जिस तरह दुनिया में आने वाला हर इंसान अपने जन्म से पहले ही अपनी मृत्यु की तारीख यम लोक में निश्चित करके आता है। उसी तरह इंसान रूप में जन्म लेने वाले भगवान के अवतारों का भी इस धरती पर एक निश्चित समय था, वो समय समाप्त होने के बाद उन्हें भी मृत्यु का वरण करके अपने लोक वापस लौटना पड़ा था। लेकिन इंसान और ईश्वर के भीतर एक बड़ा अंतर है। इसलिए हम भगवान के लिए मरना शब्द कभी इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि इसके स्थान पर उनका इस ‘दुनिया से चले जाना’ या ‘लोप हो जाना’, इस तरह के शब्दों का उपयोग करते हैं।
Bhagwan Ram ki Mrityu Kaise Hui
आज हम जानेंगे की भगवान श्री राम कैसे इस लोक को छोड़कर वापस विष्णुलोक गए। हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के महान अवतार प्रभु राम के इस दुनिया से चले जाने की कहानी काफी रोचक है। आखिर भगवान राम धरती लोक से विष्णु लोक में कैसे गए इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
भगवान विष्णु के कई अवतारों ने विभिन्न युग में जन्म लिया। यह अवतार भगवान विष्णु द्वारा संसार की भलाई के लिए लिए गए थे। भगवान विष्णु द्वारा कुल 10 अवतारों की रचना की गई थी, जिसमें से भगवान राम सातवें अवतार माने जाते हैं। यह अवतार भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और पूजनीय माना जाता है। भगवान श्री राम की मुक्ति से पूर्व यदि हम उनके जीवनकाल पर नजर डालें तो प्रभु राम ने पृथ्वी पर 10 हजार से भी ज्यादा वर्षों तक राज किया है।
पद्म पुराण में दर्ज एक कथा के अनुसार, एक दिन एक वृद्ध संत भगवान राम के दरबार में पहुंचे और उनसे अकेले में चर्चा करने के लिए निवेदन किया। उस संत की पुकार सुनते हुए प्रभु राम उन्हें एक कक्ष में ले गए और द्वार पर अपने छोटे भाई लक्ष्मण को खड़ा किया और कहा कि यदि उनके और उस संत की चर्चा को किसी ने भंग करने की कोशिश की तो उसे मृत्युदंड प्राप्त होगा।
लक्ष्मण ने अपने ज्येष्ठ भ्राता की आज्ञा का पालन करते हुए दोनों को उस कमरे में एकांत में छोड़ दिया और खुद बाहर पहरा देने लगे। वह वृद्ध संत कोई और नहीं बल्कि विष्णु लोक से भेजे गए काल देव थे जिन्हें प्रभु राम को यह बताने भेजा गया था कि उनका धरती पर जीवन पूरा हो चुका है और अब उन्हें अपने लोक वापस लौटना होगा।
अभी उस संत और श्रीराम के बीच चर्चा चल ही रही थी कि अचानक द्वार पर ऋषि दुर्वासा आ गए। उन्होंने लक्ष्मण से भगवान राम से बात करने के लिए कक्ष के भीतर जाने के लिए निवेदन किया लेकिन श्रीराम की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण ने उन्हें ऐसा करने से मना किया। ऋषि दुर्वासा हमेशा से ही अपने अत्यंत क्रोध के लिए जाने जाते हैं, जिसका खामियाजा हर किसी को भुगतना पड़ता है, यहां तक कि स्वयं श्रीराम को भी।
लक्ष्मण के बार-बार मना करने पर भी ऋषि दुर्वासा अपनी बात से पीछे ना हटे और अंत में लक्ष्मण को श्री राम को श्राप देने की चेतावनी दे दी। अब लक्ष्मण की चिंता और भी बढ़ गई। वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार अपने भाई की आज्ञा का पालन करें या फिर उन्हें श्राप मिलने से बचाएं।
लक्ष्मण हमेशा से अपने ज्येष्ठ भाई श्री राम की आज्ञा का पालन करते आए थे। पूरे रामायण काल में वे एक क्षण भी श्रीराम से दूर नहीं रहे। यहां तक कि वनवास के समय भी वे अपने भाई और सीता के साथ ही रहे थे और अंत में उन्हें साथ लेकर ही अयोध्या वापस लौटे थे। ऋषि दुर्वासा द्वारा भगवान राम को श्राप देने जैसी चेतावनी सुनकर लक्ष्मण काफी भयभीत हो गए और फिर उन्होंने एक कठोर फैसला लिया।
लक्ष्मण कभी नहीं चाहते थे कि उनके कारण उनके भाई को कोई किसी भी प्रकार की हानि पहुंचा सके। इसलिए उन्होंने अपनी बलि देने का फैसला किया। उन्होंने सोचा यदि वे ऋषि दुर्वासा को भीतर नहीं जाने देंगे तो उनके भाई को श्राप का सामना करना पड़ेगा, लेकिन यदि वे श्रीराम की आज्ञा के विरुद्ध जाएंगे तो उन्हें मृत्यु दंड भुगतना होगा, यही लक्ष्मण ने सही समझा।
वे आगे बढ़े और कमरे के भीतर चले गए। लक्ष्मण को चर्चा में बाधा डालते देख श्रीराम ही धर्म संकट में पड़ गए। अब एक तरफ अपने फैसले से मजबूर थे और दूसरी तरफ भाई के प्यार से निस्सहाय थे। उस समय श्रीराम ने अपने भाई को मृत्यु दंड देने के स्थान पर राज्य एवं देश से बाहर निकल जाने को कहा। उस युग में देश निकाला मिलना मृत्यु दंड के बराबर ही माना जाता था।
लेकिन लक्ष्मण जो कभी अपने भाई राम के बिना एक क्षण भी नहीं रह सकते थे उन्होंने इस दुनिया को ही छोड़ने का निर्णय लिया। वे सरयू नदी के पास गए और संसार से मुक्ति पाने की इच्छा रखते हुए वे नदी के भीतर चले गए। इस तरह लक्ष्मण के जीवन का अंत हो गया और वे पृथ्वी लोक से दूसरे लोक में चले गए। लक्ष्मण के सरयू नदी के अंदर जाते ही वह अनंत शेष के अवतार में बदल गए और विष्णु लोक चले गए।
अपने भाई के चले जाने से श्री राम काफी उदास हो गए। जिस तरह राम के बिना लक्ष्मण नहीं, ठीक उसी तरह लक्ष्मण के बिना राम का जीना भी प्रभु राम को उचित ना लगा। उन्होंने भी इस लोक से चले जाने का विचार बनाया। तब प्रभु राम ने अपना राज-पाट और पद अपने पुत्रों के साथ अपने भाई के पुत्रों को सौंप दिया और सरयू नदी की ओर चल दिए।
वहां पहुंचकर श्री राम सरयू नदी के बिलकुल आंतरिक भूभाग तक चले गए और अचानक गायब हो गए। फिर कुछ देर बाद नदी के भीतर से भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए। इस प्रकार से श्री राम ने भी अपना मानवीय रूप त्याग कर अपने वास्तविक स्वरूप विष्णु का रूप धारण किया और वैकुंठ धाम की ओर प्रस्थान किया।
आखिर ऐसे समय में हनुमान कहाँ थे?
भगवान श्री राम के मृत्यु वरण में सबसे बड़ी बाधा उनके प्रिय भक्त हनुमान थे। क्योंकि हनुमान के होते हुए यम की इतनी हिम्मत नहीं थी की वो राम के पास पहुँच चुके। पर स्वयं श्री राम से इसका हल निकाला। आइये जानते है कैसे श्री राम ने इस समस्या का हल निकाला।
राम जान गए थे की उनकी मृत्यु का समय हो गया था। वह जानते थे कि जो जन्म लेता है उसे मरना पड़ता है। “यम को मुझ तक आने दो। मेरे लिए वैकुंठ, मेरे स्वर्गिक धाम जाने का समय आ गया है”, उन्होंने कहा। लेकिन मृत्यु के देवता यम अयोध्या में घुसने से डरते थे क्योंकि उनको राम के परम भक्त और उनके महल के मुख्य प्रहरी हनुमान से भय लगता था।
यम के प्रवेश के लिए हनुमान को हटाना जरुरी था। इसलिए राम ने अपनी अंगूठी को महल के फर्श के एक छेद में से गिरा दिया और हनुमान से इसे खोजकर लाने के लिए कहा। हनुमान ने स्वंय का स्वरुप छोटा करते हुए बिलकुल भंवरे जैसा आकार बना लिया और केवल उस अंगूठी को ढूढंने के लिए छेद में प्रवेश कर गए, वह छेद केवल छेद नहीं था बल्कि एक सुरंग का रास्ता था जो सांपों के नगर नाग लोक तक जाता था। हनुमान नागों के राजा वासुकी से मिले और अपने आने का कारण बताया।
वासुकी हनुमान को नाग लोक के मध्य में ले गए जहां अंगूठियों का पहाड़ जैसा ढेर लगा हुआ था! “यहां आपको राम की अंगूठी अवश्य ही मिल जाएगी” वासुकी ने कहा। हनुमान सोच में पड़ गए कि वो कैसे उसे ढूंढ पाएंगे क्योंकि ये तो भूसे में सुई ढूंढने जैसा था। लेकिन सौभाग्य से, जो पहली अंगूठी उन्होंने उठाई वो राम की अंगूठी थी। आश्चर्यजनक रुप से, दूसरी भी अंगूठी जो उन्होंने उठाई वो भी राम की ही अंगूठी थी। वास्तव में वो सारी अंगूठी जो उस ढेर में थीं, सब एक ही जैसी थी। “इसका क्या मतलब है?” वह सोच में पड़ गए।
वासुकी मुस्कुराए और बाले, “जिस संसार में हम रहते है, वो सृष्टि व विनाश के चक्र से गुजरती है। इस संसार के प्रत्येक सृष्टि चक्र को एक कल्प कहा जाता है। हर कल्प के चार युग या चार भाग होते हैं। दूसरे भाग या त्रेता युग में, राम अयोध्या में जन्म लेते हैं। एक वानर इस अंगूठी का पीछा करता है और पृथ्वी पर राम मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इसलिए यह सैकड़ो हजारों कल्पों से चली आ रही अंगूठियों का ढेर है। सभी अंगूठियां वास्तविक हैं। अंगूठियां गिरती रहीं और इनका ढेर बड़ा होता रहा। भविष्य के रामों की अंगूठियों के लिए भी यहां काफी जगह है”।
हनुमान जान गए कि उनका नाग लोक में प्रवेश और अंगूठियों के पर्वत से साक्षात, कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। यह राम का उनको समझाने का मार्ग था कि मृत्यु को आने से रोका नहीं जा सकेगा। राम मृत्यु को प्राप्त होंगे। संसार समाप्त होगा। लेकिन हमेशा की तरह, संसार पुनः बनता है और राम भी पुनः जन्म लेंगे।
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