Rahat Indori Ghazal in Hindi – दोस्ती जब किसी से की जाये

राहत इन्दौरी ग़ज़ल और शायरी - रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं Rahat Indori Shayari & Gajalदोस्ती जब किसी से की जाये

दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राय ली जाए

मौत का ज़हर हैं फिजाओं में
अब कहा जा के सांस ली जाए

बस इसी सोच में हु डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाए

मेरे माजी के ज़ख्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाए

बोतलें खोल के तो पि बरसों
आज दिल खोल के पि जाए

राहत इन्दौरी

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Rahat Indori Gajal – Dosti jab kisi se ki jaye

Dosti jab kisi se ki jaye
Dushmanon ki bhi raye li jaye

Maut ka zahar hai fizaon may
Ab kahan ja ke sans li jaye

Bas isi soch may hun duba hua
Ye nadi kaise par ki jaye

Mere mazi ke zakhm bharane lage
Aj phir koi bhul ki jaye

Botalen khol ke to pi barason
Aj dil khol ke bhi pi jaye

Rahat Indori

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आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो – Aankh me Pani Rakho

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो

ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें

रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो

एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो

दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो

आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में

कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो

ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे

नींद रखो या रखो ख़्वाब मेयारी रखो

ये हवाएँ उड़ जाएँ ले के काग़ज़ का बदन

दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो

ले तो आए शाइरी बाज़ार में ‘राहत’ मियाँ

क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है –  Roj Taron ko Numaish me Khalal Padta Hain

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है

चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है

एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में

वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है

अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब

रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है

रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं

रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो

धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

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