Rahat Indori

राहत इन्दौरी ग़ज़ल और शायरी - रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं Rahat Indori Shayari & Gajal

राहत इन्दौरी ग़ज़ल और शायरी – रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं Rahat Indori Gajal shayari

राहत इन्दौरी ग़ज़ल- रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर अपने रास्ते में

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