सुल्तान जलालुद्दीन फिरुज खिलजी के भाई थे। बचपन से ही अलाउद्दीन को अच्छी शिक्षा नहीं मिली थी, लेकिन वे शक्तिशाली और महान योध्या बनके सामने आये।
बचपन में पिता के देहांत के बाद, अलाउद्दीन का पालन-पोषण उनके चाचा जलालुद्दीन खिलजी के द्वारा किया गया। जलालुद्दीन ने अपनी बेटीयों की शादी अलाउद्दीन और उनके छोटे भाई अलमास बेग के साथ करवाई थी। जब जलालुद्दीन दिल्ली के सुल्तान बने, तो उन्होंने अलाउद्दीन को कई महत्वपूर्ण पदों में रखा। अलाउद्दीन ने दूसरी विवाह भी की थी जिसका नाम “महरू” था।
बादशाह जलालुद्दीन के साथ विश्वासघात करना आसान काम नहीं था, क्योंकि इसके लिए उन्हें एक बड़ी सेना और हथियारों के लिए पैसे की आवश्यकता थी। इसके लिए अलाउद्दीन ने पहले बादशाह का दिल जीता और अपनी सम्पति में भी इजाफा की। सुल्तान बनने के पहले उसे इलाहाबाद के निकट कड़ा की जागीर दी गयी थी। 20 जुलाई 1296 को जब जलालुद्दीन ने गंगा नदी के किनारे अलाउद्दीन से मुलाकात की तब अलाउद्दीन ने विश्वासघात करते हुवे अपने चाचा जलालुद्दीन को गले लगाते समय उनकी पीठ पर चाकू से वार कर दिया और उनकी मृत्यु के बाद खुद को दिल्ली का नया सुल्तान घोषित कर दिया।
अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास – Alauddin Khilji History in Hindi
अलाउद्दीन खिलजी के तख्त पर बैठने के बाद उसे ‘अमीर-ए-तुजुक’ का पद मिला। मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण जलालुद्दीन ने उसे कड़ा-मनिकपुर की सूबेदारी सौंप दी। भिलसा, चंदेरी एवं देवगिरि के सफल अभियानों से प्राप्त अपार धन ने उसकी स्थिति और मज़बूत कर दी। इस प्रकार उत्कर्ष पर पहुँचे अलाउद्दीन ख़िलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या 22 अक्टूबर, 1296 को कर दी और दिल्ली में स्थित बलबन के लाल महल में अपना राज्याभिषेक सम्पन्न करवाया।
राज्याभिषेक के बाद उत्पन्न कठिनाईयों का सफलता पूर्वक सामना करते हुए अलाउद्दीन ने कठोर शासन व्यवस्था के अन्तर्गत अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार करना प्रारम्भ किया। अपनी प्रारम्भिक सफलताओं से प्रोत्साहित होकर अलाउद्दीन ने ‘सिकन्दर द्वितीय’ (सानी) की उपाधि ग्रहण कर इसका उल्लेख अपने सिक्कों पर करवाया। उसने विश्व-विजय एवं एक नवीन धर्म को स्थापित करने के अपने विचार को अपने मित्र एवं दिल्ली के कोतवाल ‘अलाउल मुल्क’ के समझाने पर त्याग दिया। यद्यपि अलाउद्दीन ने ख़लीफ़ा की सत्ता को मान्यता प्रदान करते हुए ‘यामिन-उल-ख़िलाफ़त-नासिरी-अमीर-उल-मोमिनीन’ की उपाधि ग्रहण की, किन्तु उसने ख़लीफ़ा से अपने पद की स्वीकृत लेनी आवश्यक नहीं समझी। उलेमा वर्ग को भी अपने शासन कार्य में हस्तक्षेप नहीं करने दिया। उसने शासन में इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों को प्रमुखता न देकर राज्यहित को सर्वोपरि माना। अलाउद्दीन ख़िलजी के समय निरंकुशता अपने चरम सीमा पर पहुँच गयी। अलाउद्दीन ख़िलजी ने शासन में न तो इस्लाम के सिद्धान्तों का सहारा लिया और न ही उलेमा वर्ग की सलाह ली।
वे पहले मुस्लिम शासक थे, जिन्होंने दक्षिण भारत में अपना साम्राज्य फैलाया था, और जीत हासिल की थी। विजय के लिए उनका जुनून ही उन्हें युद्ध में सफलता दिलाता था, जिससे दक्षिण भारत में उनका प्रभाव बढ़ता गया। और उनके साम्राज्य का विस्तार बढ़ता गया। खिलजी की बढ़ती ताकत के साथ, उनके वफादारों की भी संख्या बढ़ती गई। खिलजी के साम्राज्य में उनके सबसे अधिक वफादार जनरल थे मलिक काफूर और खुश्रव खान। दक्षिण भारत में खिलजी का बहुत आतंक था, वहां के राज्यों में ये लूट मचाया करते थे, और वहां के जो शासक इनसे हार जाते थे, उनसे खिलजी वार्षिक कर लिया करते थे।
वे एक महत्व्कंशी और युद्धोंतेजक शासक थे। अलाउद्दीन खुद को “दूसरा एलेग्जेंडर” कहते थे। उन्हें “सिकंदर-ए-शाही” का औधा (की उपाधि) भी दिया गया था। अपने साम्राज्य में उन्होंने खुले में मदिरा के सेवन करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासनकाल के दौरान कई विजय अभियान किये, जिनमे से प्रमुख में शामिल है उसके सेनापतियों नुसरत खान और उलूग खान द्वारा 1297 ईस्वी में गुजरात की लूट, जिसमे उन्होंने न सिर्फ सोमनाथ मंदिर लूटा बल्कि पवित्र शिवलिंग भी खंडित कर दिया था।
यहीं अल्लाउद्दीन खिलजी, जो माना जाता है कि समलैंगिक था, ने मालिक काफूर नामक एक दास लड़का खरीदा, जो बाद में खिलजी का प्रेमी और सेनानायक बना और उसे भविष्य में कई लड़ाइयों में मदद की।
अल्लाउद्दीन की अगली मुख्य चढ़ाई रणथम्बोर में हम्मीर देवा के खिलाफ थी, जिसने अल्लाउदीन के बाग़ी सेनानायक मुहम्मद शाह को पनाह दी थी। 1299 में एक असफल प्रयास के बाद, 1301 ईसवी में अलाउद्दीन ने किले और हम्मीर के खिलाफ स्वयं एक विजयी अभियान का नेतृत्व किया, जिसमे हम्मीर को उसी के सेनानायकों रतिपाल और रणमल ने धोखा दिया। साथ ही साथ, 1297 से 1305 ईस्वी में खिलजी वंश ने सफलतापूर्वक कई मंगोल हमलों को नाकाम किया, लेकिन 1299 ईस्वी में जफर खान नामक एक समर्पित सेनानायक को खो दिया, जिसकी वीरता निष्कलंक थी।
कहा जाता है की चित्तोड़ की रानी पद्मिनी को पाने के लिए उन्होंने 1303 में चित्तोड़ पर आक्रमण किया था। इस युद्ध का लेखक मलिक मुहम्मद जायसी ने अवधी भाषा में 1540 में अपनी कविता पद्मावत में उल्लेख किया है।
अल्लाउद्दीन ने 1305 में मालवा और 1308 में राजस्थान के सिवाना किले सहित उत्तर में कई साम्राज्यों पर कब्ज़ा किया। इस प्रकार, अपने साम्राज्य के विस्तार की चाह के साथ, खिलजी ने दक्षिण का रुख किया। अपने सेनानायक मालिक काफूर की सहायता से खिलजी ने आगे प्रस्थान किया।
प्रायद्वीपीय भारत गवाह रहा मदुरै के विनाश का, 1310 ईसवी में द्वारासमुद्र के होयसला साम्राज्य और 1311 ईसवी में पंड्या साम्राज्य पर आक्रमण का और साथ ही साथ 1313 ईस्वी में दिल्ली के लिए देवगिरी अनुबंध का।
अलाउद्दीन खिलजी एक शक्तिशाली मिलिट्री कमांडर था जो भारतीय उपमहाद्वीप में सेना की देखरेख करता था। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को इतिहास के उन शासको में गिना जाता है जिन्होंने मंगोल आक्रमण से अपने राज्य की रक्षा की थी। उन्होंने विशाल और शक्तिशाली मंगोल सेना को पराजित किया था।
उनके साम्राज्य की सीमा – इतिहासिक जानकारों के अनुसार उनके राज्य में हुए युद्ध को देखकर यह कहा जा सकता है की अलाउद्दीन का साम्राज्य सिमित था। उत्तर-पश्चिमी तरफ पंजाब और सिंध उन्ही के नियंत्रण में थे और अपने सम्राज्य की सीमा भी निर्धारित की। उनका ज्यादातर साम्राज्य गुजरात, उत्तर प्रदेश, मालवा और राजपुताना क्षेत्र में था।
अलाउद्दीन ख़िलजी के राज्य में कुछ विद्रोह भी हुए, जिनमें 1299 ई. में गुजरात के सफल अभियान में प्राप्त धन के बंटवारे को लेकर ‘नवी मुसलमानों’ द्वारा किये गये विद्रोह का दमन नुसरत ख़ाँ ने किया। दूसरा विद्रोह अलाउद्दीन के भतीजे अकत ख़ाँ द्वारा किया गया। अपने मंगोल मुसलमानों के सहयोग से उसने अलाउद्दीन पर प्राण घातक हमला किया, जिसके बदलें में उसे पकड़ कर मार दिया गया। तीसरा विद्रोह अलाउद्दीन की बहन के लड़के मलिक उमर एवं मंगू ख़ाँ ने किया, पर इन दोनों को हराकर उनकी हत्या कर दी गई। चौथा विद्रोह दिल्ली के हाजी मौला द्वारा किया गया, जिसका दमन सरकार हमीद्दीन ने किया। इस प्रकार इन सभी विद्रोहों को सफलता पूर्वक दबा दिया गया।
अलाउद्दीन ने तुर्क अमीरों द्वारा किये जाने वाले विद्रोह के कारणों का अध्ययन कर उन कारणों को समाप्त करने के लिए 4 अध्यादेश जारी किये। प्रथम अध्यादेश के अन्तर्गत अलाउद्दीन ने दान, उपहार एवं पेंशन के रूप मे अमीरों को दी गयी भूमि को जब्त कर उस पर अधिकाधिक कर लगा दिया, जिससे उनके पास धन का अभाव हो गया। द्वितीय अध्याधेश के अन्तर्गत अलाउद्दीन ने गुप्तचर विभाग को संगठित कर ‘बरीद’ (गुप्तचर अधिकारी) एवं ‘मुनहिन’ (गुप्तचर) की नियुक्ति की। तृतीय अध्याधेश के अन्तर्गत अलाउद्दीन ख़िलजी ने मद्यनिषेद, भाँग खाने एवं जुआ खेलने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया। चौथे अध्यादेश के अन्तर्गत अलाउद्दीन ने अमीरों के आपस में मेल-जोल, सार्वजनिक समारोहों एवं वैवाहिक सम्बन्धों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। सुल्तान द्वारा लाये गये ये चारों अध्यादेश पूर्णतः सफल रहे। अलाउद्दीन ने खूतों, मुक़दमों आदि हिन्दू लगान अधिकारियों के विशेषाधिकार को समाप्त कर दिया।
अलाउद्दीन खिलजी के जीवन के अंतिम दिन काफी दर्दभरे थे। उनकी अक्षमता का फायदा लेते हुए कमांडर मलिक काफूर (Malik Kafur) ने पूरा साम्राज्य हथिया लिया। उस समय वे निराश और कमजोर हो गए थे और 1316 में ही उनकी मृत्यु हो गयी थी। खिलजी वंश के अनेक योगदानों में प्रमुख फारसी कवि और अलाउद्दीन की राजसभा के पुरस्कार विजेता अमीर खुसरो की कृतियाँ प्रसिद्ध है। खुसरो ने नये रागों, ताल और वाद्ययंत्रो के निर्माण में योगदान दिया और हिंदुस्तानी संगीत की नींव रखी।
Alauddin Khilji Facts in Hindi
- अपने शासनकाल के दौरान, अलाउद्दीन पहले मुस्लिम शासक थे, जिन्होंने दक्षिण भारत में अपना साम्राज्य फैलाया था। उन्होंने रणथम्भोर, गुजरात, मेवाड़, जालोर, मालवा, मबर, वारंगल और मदुरई पर विजय प्राप्त की।
- इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी के अनुसार, अलाउद्दीन के सुल्तान बनने के बाद उस समय तक पहला वर्ष सबसे खुशहाल वर्ष रहा, जिसे दिल्ली के लोगो ने पहले कभी नहीं देखा था।
- दिल्ली पर तुर्कों की हुक़ूमत की शुरुआत के बाद से खिलजी वंश ने ही हिंदुस्तान के लोगों को भी हुक़ूमत में शामिल किया। खिलजी वंश से पहले दिल्ली पर शासन करने वाले सुल्तान जिनमें इल्तुतमिश, बलबन और रज़िया सुल्तान भी शामिल हैं अपनी सरकार में स्थानीय लोगों को शामिल नहीं करते थे। सिर्फ़ तुर्कों को ही अहम ओहदे दिए जाते थे इसलिए उसे तुर्क शासन कहा जाता था।
- अलाउद्दीन ऐसे शासक थे जिन्होंने हर बार मंगोलो को हराया। उन्होंने मंगोल को जालंधर (1298), किली (1299), अमरोहा (1305) और रवि (1306) की लड़ाइयों में हराया।
- खिलजी के साम्राज्य में उनके सबसे अधिक वफादार जनरल थे मलिक काफूर और खुश्रव खान था। लेकिन आखिरी समय मालिक काफूर ने धोखा दिया और राज्य ले ली।
- वर्ष 1302-1303 में अलाउद्दीन ने चित्तौड़ (रत्नसिम्हा द्वारा शासित गुहाला राज्य की राजधानी) पर हमला किया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर हमला इसलिए किया। क्योंकि वह रावल रतन सिंह रतनसिंह की सुंदर पत्नी पद्मावती पर मोहित हो गए थे। हालांकि, आधुनिक इतिहासकारों ने इस कहानी की प्रामाणिकता को खारिज कर दिया है। इन्ही पर भारत में एक फिल्म भी बन चुकी हैं।
- अपने जीवन के आखरी वर्षो के दौरान वह एक बीमारी से पीड़ित थे। उनका अपने अधिकारियों पर से विश्वास खत्म हो गया, और उन्होंने अपने कई वफादार अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया।
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