रामास्वामी वेंकटरमण की जीवनी | R Venkataraman Biography In Hindi

Ramaswamy Venkataraman / रामास्वामी वेंकटरमण भारतीय गणराज्य के आठवें राष्ट्रपति (Eighth President of India) निर्वाचित हुए। रामास्वामी वेंकटरमण एक भारतीय वकील, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। इसके पूर्व उपराष्ट्रपति पद भी इनके ही पास था। यह 77 वर्ष की उम्र में राष्ट्रपति बने। इससे पूर्व उप राष्ट्रपति से राष्ट्रपति बनने वाले डॉक्टर राधाकृष्णन, डॉ जाकिर हुसैन और वी.वी गिरि ही थे। इनका क्रम चौथा रहा। यह बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनके चेहरे पर सदा मुस्कान रहती थी उन्होंने 25 जुलाई 1987 को राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की।

रामास्वामी वेंकटरमण की जीवनी | R Venkataraman Biography In Hindiरामास्वामी वेंकटरमण का परिचय – About Ramaswamy Venkataraman in Hindi

पूरा नाम रामस्वामी वेंकटरमण (Ramaswamy Venkataraman)
जन्म दिनांक 4 दिसम्बर, 1910
जन्म भूमि मद्रास
मृत्यु 27 जनवरी, 2009, नई दिल्ली
पिता का नाम रामास्वामी अय्यर
माता का नाम जानकी देवी
पत्नी ज्ञात नहीं
कर्म-क्षेत्र राजनितिक
नागरिकता भारतीय
पार्टी कांग्रेस
पद भारत के 8वें राष्ट्रपति

यह एक संयोग था की 35 वर्ष पूर्व जब देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने शपथ ग्रहण की थी, तब श्री वेंकटरमण भी राष्ट्रपति भवन के उसी कक्ष में मौजूद थे। उस समय किसने सोचा था कि 35 वर्ष बाद इस इतिहास को दोहराने वाला व्यक्ति भी उस घड़ी वहीं मौजूद है। यही तो भाग्य की अनिश्चितता है जिससे जीवन का चक्र आगे बढ़ता रहता है।

प्रारंभिक जीवन – Eraly Life of R. Venkataraman

रामास्वामी वेंकटरमण का जन्म 4 दिसंबर 1910 को राजारदम गांव में हुआ था, जो मद्रास के तंजावुर जिले में पड़ता था। अब यह तमिलनाडु के नाम से जाना जाता हैं। इनके पिता का नाम रामास्वामी अय्यर था। इनके पिता तंजावुर जिले में वकालत का पेशा करते थे।

रमण की प्राथमिक शिक्षा तंजावुर में संपन्न हुई। इसके बाद इन्होंने अन्य परीक्षाएं भी सफलतापूर्वक उतीर्ण की। तत्पश्चात उन्होंने अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि मद्रास विश्वविद्यालय से प्राप्त की और विधि की स्नातक उपाधि विधि महाविद्यालय, मद्रास से प्राप्त की। शिक्षा प्राप्ति के बाद इनके सामने दो विकल्प थे- ब्रिटिश हुकूमत की नौकरी करें अथवा स्वतंत्र रूप से वकालत करें। उन्होंने दूसरा विकल्प चुना और 1935 में मद्रास उच्च न्यायालय में नामांकन करवा लिया। यह अंग्रेजो के दास बन कर उनकी गुलामी नहीं करना चाहते थे।

श्री रामास्वामी वेंकटरमण का विवाह 1931 में जानकी देवी के साथ संपन्न हुआ। उनका पारिवारिक जीवन भरा-पूरा रहा है। इन्हें तीन पुत्रियां तथा एक पुत्र की प्राप्ति हुई इनकी तीन बेटिया क्रमश: पग्घा, लक्ष्मी एवं विजया है। तीनों की शादी हो चुकी है और अब इनके भी संतत्ियाँ है। लेकिन पुत्र के संबंध में वेंकटरमण को दुर्भाग्यशाली कहा जा सकता है। उनके पुत्र की 17 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी। यह परिवार के लिए एक बड़ी त्रासदी थी और इस शोक से मुक्त हो पाना आसान नहीं था।

राजनैतिक जीवन – R. Venkataraman Life History

वकालत के दौरान वे स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़े। उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस द्वारा अंग्रेजी हुकुमत के विरोध में संचालित सबसे बड़े आंदोलनों में एक ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में भाग लिया और सन 1942 में जेल गए। इस दौरान भी कानून के प्रति उनकी रूचि बनी रही और जब सन 1946 में सत्ता का हस्तानान्तरण लगभग तय हो चुका था तब उन्हें वकीलों के उस दल में शामिल किया गया जिनको मलय और सिंगापुर जाकर उन भारतीय नागरिकों को अदालत में बचाने का कार्य सौंपा गया था जिन पर जापान का साथ देने का आरोप लगा था।

लॉ और ट्रेड कार्यो ने समाज में वेंकटरमण की पहचान और बढाई। वे उस घटक असेंबली के भी सदस्य थे जिन्होंने भारतीय संविधान की रचना की थी। 1950 में वे मुक्त भारत प्रोविजनल संसद (1950-1952) और पहली संसद (1952-1957) में चुने गये थे। उनके वैधानिक कार्यकाल के समय, वेंकटरमण 1952 के अंतर्राष्ट्रीय मजदूरो की मेटल ट्रेड कमिटी में मजदूरो के दूत बनकर उपस्थित थे। न्यूज़ीलैण्ड में आयोजित कामनवेल्थ पार्लिमेंटरी कांफ्रेंस में वे भारतीय संसद दूतो के सदस्य भी थे। इसके साथ ही 1953 से 1954 के बीच वे कांग्रेस संसद पार्टी के सेक्रेटरी भी थे।

श्री वेंकटरमण को पदों की लालसा कभी नहीं रही, यद्यपि 1957 के चुनावों में यह सांसद बन गये थे। इन्होंने लोकसभा की सदस्यता त्याग दी और मद्रास राज्य सरकार में मंत्री बनाए गए। 1967 में तमिलनाडु में सत्ता परिवर्तन हुआ और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। तब श्री वेंकटरमण को दिल्ली में योजना आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया, साथ ही उद्योग, श्रम, संचार एवं रेलवे, ऊर्जा तथा यातायात के विषय भी इनके हवाले किये गए।

वह इन कार्यालयों में 1971 तक रहे। इस दौरान इन्हें लोकसभा से अलग रखा गया। ऐसे में वह ख़ाली समय में सी. राजगोपालाचारी द्वारा स्थापित ‘स्वराज्य पत्रिका’ का सम्पादन करते थे। 1977 में श्रीमती इन्दिरा गांधी के आग्रह पर इन्होंने मद्रास से लोकसभा का चुनाव लड़ा और विजयी हुए।

1980 में लोकसभा का सदस्य चुने जाने के बाद उन्हें इन्दिरा गांधी सरकार में वित्त मंत्रालय का भार सौंपा गया और कुछ समय बाद उनको रक्षा मंत्री बना दिया गया। वे अगस्त 1984 में देश के उपराष्ट्रपति बने। 25 जुलाई, 1987 को रामस्वामी वेंकटरमण देश के आठवें राष्ट्रपति बने।

पुरूस्कार और सम्मान – R. Venkataraman Awards

वेंकटरमण को कई सम्मान और पुरूस्कारो से भी नवाज़ा गया। मद्रास यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट ऑफ़ लॉ की उपाधि से सम्मानित किया है और साथ ही नागार्जुन यूनिवर्सिटी ने भी उन्हें डॉक्टरेट ऑफ़ लॉ की उपाधि से सम्मानित किया था। मद्रास मेडिकल कॉलेज के वे भूतपूर्व सम्माननीय सदस्य है और यूनिवर्सिटी ऑफ़ रूरकी में वे सामाजिक विज्ञान के डॉक्टर भी थे, इसके बाद बुर्द्वान यूनिवर्सिटी में उन्हें डॉक्टर ऑफ़ लॉ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की वजह से उन्हें ताम्र पत्र से भी सम्मानित किया गया था। एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में प्रेसिडेंट के रूप में काम करने की वजह से यूनाइटेड नेशन के सेक्रेटरी जनरल ने उन्हें यादगार पुरस्कारों से सम्मानित भी किया था। कांचीपुरम के शंकराचार्य ने उन्हें “सत सेवा रत्न” के नाम का शीर्षक भी दिया था। वे कांची के परमाचार्य के भक्त थे।

निधन – R. Venkataraman Died

27 जनवरी, 2009 को एक लंबी बीमारी के पश्चात 98 वर्ष की आयु में आर. वेंकटरमन का निधन हो गया। गणतंत्र दिवस के दुसरे दिन उनकी मृत्यु हुई थी। वे एक कुशल और परिपक्व राजनेता ही नहीं, एक बेहद सुलझे हुए और अच्छे इंसान भी थे। उनका राजनीतिक कद बहुत ऊंचा था। विभिन्न सर्वोच्च पदों पर रहते हुए लंबे समय तक देश की सेवा के लिए उनको सदैव याद किया जायेगा।


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