गोस्वामी तुलसीदास की जीवनी | About Tulsidas Biography in Hindi

Tulsidas – तुलसीदास भारत के एक महान कवी, लेखक और समाज सुधारक थे। उनकी प्रतिभा-किरणों से न केवल हिन्दू समाज और भारत, बल्कि समस्त संसार आलोकित हो रहा है। उन्होंने अपने जीवनकाल में श्रीरामचरितमानस, हनुमान चालीसा, वैराग्य सन्दीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, संकटमोचन हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक, विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली आदि अनेक ग्रंथों की रचना की। इतना ही नहीं वे संस्कृत के विद्वान और हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं।  

About Tulsidas Biography In Hindi,

गोस्वामी तुलसीदास का परिचय – Hindi Poet Tulsidas Biography in Hindi

नाम गोस्वामी तुलसीदास (Tulsidas)
जन्म दिनांक सन 1532 (सवंत 1589)
जन्म स्थान राजापुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु सन 1623 (संवत- 1680), काशी
पिता का नाम आत्माराम दुबे
माता का नाम हुलसी
पत्नी रत्नावली
कर्म-क्षेत्र कवि, समाज सुधारक
भाषा अवधी, हिन्दी
गुरु आचार्य रामानन्द
मुख्य रचनाएँ रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा आदि

प्रारंभिक जीवन  Early Life of Tulsidas

बड़ा अफसोस है कि गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं, कुछ लोगों ने इनका जन्म स्थान सूकर क्षेत्र (गोंडा जिले) में मानते हैं, लेकिन प्रचलित रुप से तुलसीदास जी का जन्म ‘संवत 1554’ (1532 ई०) की श्रावण शुक्ल पक्ष सप्तमी को चित्रकूट जिले के ‘राजापुर ग्राम’ में माना जाता है। कुछ लोग इनका जन्म स्थान एटा जिले के सोरो नामक स्थान को मानते हैं। ये सरयूपारी ब्राम्हण थे। इनके पिता का नाम ‘आत्माराम दुबे’ तथा माता का नाम हुलसी था। इनका बचपन का नाम रामबोला था। इनके जन्म के सम्बन्ध में निम्न दोहा प्रसिद्ध है।

“ पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर |
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धरयो शरीर ||”

जन्म के समय इनके मुह में पुरे दांत थे, अंत: अशुभ मानकर माता पिता द्वारा त्याग दिये जाने के कारण इनका पालन-पोषण एक चुनियाँ नाम की दासी ने किया तथा संत नरहरिदास ने काशी में ज्ञान एंव भक्ति की शिक्षा दिए। जन्म लेते हैं इनके मुख में ‘राम’ का शब्द निकला था इसलिए लोग इन्हें ‘रामबोला’ कहने लगे। वे ब्राह्मण कुलोत्पन्न थे। इनका विवाह दीनबंधु पाठक की कन्या रत्नावली से हुआ था। वे पत्नी के प्रेम में बहुत अनुरक्त पर रहते थे। एक बार पत्नी द्वारा बिना बताये मायके चले जाने पर तुलसीदास जी अर्ध रात्रि में आंधी-तूफान का सामना करते हुए अपनी ससुराल जा पहुंचे, इन्हें वहाँ देखकर पत्नी ने इन्हें बहुत डांटा और कहा।

‘लाज न आयी आपको, दौरे आयो साथ’
“ अस्थि चर्ममय देह ऐसी प्रीति |
नेकु जो होती राम से, तो काहे भवभीत ||”

पत्नी के उपदेश से ही इनके मन में वैराग्य उत्पन हुआ। ऐसा कहा जाता है की रत्नावली के प्रेरणा से घर से विरक्त होकर तीर्थाटन के लिए निकल पडे और तन – मन से भगवान राम की भक्ति में लीन हो गए।

श्रीराम से भेंट – Darshan of Rama

कुछ काल राजापुर रहने के बाद वे पुन: काशी चले गये और वहाँ की जनता को राम-कथा सुनाने लगे। कथा के दौरान उन्हें एक दिन मनुष्य के वेष में एक प्रेत मिला, जिसने उन्हें हनुमान ‌जी का पता बतलाया। हनुमान ‌जी से मिलकर तुलसीदास ने उनसे श्रीरघुनाथजी का दर्शन कराने की प्रार्थना की। हनुमान्‌जी ने कहा- “तुम्हें चित्रकूट में रघुनाथजी दर्शन होंगें।” इस पर तुलसीदास जी चित्रकूट की ओर चल पड़े।

चित्रकूट पहुँच कर उन्होंने रामघाट पर अपना आसन जमाया। एक दिन वे प्रदक्षिणा करने निकले ही थे कि यकायक मार्ग में उन्हें श्रीराम के दर्शन हुए। उन्होंने देखा कि दो बड़े ही सुन्दर राजकुमार घोड़ों पर सवार होकर धनुष-बाण लिये जा रहे हैं। तुलसीदास उन्हें देखकर आकर्षित तो हुए, परन्तु उन्हें पहचान न सके। तभी पीछे से हनुमान्‌जी ने आकर जब उन्हें सारा भेद बताया तो वे पश्चाताप करने लगे। इस पर हनुमान्‌जी ने उन्हें सात्वना दी और कहा प्रातःकाल फिर दर्शन होंगे।

संवत्‌ 1607 की मौनी अमावस्या को बुधवार के दिन उनके सामने भगवान श्रीराम पुनः प्रकट हुए। उन्होंने बालक रूप में आकर तुलसीदास से कहा-“बाबा! हमें चन्दन चाहिये क्या आप हमें चन्दन दे सकते हैं?” हनुमान ‌जी ने सोचा, कहीं वे इस बार भी धोखा न खा जायें, इसलिये उन्होंने तोते का रूप धारण करके यह दोहा कहा:

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

तुलसीदास श्रीराम जी की उस अद्भुत छवि को निहार कर अपने शरीर की सुध-बुध ही भूल गये। अन्ततोगत्वा भगवान ने स्वयं अपने हाथ से चन्दन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्ध्यान हो गये।

गोस्वामी तुलसीदास जी की रचनाएं :-

अपने 126 वर्ष के दीर्घ जीवन-काल में तुलसीदास जी ने कुल 22 कृतियों की रचना की है जिनमें से पाँच बड़ी एवं छः मध्यम श्रेणी में आती हैं। तुलसी दास ने अवधि भाषा में रचनाएं की जिससे जनसाधारण उन्हें पढ़ सके, हिन्दुओं के युग पुरुष के रूप में उन्होंने धार्मिक जागृती का शंखनाद किया। वो धर्म, संस्कृति और ज्ञान के प्रतिक माने जाते है।

तुलसीदास ने मानव समाज के उत्थान हेतु लोक मर्यादा की आवश्यकता को महसूस किया था, इसलिए उन्होंने ‘रामचरितमानस’ में राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रस्तुत किया और राम, लक्ष्मण, सीता, भारत, हनुमान आदी के रूप में ऐसे आदर्श चरित्रों की कल्पना की है जो जनमानस का सदैव मार्गदर्शन करते रहेंगे। गोस्वामी तुलसीदास जी का हिन्दी में वही स्थान है जो संस्कृत में वाल्मीकि अथवा वेदव्यास का है।

निधन

ऐसे महान कवि गोस्वामी तुलसीदास ने संवत्‌ 1680 (1623 ई) में श्रावण कृष्ण तृतीया के दिन ‘राम-राम’ का जप करते हुए काशी में अपना शरीर त्याग कर दिया। एक कथा के अनुसार तुलसीदास जी जब काशी के विख्यात् घाट असीघाट पर रहने लगे तो एक रात कलियुग मूर्त रूप धारण कर उनके पास आया और उन्हें पीड़ा पहुँचाने लगा। तुलसीदास जी ने उसी समय हनुमान जी का ध्यान किया। हनुमान जी ने साक्षात् प्रकट होकर उन्हें प्रार्थना के पद रचने को कहा, इसके पश्चात् उन्होंने अपनी अन्तिम कृति विनय-पत्रिका लिखी और उसे भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया। श्रीराम जी ने उस पर स्वयं अपने हस्ताक्षर कर दिये और तुलसीदास जी को निर्भय कर दिया।

तुलसी की चौपाइयां – Tulsi ji ki chaupai

किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनूरूप।।
जथा अनेक वेष धरि नृत्य करइ नट कोइ ।
सोइ सोइ भाव दिखावअइ आपनु होइ न सोइ ।।

तुलसीदास की मान्यता है कि निर्गुण ब्रह्म राम भक्त के प्रेम के कारण मनुष्य शरीर धारण कर लौकिक पुरुष के अनूरूप विभिन्न भावों का प्रदर्शन करते हैं। नाटक में एक नट अर्थात् अभिनेता अनेक पात्रों का अभिनय करते हुए उनके अनुरूप वेषभूषा पहन लेता है तथा अनेक पात्रों अर्थात् चरितों का अभिनय करता है। जिस प्रकार वह नट नाटक में अनेक पात्रों के अनुरूप वेष धारण करने तथा उनका अभिनय करने से वे पात्र नहीं हो जाता, नट ही रहता है उसी प्रकार रामचरितमानस में भगवान राम ने लौकिक मनुष्य के अनुरूप जो विविध लीलाएँ की हैं उससे भगवान राम तत्वत: वही नहीं हो जाते ,राम तत्वत: निर्गुण ब्रह्म ही हैं। तुलसीदास ने इसे और स्पष्ट करते हुए कहा है कि उनकी इस लीला के रहस्य को बुदि्धहीन लोग नहीं समझ पाते तथा मोहमुग्ध होकर लीला रूप को ही वास्तविक समझ लेते हैं। आवश्यकता तुलसीदास के अनुरूप राम के वास्तविक एवं तात्त्विक रूप को आत्मसात् करने की है। (Tulsidas Biography)

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