सालिम अली की जीवनी | Salim Ali Biography in Hindi

Ornithologist Salim Ali / सालिम अली एक भारतीय पक्षी विज्ञानी, वन्यजीव संरक्षणवादी और प्रकृतिवादी थे। इन्हे परिंदो का विश्वकोष भी कहा जाता है। 

सालिम अली की जीवनी | Salim Ali Biography In Hindiसालिम अली का परिचय – Salim Ali Biography in Hindi

पूरा नाम सालिम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली (Sálim Moizuddin Abdul Ali)
जन्म दिनांक 12 नवम्बर 1896
जन्म भूमि बॉम्बे (अब मुम्बई)
मृत्यु 27 जुलाई, 1987, मुम्बई
पिता का नाम मोइज़ुद्दीन अब्दुल
माता का नाम ज़ीनत-अन-नीसा
पत्नी तहमिना अली
कर्म-क्षेत्र पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी
कर्म भूमि भारत
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, पद्म विभूषण
विशेष योगदान भरतपुर पक्षी विहार की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई

सालिम अली हमारे देश के ही नहीं बल्कि दुनिया भर के पक्षी वैज्ञानिक के रूप में प्रसिद्ध हुए। उन्होंने बर्ड सेंचुरी के बनने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। पक्षियों के लिए सर्वे करने वाले वो हिंदुस्तान के शुरुआती लोगों में हैं। 10 साल की उम्र में एक चिड़िया को मार गिराने पर पक्षियों को लेकर दिलचस्पी जागी और आगे चलकर वे एक पक्षी विज्ञानी बने।

प्रारंभिक जीवन – Early Life of Salim Ali

सलीम अली का जन्म बॉम्बे के एक सुलेमानी बोहरा मुस्लिम परिवार में 12 नवम्बर, 1896 में हुआ। उनका पूरा नाम था सालिम मोइउद्दीन अब्दुल अली, जो बाद में सालिम अली के नाम से परिंदो के मसीहा के रूप में विश्व प्रसिद्ध हुए। वे अपने माता-पिता के सबसे छोटे और नौंवे बच्चे थे। जब वे एक साल के थे तब उनके पिता मोइज़ुद्दीन चल बसे और जब वे तीन साल के हुए तब उनकी माता ज़ीनत-उन-निशा की भी मृत्यु हो गई। सलीम और उनके भाई-बहनों की देख-रेख उनके मामा अमिरुद्दीन तैयाबजी और चाची हमिदा द्वारा मुंबई की खेतवाड़ी इलाके में हुआ।

शिक्षा और वैज्ञानिक जीवन – Salim Ali Life History in Hindi

प्राथमिक शिक्षा के लिए सलीम और उनकी दो बहनों का दाखिला गिरगाम स्थित ज़नाना बाइबिल मेडिकल मिशन गर्ल्स हाई स्कूल और बाद में मुंबई के सेंट जेविएर में कराया गया। बचपन मे गंभीर सिरदर्द की बीमारी से पीड़ित हुए, जिसके कारण उन्हें उन्हें अक्सर कक्षा छोड़ना पड़ता था। किसी ने सुझाव दिया कि सिंध की शुष्क हवा से शायद उन्हें ठीक होने में मदद मिले इसलिए उन्हें अपने एक चाचा के साथ रहने के लिए सिंध भेज दिया गया। वे लंबे समय के बाद सिंध से वापस लौटे और बड़ी मुश्किल से सन 1913 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की।

एक बार उन्होंने पेड़ पर बैठे एक पक्षी को मार गिराया था। उस समय वह 10 वर्ष के होंगे। वह उस पक्षी को उठाकर अपने चाचा के पास पहुंचे। पक्षी के गले पर पीला धब्बा देखकर वे चौंक पड़े। चाचा अमीरुद्दीन भी पक्षी को पहचान न सके। तो उसे वे ‘नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ के ऑफिस ले गए जहां उनके जानकार डब्ल्यू.एस मिलार्ड थे जो पक्षी विशेषज्ञ थे। मिलार्ड ने बालक को कुछ नहीं बताया और उससे उस कमरे में ले गए जहां मृत पक्षियों का भूसा भर कर रखा गया था।
उन्होंने उसे सभी पक्षियों को दिखाया, किंतु उन में उस जैसा एक भी पक्षी नहीं था, फिर मिलार्ड ने वैसा ही एक पक्षी दिखाया जैसा सालिम अली के हाथ में था यह पक्षी नर बया था जिसके गले पर वर्षा ऋतु मे ही पीला धब्बा बनता है। अली को विभिन्न पक्षी देख कर आश्चर्य भी हुआ और उनके प्रति जिज्ञासा भी। वे उस विभाग पर पक्षियो के बारे में ज्ञान बढ़ाने आने लगे तथा उनकी रक्षा व अन्य जानकारियां के बारे में सोचने लगे।

सलीम अली ने प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रहण की पर कॉलेज का पहला साल ही मुश्किलों भरा था जिसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और परिवार के वोलफ्रेम (टंग्सटेन) माइनिंग और इमारती लकड़ियों के व्यवसाय की देख-रेख के लिए टेवोय, बर्मा (टेनासेरिम) चले गए। यह स्थान सलीम के अभिरुचि में सहायक सिद्ध हुआ क्योंकि यहाँ पर घने जंगले थे जहाँ इनका मन तरह-तरह के परिन्दों को देखने में लगता। लगभग 7 साल बाद सलीम अली मुंबई वापस लौट गए और बंबई से उन्होंने जंतु विज्ञान में एक कोर्स किया, जिसके बाद बंबई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के संग्रहालय में उनकी गाइड के रूप में नियुक्ति हुई।

गाइड के रूप में वह मरे हुए सुरक्षित पक्षियों को दर्शकों को दिखाते और उनके विषय में बताते। इस कार्य के दौरान उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि पक्षियों के विषय में पूरी जानकारी तभी प्राप्त की जा सकती है जब उनके रहन-सहन को नजदीक से देखा जाए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह जर्मनी गए और विश्वविख्यात पक्षी विज्ञानी डॉक्टर इर्विन स्ट्रॉसमैन के संपर्क में आएँ। एक वर्ष पश्चात जब वह जर्मनी से वापस भारत आए तब तक उनकी गैरहाजिरी में संग्रहालय के गाइड की नौकरी समाप्त हो गई थी।

सौभाग्यवश माहिम मे उनकी पत्नी तहमीना अली का एक छोटा-सा मकान था वह उसी में जाकर रहने लगे।

उनके घर के अहाते में एक पेड़ था, जिस पर बया ने एक घोंसला बनाया था। सारे दिन वे पेड़ के नीचे बैठे रहते और बया के क्रिया-कलापों को एक नोट बुक में लिखते रहते थे। बया के क्रिया-कलापो और व्यवहार को उन्होंने एक शोध निबंध के रूप में प्रकाशित कराया। सन 1930 में छपाया यह निबंध पक्षी विज्ञान में उनकी प्रसिद्धि के लिए अत्यंत महत्वपुर्ण सिद्ध हुआ। इसके बाद वे जगह-जगह जाकर पक्षियों के विषय में जानकारी प्राप्त करने लगे। इन जानकारियों के आधार पर उन्होने’ द बुक ऑफ इंडियन बर्डस’ लिखी जो सन 1941 में प्रकाशित हुई,  इस पुस्तक ने रिकॉर्ड बिक्री की। इस पुस्तक में पक्षियों के विषय में अनेक नई जानकारियां प्रस्तुत की गई थी।

सन 1948 मे उन्होने विश्व-प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी दिन्लौन रिप्ले के साथ एक प्रोजेक्ट आरंभ किया, जिसमें 10 भागों में भारत व पाकिस्तान के पक्षियों के विषय में जानकारी लिखनी थी। इस पुस्तक का नाम ‘हैंड बुक ऑफ द बर्ड्स ऑफ इंडियन एंड पाकिस्तान’ है। इसमें उनके 20 वर्ष के अध्ययनों का निचोड़ प्रस्तुत किया गया है। इसमें सभी प्रकार के पक्षियों, उनके दिखाई देने, प्रवासी आदतो आदि से संबंधित अनेक बातों की जानकारी दी गई है। इसके अलावा पक्षियों के उपर उन्होंने एक और भी पुस्तके लिखी हैं। ‘द फ़ॉल ऑफ ए स्पेरो’ में उन्होंने अपने जीवन में घटी अनेक घटनाओं को प्रस्तुत किया है।

सम्मान और पुरूस्कार – Salim Ali Awards 

सालिम अली ने पक्षियों के सर्वेक्षण के लिए 65 वर्ष से भी अधिक समय तक समस्त भारत देश का भ्रमण किया। उन्होंने अपने जीवन के लगभग 60 वर्ष भारतीय पक्षियों के साथ बिताए। परिंदों के विषय में इनका ज्ञान इतना अधिक था कि लोग उन्हें परिंदों का चलता-फिरता विश्वकोश कहने लगे थे। उन्होंने पक्षियों का अध्ययन ही नहीं किया बल्कि प्रकृति संरक्षण की दिशा में भी बहुत काम किया। उन्हें 5 लाख रुपया का अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिला था, जिसे उन्होंने मुंबई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी को समर्पित कर दिया। सन 1983 में उन्हें ‘पद्म विभूषण’ से भी अलंकृत किया गया था। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी।

निधन – Salim Ali Died 

91 साल का यह पक्षी विज्ञानी 27 जुलाई, 1987 को अल्लाह को प्यारा हो गया। डॉ सालिम अली भारत में एक ‘पक्षी अध्ययन व शोध केन्द्र’ की स्थापना करना चाहते थे। इनके महत्वपूर्ण कार्यों और प्रकृति विज्ञान और पक्षी विज्ञान के क्षेत्र में अहम् योगदान के मद्देनजर ‘बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ और ‘पर्यावरण एवं वन मंत्रालय’ द्वारा कोयम्बटूर के निकट ‘अनाइकट्टी’ नामक स्थान पर ‘सलीम अली पक्षीविज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केन्द्र’ स्थापित किया गया।


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